मनमोहन की मिमियाहट बनाम मोदी की गरज

राजेन्द्र सिंह हीरा
राजेन्द्र सिंह हीरा

“आज अनायास बचपन की याद हो आई । 15 अगस्त हो या 26 जनवरी , सुबह सवेरे जल्द उठकर स्कूल जाते थे । झण्डा फहराया जाता था । देशभक्ति गान होता था । लड्डू बंटते थे और खुशी खुशी घर लौटते थे । आस पड़ौस , गली मोहल्ले का वातावरण देशभक्ति के गानो से गूँजता था । हर तरफ तिरंगे ही तिरंगे दिखते थे । आज , आज ही क्या पिछले कुछ सालों से ऐसा होते देख रहा हूँ । अब लोगों के दिलों में वो खुशी कहीं दिखती ही नहीं । दिखे भी तो कैसे ? गरीब ही नहीं माध्यम वर्ग परिवार भी महंगाई की मार से त्रस्त है । जब पेट ही खाली हो तो , दूसरी कोई बात सूझे भी तो कैसे । सुबह उठकर टी वी पर प्रधान मंत्री का लाल किले से देश को सम्बोधन सुना । न तो उनके चेहरे पर और न ही उनके भाषण में कोई खुशी , कोई उम्मीद की किरण , कोई जोश , कोई आश्वासन दिखा । जिसमें स्वयं की ही कोई जान न हो वह म्रतप्राय सा दूसरों में क्या उम्मीद की किरण जगाएगा ? दूसरों में क्या जान फूँकेगा ? बड़ी निराशा हुई प्रधान मंत्री से । थोड़ी देर बाद नरेंद्र मोदी जी का भाषण सुना । लगा कोई शेर गरज रहा है । गरज गरज कर सवाल पूछ रहा है । समाधान भी बता रहा है , समाधान चाहता भी है । मोदी की बातों से लगा उन्हें समस्याओं की समझ है , समस्या की जड़ में जाकर उसका हल ढूँढने की कोशिश करते हैं । उन्हें फिक्र है गरीब की । उन्हें फिक्र है देशवासियों की । उन्हें फिक्र है सेना के जाबाञ्ज़ो की । उन्हें फिक्र है सरहद की । उन्हें फिक्र है वीरों के बलिदान की । उनका सार गर्भित भाषण सुनकर दिल ने कहा मोदी जी जल्द ही अगला भाषण आप लाल किले की प्राचीर से देंगे । ——–जयहिंद ”
-राजेन्द्र सिंह हीरा

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