चुनौतियों के साथ पढ़ाई व ग्राम विकास

लाखन सालवी
लाखन सालवी

-लखन सालवी– दहलीज को पार करना महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती थी खासकर गांवों की महिलाओं के लिए। 1993 में महिलाओं को आरक्षण दिया गया, उससे पहले तो समाज ने उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य आदि से वंचित ही रखा। सरकार ने पिछले 2 दशक में महिला सशक्तीकरण को लेकर महत्वपूर्ण कदम उठाए है। महिला आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत किए हुए अभी तीन वर्ष ही हुए है, लेकिन सत्ता का हस्तान्तरण वास्तविक रूप में दिखने लगा है। वंचित, दलित व आदिवासी महिलाओं को भी आगे आने का मौका मिला है। कभी हस्ताक्षर करते कांपते हुए हाथ अब फर्राट से हस्ताक्षर कर रहे है। उन्में आत्मविश्वास का जबरदस्त विकास हुआ है। कभी घूंघट में मूंह छिपाए हुए कोने में बैठी रहने वाली महिला पंच-सरपंचों से घूंघट का त्याग कर दिया है। सूचना क्रांति के इस युग में विभिन्न तरीकों से जानकारियां प्राप्त कर पंचायतीराज में महिला जनप्रतिनिधि पुरूषों को पीछे छोड़ते हुए एक कदम आगे चल कर सर्वांगीण विकास कर रही है।

अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है वार्ड पंच नवली गरासिया
अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है वार्ड पंच नवली गरासिया

राजसमन्द जिले की देवगढ़ पंचायत समिति की विजयपुरा ग्राम पंचायत की सरपंच रूकमणी देवी सालवी जब सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए घूंघट की आड़ में घर की चौखट लांग कर बाहर निकली तो उसे गुड़िया कहते हुए अट्हास किया गया। चुनाव के दौरान ही उस अट्हास को धत्ता बताते हुए रूकमणी देवी ने न केवल घूंघट की आड़ तो तोड़ा बल्कि चुप्पी भी तोड़ दी। चुनाव जीतने के बाद तो उसे ऐसे पंख लगे कि विजयपुरा ग्राम पंचायत में विकास कार्यों की कतार लगा दी। तमाम विकास योजनाओं का लाभ जनता को दिलवाया। ग्राम पंचायत में पारदर्शिता को इस कदर स्थापित किया कि उसकी ग्राम पंचायत राज्य ही नहीं वरन देश भर में पारदर्शिता के मामले में जानी जाने लगी है, आलम यह है कि विजयपुरा ग्राम पंचायत की पारदर्शिता को देखने के लिए देश विदेश से लोग आते है। कोई दो राय नहीं कि पंचायतों को स्वायत्तशासी बनाने में भी महिलाओं ने अह्म भूमिका अदा की है।
सरपंच ही नहीं वरन वार्ड पंच बन कर भी महिलाएं विकास करवा रही है। प्रस्तुत है पढ़ाई को बीच में छोड़कर वार्ड पंच बनी आदिवासी समुदाय की नवली गरासियां की वार्ड पंचाई पर एक रिपोर्ट –
पंचायतीराज के चुनाव आए तो सिरोही जिले की आबू रोड़ पंचायत समिति की क्यारिया ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या 8 के जागरूक लोग वार्ड पंच की उम्मीदवारी के लिए शिक्षित महिला ढूंढने लगे। दरअसल वार्ड पंच की सीट महिला आरक्षित थी। इस वार्ड में आदिवासी समुदाय के परिवारों की बाहुलता हैै। सभी परिवारों में थाह ली पर उम्र के तीन दशक पार चुकी कोई शिक्षित महिला नहीं मिली। तब लोगों की नजर नवली पर पड़ी। तब नवली 11वीं की पढ़ाई कर रही थी। लोगों ने उसके समक्ष वार्ड पंच का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा। नवली ने हामी भर ली, दूसरी तरफ उसके परिजन भी उसके निर्णय से खुश थे।
वार्ड पंच प्रत्याशी तय करने में लोगों को इतनी मशक्कत करनी पड़ी! वार्ड संख्या 8 के लोगों ने बताया कि कई वार्ड पंच बन गए और सरपंच भी लेकिन हमारे वार्ड में अपेक्षित विकास नहीं हुआ था। उनका मानना है कि अशिक्षित व विकास योजनाओं की जानकारी नहीं होने के कारण कोई भी वार्ड पंच उनके वार्ड में विकास नहीं करवा सका। वे बताते है कि यहीं कारण था कि हमनें शिक्षित महिला को चुनाव लड़वाने की ठानी।

महिला जनप्रतिनिधियों के 3 साल पूर्ण होने पर उनकी उपलब्धियों एवं चुनौतियों पर द हंगर प्रोजेक्ट जयपुर द्वारा जोधपुर में आयोजित एक दिवसीय सेमीनार में अपने अनुभव शेयर करती वार्ड पंच नवली गरासिया
महिला जनप्रतिनिधियों के 3 साल पूर्ण होने पर उनकी उपलब्धियों एवं चुनौतियों पर द हंगर प्रोजेक्ट जयपुर द्वारा जोधपुर में आयोजित एक दिवसीय सेमीनार में अपने अनुभव शेयर करती वार्ड पंच नवली गरासिया

खैर . . . नवली के चुनाव लड़ने के फैसले से उन वार्डवासियों का आधा कार्य सम्पन्न हो गया। चुनाव का समय नजदीक आया तो वार्ड पंच का चुनाव लड़ने के लिए नवली गरासिया ने आवेदन प्रस्तुत किया, उसके साथ उसके वार्ड की 2 अन्य महिलाओं ने भी आवेदन किए लेकिन वार्ड के लोगों ने तो ठान ही लिया था कि शिक्षित महिला को ही चुनाव जिताना है। बस उन्होंने शिक्षित नवली गरासिया को चुनाव जीता कर ही दम लिया।
नवली चुनाव तो जीत गई लेकिन उसे ग्राम पंचायत, विकास कार्यों एवं पंचायतीराज की लेसमात्र भी जानकारी नहीं थी। ऐसे में वार्ड का विकास करवाना उसके लिए चुनौतीपूर्ण था।
नवली ने बताया कि वार्ड पंच बनने के बाद ग्राम पंचायत में गई तो असहज महसूस किया। वो बताती है कि जानकारियों का न होना मन को कमजोर बनाता है। मैं ग्राम पंचायत में जाती जरूर थी लेकिन एक अन्य महिला वार्ड पंच के पास बैठ जाती थी। वो अशिक्षित वार्ड पंच थी और मैं शिक्षित वार्ड पंच लेकिन दोनों में ही जानकारियों का अभाव था और बेहद झिझक थी।
नवली वार्ड पंच क्या बनी, उसकी पढ़ाई भी छूट गई। हालंाकि वह पढ़ाई जारी रख सकती थी लेकिन अब पढ़ाई से ज्यादा उसे पंचायतीराज को जानने की इच्छा बढ़ गई थी, इसलिए वह ग्राम पंचायत, वार्ड, विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र आदी के ही चक्कर लगाती रहती। उसके नियमित निरीक्षण के कारण कुछ सुधार तो हुए लेकिन नवली अपने वार्ड की मूल समस्याओं का निपटारा करना चाहती थी।
ग्राम पंचायत की बैठकों में पुरूष वार्ड पंचों की भांति उसने भी अपने वार्ड के मुद्दे उठाने आरम्भ कर दिए। उसने अपने वार्ड के विकास के लिए प्रस्ताव भी लिखवाए। वार्ड पंच नवली ने महिलाओं व बच्चों की समस्याओं के प्रति वह हमेशा संवदेनशील रही और लगातार प्रयास कर उनकी समस्याओं के समाधान भी करवाए।

ग्राम पंचायत में करवाए गए विकास कार्यों की जानकारी देते हुए वार्ड पंच नवली गरासिया
ग्राम पंचायत में करवाए गए विकास कार्यों की जानकारी देते हुए वार्ड पंच नवली गरासिया

कार्यकाल का पहला साल तो ऐसे ही बीत गया। नवली ने एक साल की समीक्षा की तो उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई। एक साल बीत गया था लेकिन नवली अपने वार्ड के लिए कुछ विशेष नहीं कर पाई थी।
इसी समय उसकी मुलाकात हुई क्षेत्र में कार्य कर रहे एक सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं से। यह सामाजिक संगठन आमजन में जागृति लाने, सरकार की विकास योजनाओं की जानकारियां जन-जन तक पहुंचाने एवं वंचितों को उपर उठाने के लिए कार्य कर रहा है। जनचेतना संस्था नामक इस संगठन द्वारा समय-समय पर विभिन्न मुद्दों व विषयों को लेकर कार्यशालाएं भी आयोजित की जाती है। नवली गरासिया व कई महिलाओं ने इस संगठन से जुड़कर से जानकारियां प्राप्त की। वह जानकार हुई और अपने अधिकारों को उपयोग करते हुए ग्राम विकास करवा रही है।
वार्ड पंच ने वार्ड में जाकर महिलाओं के साथ बैठक की तो पता चला कि महानरेगा के तहत वार्ड संख्या 8 में कोई काम नहीं करवाया गया था और ना ही उसके वार्ड की महिलाओं ने महानरेगा में कार्य किया था। उसने कार्यशालाओं में मिली जानकारियों का उपयोग करना आरम्भ किया और ग्राम सभा में रेड़वाकलां में नाड़ी निर्माण करवाने का प्रस्ताव लिखवाया। बाद में नाड़ी निर्माण की स्वीकृति आ गई और वार्ड की 150 महिलाओं को रोजगार मिला।
महिला मजदूरों का कहना है कि पूर्व में अन्य वार्डों मंे ही महानरेगा के काम हुए थे। दूर होने के कारण वार्ड संख्या 8 की महिलाओं ने महानरेगा के लिए आवेदन ही नहीं किए। उन्होंने बताया कि अगर हमारे वार्ड क्षेत्र में महानरेगा का कार्य स्वीकृत नहीं होता तो हम शायद ही कभी महानरेगा में काम करने जा पाती।
महिलाओं के नाम पर पट्टे बनवाने, इंदिरा आवास योजना की किस्त के रूपये महिलाओं के नाम पर जारी करवाने एवं हैण्डपम्प लगवाने के कार्यों से नवली गरासिया वार्ड संख्या 8 ही नहीं अपितु पूरे ग्राम पंचायत क्षेत्र की महिलाओं की चहेती बन गई।
नवली ने अपने समुदाय की महिलाओं की दयनीय दशा को बदलने की दिशा में महत्वूर्ण कार्य किए है। वह बताती है कि मकानों के पट्टे पुरूषों के नाम पर जारी किए जाते थे। इंदिरा आवास योजना के तहत मकान निर्माण की राशि भी परिवार के मुखिया पुरूष के नाम पर ही जारी की जाती थी। अधिकतर मामलों में पुरूष इंदिरा आवास की किस्त के रूपयों को अन्य कार्यों में खर्च कर देते है, ऐसे में ग्राम पंचायत के दबाव के कारण घटिया सामग्री का उपयोग कर मकान बना लिया जाता है। कई ऐसे मामले ऐसे मामले भी आते है कि पत्नि के जीवित होने पर भी पति दूसरी पत्नि ले आते है। पहली पत्नि को जबरन घर से निकाल दिया जाता है। ऐसे में मजबूरीवश उस महिला या तो अपने मायके जाना पड़ता है या अन्य पुरूष से शादी करनी पड़ती है और ऐसा उसके साथ कई बार हो जाता है। महिलाओं को सम्मान मिले और उनकी सुरक्षा हो, इस बारे में नवली ने गहराई से सोचा और ग्राम पंचायत में प्रस्ताव रखा कि मकानों के पट्टे महिलाओं के नाम बनाए जावे और इंदिरा आवास योजना की राशि भी महिला के नाम ही जारी की जाए ताकि पुरूष द्वारा महिला को घर से बाहर निकाल देने और दूसरी पत्नि ले आने पर पहली पत्नि अधिकार एवं सम्मान सहित अपने घर में रह सके। हालांकि ग्राम पंचायत के पुरूष वार्ड पंचों ने उसके प्रस्तावों का विरोध किया लेकिन नवली ने अपने प्रस्ताव लिखवाकर ही दम लिया। नवली का मानना है कि ऐसा करने से इस प्रकार के मामलों में कमी आएगी।
महिला सशक्तीकरण के लिए तो नवली गरासिया ने बहुत कार्य किए। उसने सिर्फ ग्राम पंचायत क्षेत्र की महिलाओं को ही उनके अधिकार दिलवाने में मदद नहीं कि बल्कि महिला वार्ड पंचों को भी उनके अधिकार दिलवाने के लिए पैरवी की। ग्राम पंचायत में कुल 11 वार्ड है। 6 महिला वार्ड पंच है। नवली ने बताया कि वार्ड पंच बनने के बाद जब वह ग्राम सभा में गई तो देखा कि महिला वार्ड पंच तो एक तरफ घूंघट ताने बैठी रहती थी और वार्ड पंच पति ग्राम सभा की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे थे। यहां तक कि सरपंच संतोष देवी गरासिया की बजाए सरपंच पति ने ग्राम सभा की बागडोर अपने हाथ संभाल रखी थी। एक साल तो ऐसे ही चलता रहा लेकिन सामाजिक संगठन से जुड़कर जागरूक हुई तो नवली ने ग्राम सभा में सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों का विरोध करना आरम्भ कर दिया, नतीजा . . . सरपंच पति व वार्ड पंच पतियों को ग्राम सभा से अपना हस्तक्षेप रोकना पड़ा।
वार्ड की महिलाओं ने बताया कि ‘‘हमें पानी की समस्या से जुझना पड़ रहा था। हमें दूर-दराज से पानी लाना पड़ रहा था। हमने कई बार इस समस्या से वार्ड पंच (नवली) को अवगत कराया। नवली ने कैसे किया यह तो हमें नहीं पता लेकिन उसने हमारे वार्ड में हैण्डपम्प खुदवा दिया। अब हमारे पानी की समस्या नहीं है। नवली ने बताया कि उसने हैण्डपम्प लगवाने के लिए ग्राम पंचायत की बैठकों में प्रस्ताव लिखवाए, साथ ही पंचायत समिति के अधिकारी को भी बताया। वार्ड में कई महिनों से खराब पड़े ट्यूबवेल को भी ठीक कराया, जिससे पेयजलापूर्ति की समस्या से वार्डवासियों को निदान मिल गया। आजकल वाटरलेवल के नीचे चले जाने से पुनः पेयजल की समस्या आन खड़ी हुई है। उसने बताया कि मैंनें ग्राम पंचायत में वार्डवासियों को पेयजल मुहैया कराने के लिए टेंकरों द्वारा जलापूर्ति करवाने का प्रस्ताव लिखवाया है।
नवली बताती है कि वार्ड में जाने का कच्चा रास्ता है, जो इतना उबड़ खाबड है कि सरकारी अधिकारी तो वार्ड में आने का नाम ही नहीं लेते है। सरकार की चिकित्सा सेवा मुहैया कराने वाली 108 एम्बुलेंस भी वार्ड में नहीं आ पाती है। मैं ग्रेवल सड़क बनवाकर इस गंभीर समस्या से वार्डवासियों को निजात दिलवाना चाहती हूं। ग्राम पंचायत में सड़क निर्माण के लिए प्रस्ताव लिखवाया है लेकिन जिला परिषद से अभी तक स्वीकृति नहीं आई है।
शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझने वाली नवली ने सबसे पहले तो आदिवासी लड़के-लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए घर-घर गई, महिलाओं को समझाया, पुरूषों को समझाया और लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में भागीदारी निभाई। जब स्कूल में बच्चों का नामांकन बढ़ा तो प्राथमिक विद्यालय को क्रमोन्नत करवाकर उच्च प्राथमिक विद्यालय करवाया ताकि वार्ड व गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए अन्यत्र नहीं जाना पड़े।
बच्चे विद्यालय तो जाने लगे लेकिन बारिस के दिनों में बच्चों के लिए पानी का एक नाला रोड़ा बन गया। वार्ड के बच्चे बारिस के दिनों में स्कूल नहीं जा पा रहे थे। दरअसल वार्ड और स्कूल के बीच एक पानी का नाला है जिसमें बारिस का पानी तेज बहाव से बहता है। नवली ने नाले पर पक्की पुलिया बनवाने का प्रस्ताव लिखवाया। उसने बताया कि पुलिया का निर्माण हो चुका है और अब बच्चों को स्कूल जाने में कोई परेशानी नहीं है।
छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए भी सफल प्रयास किए गए। राज्य सरकार द्वारा आदिवासी वर्ग के छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए मां-बाड़ी केंद्र संचालित किए जाते है। इन केंद्रों में बच्चों को न केवल शिक्षा प्रदान की जाती है बल्कि उन्हें पोषण भी दिया जाता है। बच्चों को पाठ्य सामग्री से लेकर, कपड़े, स्वेटर, टाई, बेल्ट, जूते, मौज तथा सुबह का नाश्ता व मध्याहन भोजन निःशुल्क दिया जाता है। यहीं नहीं बच्चों को पढ़ाने एवं नाश्ता व मध्याहन भोजन बनाने के लिए भी आदिवासी वर्ग के ही महिला, पुरूष को नियुक्त किया जाता है। जानकारी के अनुसार जिस बस्ती या वार्ड में 30 छोटे बच्चों का नामांकन हो जाता है वहीं मां-बाड़ी केंद्र खोला जाता सकता है। वार्ड पंच नवली गरासिया ने घर-घर जाकर सर्वे किया। जिसमें पाया गया कि वार्ड संख्या 8 में छोटे बच्चों की संख्या 30 से अधिक थी जबकि वहां मां-बाड़ी कंेद्र नहीं चल रहा था। तब उसने प्रशासन से मां-बाड़ी खोलने की पैरवी की। उसके अथक प्रयासों से वार्ड में बंद पड़े मां-बाड़ी कंेद्र को शुरू किया गया। उसके इस प्रयास से न केवल बच्चें शिक्षा से जुड़े पाए अपितु आदिवासी समुदाय के 1 युवा व 2 महिलाओं को रोजगार भी मिला।
यहीं नहीं नवली ने महिलाओं को भी शिक्षित किया। उसने अपने घर पर चिमनी के उजाले में महिलाओं का पढ़ाना आरम्भ किया और कई महिलाओं का साक्षर बना दिया। नवली स्नातक की डिग्री प्राप्त करना चाहती है। सरपंच बनने के बाद एक साल तो उसने अपनी पढ़ाई ड्राप कर दी लेकिन उसके बाद उसने ओपन स्टेट से 12वीं की पढ़ाई की है। वो पढ़ती भी है और वार्ड पंच का दायित्व निभाती है।
पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की आजादी एवं उनका प्रतिनिधित्व पुरूषों को रास नहीं आ रहा है। इसके कई उदाहरण देखने को मिले है। नवली की बढ़ती प्रसिद्धी से भी कई लोगों को ईर्ष्या है। एक सिरफिरे ने तो नवली के मोबाइल फोन पर कॉल किया और अश्लील बातें कही, यही नहीं पुलिस में शिकायत करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दी। नवली भी कहां डरने वाली थी वह उसके खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज करवाने गई। लेकिन थाने वालों ने एफआईआर दर्ज नहीं की। तब वह पुलिस अधीक्षक के पास गई और थानेदार व अश्लील कॉल करने वाले अंजान व्यक्ति की शिकायत की। पुलिस अधीक्षक के आदेशों के बाद थाने में एफआईआर दर्ज हुई और अश्लील कॉल करने वाले को गिरफ्तार किया गया साथ ही वार्ड पंच नवली के जानमाल की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी ली।
आदिवासी सरपंच सरमी देवी गरासिया हो या वार्ड नवली बाई गरासिया, सरपंच यशोदा सहरिया हो या वार्ड पंच मांगी देवी सहरिया या हो दलित रूकमणी देवी सालवी हो या हो गीता देवी रेगर इन के सहित मनप्रीत कौर, राखी पालीवाल, वर्धनी पुरोहित व कमलेश मेहता जैसी राजस्थान की सैकड़ों महिला पंच-सरपंचों के हौसलों व उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों को देखकर लगता है कि 73वें संविधान संशोधन की भावना पूरी हो रही है। पहली पीढ़ी की महिला जनप्रतिनिधि घूंघट में थी आज एक भी घूंघट में नहीं है अर्थात् कोई माने या ना माने तृणमूल स्तर पर बदलाव आ ही गए है।

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