-संजीव पांडेय- भाजपा में अघोषित सत्ता के केंद्र नरेंद्र मोदी बन गए है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी उनका लोहा मान चुका है तो भाजपा के नेता भी उनके सामने नतमस्तक है। लोकसभा चुनावों को लेकर बनायी गई विभिन्न कमेटियों ने कम से कम यह जता दिया है। भाजपा के इतिहास में पहली बार हुआ है। पूरी पार्टी चुनाव अभियान समिति के अधीन तकनीकी रुप से कर दी गई है। चुनावी तैयारी को लेकर बनायी गई अलग-अलग कमेटी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को रिपोर्ट नहीं करेंगी। बल्कि वो नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट करेंगी। काफी झूम-झाम से बने राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के लिए बहुत ही अजीब स्थिति है। वो मात्र आभूषण बनकर रह गए है। कमेटी के अंदर सिर्फ राजनाथ सिंह और एलके आडवाणी नहीं है। इनके उम्र और पद की गरिमा भर रखी गई है। एलके आडवाणी को कमेटी के अंदर रखे जाने का सवाल नहीं था। लेकिन राजनाथ सिंह की इज्जत बचाए जाने के लिए कहा गया कि मोदी के नेतृत्व वाली कमेटी राजनाथ को रिपोर्ट करेगी।
2014 के लोकसभा चुनाव के लिए बनायी गई कमेटियों के कई संकेत है। एक संकेत साफ है। भाजपा फिलहाल चुनाव तक सहयोगियों की चिंता नहीं करेगी। सहयोगी दलों को साफ संकेत है। जिन्हें साथ आना है आए, जिन्हें दूर जाना है जाए। मोदी ही पार्टी का नेतृत्व करेंगे। दरअसल इसके पीछे एक सोची समझी रणनीति है। पार्टी के अंदर यह सोच उभरी है कि एक मजबूत एनडीए भी 2009 में भाजपा को केंद्र में नहीं बिठा पाया। एक परिणाम यह आया कि सहयोगियों की कीमत पर भाजपा की सीटें संसद में पहले से भी घट गई। कांग्रेस की खराब होती स्थिति के बावजूद और सहयोगियों के सहयोग के बावजूद भाजपा की सीटें 2004 के मुकाबले 2009 में कम हो गई थी। एलके आडवाणी के मजबूत एनडीए के तर्क को इसी आधार पर संघ ने खत्म किया। अब भाजपा की रणनीति है कि जिन राज्यों में भाजपा नहीं है वहां एक वोट बैंक पहले खड़ा किया जाए। उसके बाद सहयोगी दलों को अपनी शर्तों पर राजी किया जाए। क्योंकि भाजपा को दो राज्यों का अनुभव कड़वा है। बिहार में नितिश कुमार ने भाजपा को हाशिए पर रख शासन किया और अब भाजपा का साथ छोड़ गए। वहीं यूपी में बसपा से समझौते के बाद ही भाजपा की हालात पतली होती गई। मोदी को लेकर समय-समय पर अड़ंगा लगाने वाले उधव ठाकरे का विकल्प राज ठाकरे तैयार कर लिया गया है। अगर उदव ठीक रहे तो ठीक है। नहीं तो राज ठाकरे मौजूद है। फिर उधव को नितिश की तरह मुस्लिम वोट भी नहीं मिलेगा। इसलिए मोदी के साथ लगने के अलावा कोई और चारा उनके पास नहीं है। बस वो मोदी से राज ठाकरे को साथ नहीं लगाने के नाम पर गारंटी चाहते है। यही कारण है कि समय-समय पर अपने दर्द को वो ब्यां करते है।
भाजपा अब मैनेजरी लोकतंत्र से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। मैनेजरी लोकतंत्र का मतलब दिखावे का लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र में आधारहीन नेता दिल्ली में बैठ पार्टी के भविष्य़ का फैसला लेते है। इसमें सुष्मा स्वराज, अनंत कुमार, अरूण जेतली से लेकर राजनाथ सिंह जैसे नेता शामिल है। अब भाजपा एकाधिकारी मजबूत शक्ति की रणनीति पर चल रही है। ये आने वाले दिनों में पार्टी के लिए खतरनाक हो सकता है। एकाधिकारी मजबूत शक्ति का केंद्र नरेंद्र मोदी बने है। गुजरात में इस फार्मूला को अपनाया गया। नतीजन वहां भाजपा और संघ की अहमियत नहीं रही। नरेंद्र मोदी ने भाजपा के अंदर ही अपनी शक्ति, अपना गुट और अपना कैडर खड़ा कर लिया। आज नरेंद्र मोदी गुजरात से बाहर भी यही कर रहे है। भाजपा से अलग उनका एक अपना तंत्र काम कर रहा है। ये एकाधिकारी रणनीति भाजपा के लिए खतरनाक होगी।
नरेंद्र मोदी को भाजपा की बनायी गई विभिन्न कमेटियां रिपोर्ट करेंगी। साथ ही यह बताया गया कि नरेंद्र मोदी सारी रिपोर्ट को लेने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और मार्गदर्शक की भूमिका में आए एलके आडवाणी से बातचीत करेंगे। लेकिन मोदी की प्रकृति जानने वालों को पता है कि वो क्या करेंगे। न राजनाथ सिंह की हिम्मत होगी कि वो मोदी से कोई रिपोर्ट मांगे और न ही एलके आडवाणी की। साथ ही मोदी इतने विनम्र नहीं है कि वो राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को रिपोर्ट दें। कुल मिलाकर राजनाथ सिंह भी अब मार्गदर्शक की भूमिका में ही एलके आडवाणी की तरह रहेंगे। दरअसल राजनाथ सिंह ने कुछ ख्वाब तो जरूर पाले है। वो ख्बाव अभी खत्म नहीं हुए है। वो चुनाव के बाद सहमति के उम्मीदवार बनना चाहते है। लेकिन मोदी के नेटवर्क को समझ अब राजनाथ डर गए है। उन्हें लगता है कि मोदी किसी भी हद तक जाकर भाजपा के किसी नेता को निपटा सकते है। फिर राजनाथ सिर्फ लीडर ही नहीं है। वो उनके कई और हित है। इन हितों पर मोदी जोरदार चोट सकते है। राजनाथ ने इस जमीनी हकीकत को समझ लिया है। जो संघ उनकी मदद करता है वो संघ इस समय मोदी को लेकर कई बाह्य शक्तियों के दबाव में भी है।
मोदी ने राजनाथ और आडवाणी की सारी संभावनाएं दूर कर दी है। जिस शिवराज की तारीफ एलके आडवाणी ने की थी उस शिवराज को मोदी के अधीन कर दिया गया। वो भी रिपोर्ट मोदी को करेंगे। आडवाणी के खास सिपाही अनंत कुमार अपने राजनीतिक भविष्य़ को देखते हुए मोदी शरणम गच्छामी हो गए है। भाजपा के मैनेजेरियल नेता सुष्मा और अरुण जेतली भी मोदी को सलाम करेंगे। कम से कम कमेटी तो यही कहती है। भाजपा के सबसे अकड़ू और दंभी डा. मुरली मनोहर जोशी को भी मोदी के अधीन कर दिया गया है। जोशी भी मोदी को लेकर पहले कहीं न कहीं विरोध प्रकट करते थे। लेकिन अब समय को उन्होंने पहचान लिया है।
एक कहावत है, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। आप कह सकते है भाजपा के लिए मजबूरी का नाम मोदी। मोदी के अलावा विकल्प आज भाजपा के पास नहीं है। हिंदू आतंकवाद के नाम पर कांग्रेसी हमले झेल रहा संघ परिवार को भी अब तारणहार मोदी ही नजर आ रहा है। अगर अगला चुनाव भी भाजपा हार गई तो कांग्रेसी कहीं का नहीं छोड़ेगी। मोदी को प्रबंधन से संघ प्रभावित है। कानूनी प्रबंधन में भी मोदी पूरे कांग्रेस के लगे होने के बावजूद कांग्रेस को मात दे रहे है। सीबीआई तक को मजबूती से जवाब दे रहे है। मोदी की यही विशेषता संघ परिवार को भा रहा है। कोई और भाजपा नेता होता तो अबतक सीबीआई के डर से अस्पताल में भर्ती हो गया होता। फिर मोदी पसंद सिर्फ संघ परिवार के ही नहीं है। इनके हिंदू राष्ट्रवाद की छवि को पसंद इजरायल की यहूदी लॉबी भी कर रही है तो अमेरिकी इसाई लॉबी भी कर रही है। उन्हें लगता है कि पश्चिम एशिया और साउथ एशिया के इस्लामी जेहाद का जवाब नरेंद्र मोदी हो सकते है। मोदी के पक्ष में अंतराष्ट्रीय स्तर पर जो लॉबिंग हो रही है, उसमें ये सारे लोग शामिल है। भारत के अंदर भी सक्रिय से लॉबियां मोदी को अलग-अलग तरीके से मदद कर रही है। पश्चिम एशिया के कई ब़ड़े मुस्लिम शेख जिनके कारपोरेट रूचि भारत समेत पश्चिम एशिया में है वो भी मोदी की मदद कर रहे है। इसलिए भाजपा के लिए अब मजबूरी है नरेंद्र मोदी।