
-मोहन थानवी- आपके सान्निध्य में मन की बातें खुद ब खुद कलम से कागज पर उतरने लगती है।
बड़ों ने अपने अनुभवों के इशारों में सच ही कहा है, पुस्तक सदृश्य और कोई
मित्र नहीं। इसी तर्ज पर पाठक भी उसी श्रेणी के मित्र हैं जिस श्रेणी में
पुस्तक को मित्र माना गया है। मित्रों में दिल की बात तो जुबां पर आती ही
है। यहां माध्यम कलम है। बात कागज पर उतरती है। कलाकार, कलमकार की पूंजी
और होती ही क्या है ! असबाब में असबाब, एक चंग एक रबाब। बस। हमारा यही
संसार है। यही दौलत। कलम। कागज। दवात। यूं चंग डफ सदृश्य मंजीरा लगा हुआ
वाद्य होता है। रबाब ऐसा वाद्य होता है जो सारंगी जैसा लगता है। इस
साजोसामान से कलाकार, साहित्यकार आपसे, पाठकों से मित्रता का दम भरता है।
पाठक भी बखूबी मित्र धर्म निर्वहन करते हैं। संबल प्रदान करते हैं। दिल
की बात कागज के माध्यम से पाठक मित्रों तक पहुंचाने की बेमिसाल बानगी
हमारे सामने ही है। बड़ों के आदर्श, विनम्रता, असीम धैर्य ही तो युवा
पीढ़ी को संस्कारित करते हैं। संस्कार ही हमारी असल संपत्ति है। परंपराएं
वाहक। और हमारे बीकाणा की साहित्य-संस्कृति ने सदैव नव पल्लव पुष्पित किए
हैं। परंपराओं से युवा पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त किया है। नगर में
पत्रकारिता का इतिहास भी गौरवशाली है। हमारा असबाब में असबाब यही
गौरवशाली इतिहास ही तो है। इसका संरक्षण हमारा दायित्व। असबाब कायम रहे।
इसमें वृद्धि होती रहे। ऐसे प्रयासों के लिए अभिलेखागार की सराहना लाजिमी
है।