कम ही लोग बदलते वक्त के साथ खुद को ढाल पाते हैं। कुछ सालों पहले तक तो
राजनेताओं से ये बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की जा सकती थी। यही वजह है कि
देश में पॉपुलर संस्कृति को लेकर नेताओं के बेतुके बयान सामने आते रहे
हैं। अन्ना के आंदोलन ने ये साफ बता दिया कि देश की सत्ता को देश के नब्ज
की पहचान नहीं है। युवाओं की आकांक्षाओं के बारे में उन्हें पता नहीं है।
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को भी कांग्रेस नहीं समझ पाई थी। यही कारण
रहा कि जंतर-मंतर पर लाखों की भीड़ देखकर उसके हाथ-पांव ठंडे पड़ गए थे।
शहरी युवा को वोटर नहीं मानने वाली कांग्रेस पार्टी ने पटखनी खाने के बाद
पॉपुलर संस्कृति को तवज्जो देना सीखा। पर अगर किसी ने जीत की तैयारी की है तो वो हैं नरेंद्र मोदी। उदाहरण के लिए, उन्हें बिहार के बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करना था। वो पिछली
बार की तरह वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित कर सकते थे पर इस
बार उन्होंने एक अलग तकनीक का सहारा लिया और ऑडियो ब्रिज तकनीक के माध्यम
से एक साथ 1500 कार्यकर्ताओं से बात की। ऐसा कर के उन्होंने दो बातों के
लिए सुर्खियां बटोरी। पहली एक नई तकनीक का प्रयोग के लिए और दूसरी उनके
भाषण का कंटेंट तो सुर्खियां बनती ही हैं।
राजनीति में एक लंबा दौर देख चुके मोदी की सबसे खास बात है कि उन्होंने
प्रशासक के रूप में 11 साल पूरे कर लिए हैं। सत्ता के बिना राजनीति करते
रहना और सत्ता हासिल करने के बाद राजनीति करने में फर्क होता है। सत्ता
आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम बनती है।
अधिकतर लोग सत्ता और राजनीति में घालमेल कर देते हैं, मोदी ऐसा बिल्कुल
नहीं करते हैं। राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सत्ता के इस्तेमाल का तोहमत
भी उनपर नहीं लगाया जा सकता है। इस बारे में केंद्र सरकार के प्रति आपके
विचार अलग हो सकते हैं। आप सभी के विचार उग्र ही थे जब कपिल सिब्बल ने
देश में सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लगाम लगाने की बात कही थी।
हम बारंबार मीडिया के माध्यम से नेताओं के प्रचार की बात कर रहे हैं पर
कृपया कर के ये मत भूलिए की उत्तर प्रदेश में एक नेता जी बाहें
चढ़ा-चढ़ाकर भाषण देते थे। हम सभी को पता होता था कि किस गांव के किस
गरीब के घर युवराज रात में ठहरे हैं पर आखिरकार चुनावों में जीत उसी की
हुई जो सुर्खियों में नहीं था। अखिलेश यादव के चुनाव जीतने के बाद अधिकतर
को इस बात का पता चला कि उन्होंने साइकिल पर पूरे प्रदेश की लगभग 8000
किमी तक यात्रा की है।
यानी अखिलेश अधिक से अधिक जनता तक पहुंचने में कामयाब रहे थे। मीडिया के
माध्यम से उन लोगों तक पहुंचने का कोई फायदा ही नहीं है जो चुनाव में वोट
डालने ही नहीं वाले हैं।
इस बात का मोदी को अहसास है। तभी तो वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल दूर बैठे
लोगों से जुड़ने के लिए कर रहे हैं और जिन इलाकों में इसकी धमक नहीं है
वहां खुद पहुंच रहे हैं। पठानकोट से अपने चुनाव अभियान की शुरूआत करना
इसी पक्ष को दर्शाता है। आप उनके अगले कार्यक्रम पर नजर डाले तो वो
ओड़िशा का दौरा करने वाले हैं।
यानी की जहां तकनीक की पहुंच ज्यादा नहीं है वहां मोदी खुद पहुंच रहे हैं।
तकनीक के बेतुके इस्तेमाल से अब तक मोदी बचते रहे हैं। खासकर के सोशल
मीडिया पाठक को मौका देता है कि वो अपना विचार उनके सामने रख सके। मोदी
विचारों के आदान प्रदान को मौका दे रहे हैं जो निश्चित ही उनके पक्ष में
जाएगा। मोदी की देखादेखी अन्य नेताओं ने भी सोशल मीडिया की ताकत को
आजमाना शुरू कर दिया है। दिग्विजय सिंह आए दिन अपने विवादास्पद बयानों को
ट्वीटर के माध्यम से ही सामने रखते हैं। पर उनमें और मोदी में फर्क ये है
कि दिग्विजय सिंह सुर्खिया बनाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते
हैं और मोदी लोगों तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं पर
वो सुर्खियां बन जाती हैं।
हाल ही में मोदी ने ट्विटर पर केंद्रीय मंत्री शशि थरूर को पीछे छोड़
दिया। ये महज एक घटना नहीं थी। इसे हमें समझना होगा। जानकार माने जाने
वाले थरूर वाकई में उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो इंटरनेट के
अविष्कार के समय से उसका इस्तेमाल कर रहा है। उनके ट्वीटर फॉलोवर्स
ट्वीटर के पहले उपभोक्ताओं में शामिल हैं। साफ शब्दों में कहे तो वो
संपन्न हैं और वो चाहेंगे कि इंटरनेट पर हमेशा अंग्रेजी भाषा का ही
अधिपत्य रहे। थरूर का मजाक भी सभी नहीं समझ सकते हैं। कैटल क्लास वाला
उनका मजाक केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही समझ पाए थे। आप ये ना कहिएगा
कि क्या मजाक है। आप इस बात का इंटरनेट पर सर्च कर सकते हैं।
उनकी तुलना में मोदी के साथ जुड़े इंटरनेट उपभोक्ता भारत के वो युवा हैं
जो छोटे शहरों से आते हैं। इन युवाओं के लिए सामाजिक मुद्दे मायने रखते
हैं। इन युवाओं ने देखा है कि बिजली, सड़क और पानी के अभाव में जीवन कठिन
हो जाता है। ये युवा वोट भी देने जाते हैं। ये युवा रोजगार के अभाव में
परेशान होते हैं। जमीं से जुड़े युवाओं को मोदी भा रहे हैं, और अधिक से
अधिक मोदी के साथ सोशल मीडिया पर उनके साथ जुड़ रहे हैं।
Vijay Sharma
Sanskar Media
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