लंदन में था ‘लाश चोरों’ का ख़ौफ़

अच्छा सर्जन किसी भी मरीज़ या अस्पताल के लिए कितना अहम होता है ये बताने की ज़रूरत नहीं. चीर-फाड़ वाले इस पेशे में डॉक्टर के लिए अपने हुनर को माँझना बेहद ज़रूरी होता है. आधुनिक युग में तो ट्रेनिंग के बहुत अवसर होते हैं पर पुराने ज़माने में सर्जन अभ्यास के लिए क्या करते होंगे?

19वीं सदी में ब्रिटेन में लोगों के शव चुराए जाते थे और डॉक्टर शल्यचिकित्सा का अभ्यास करते थे.

सर्जरी का पेशा 19वीं सदी में बहुत ही क्रूर क़िस्म का काम होता था. अगर कोई हड्डी टूट जाए तो उसका इलाज हड्डी को काट देना ही होता था. एंटीसेप्टिक या बेहोश करने वाले ऐनेस्थेटिक भी तब नहीं होते थे. सर्जरी के दौरान ख़ून के बहने या संक्रमण से मौत होने का ख़तरा रहता था.

इन समस्याओं के कारण सर्जन का बहुत ही सटीक और अच्छा होना ज़रूरी था. 19वीं सदी के शुरुआती सालों में अभ्यास के लिए शव हासिल करने का सर्जनों के पास एक ही क़ानूनी तरीक़ा था- मौत की सज़ा मिलने के बाद क़ैदियों का शव.

एक तरफ जहाँ शव मिलने मुश्किल थे वहीं 1820 तक लंदन में चार बड़े अस्पताल बन चुके थे जहाँ शरीर के चीर-फाड़ की शिक्षा दी जाती थी और 17 निजी स्कूल भी थे.

इन अस्पतालों के लिए शव कैसे ढूँढे जाए ये बड़ी समस्या बनती जा रही थी. इस काम में मदद करते थे ‘लाश चोर’ जो क़ब्रिस्तान से शव चुराते थे. चोर पैसों के बदले ये शव डॉक्टरों को बेचते थे. कुछ चोर तो शव के लिए क़त्ल भी कर देते थे.

इसके बाद से लोगों में ‘लाश चोरों’ का ख़ौफ़ पैदा हो गया था. धार्मिक कारणों से भी लोगों में शव के चीर-फाड़ होने का डर था क्योंकि माना जाता था कि निर्वाण तभी मिल सकता है जब शरीर पूर्ण हो.

रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स के प्रोफेसर विशी महादेवन कहते हैं, “जो चोर शव चुराते थे वे सिर्फ़ पैसे के लिए करते थे. शव जितना नया होता था, उतने ज़्यादा पैसे मिलते थे.”

सर्जरी सीखने की क़ीमत

2006 में लंदन के रॉयल अस्पताल से कंकाल मिले थे जिससे पता चला कि यहाँ 19वीं सदी में 260 से ज़्यादा लोगों को दफ़नाया गया था. बताया जाता है कि ज़्यादातर ग़रीब लोग ही इसका शिकार बनते थे.

कई जगह तो केवल एक ही व्यक्ति का कंकाल था जिसमें कुछ हड्डियाँ थी जिनसे चीर-फाड़ का पता चल रहा था, सिखाने के लिए हड्डियों को तारों से जोड़ा हुआ था.

प्रदर्शनी में वो उपकरण भी दिखाए गए हैं जो उस ज़माने में सर्जरी के लिए इस्तेमाल होते थे.

शव छीनने की गतिविधियों के कारण ही ब्रिटेन में विवादित 1932 एनोटमी एक्ट बना था. इस क़ानून के अनुसार अगर किसी का शव लेने के लिए कोई आगे नहीं आता है तो उसे सर्जरी के अभ्यास के लिए दिया जा सकता है.

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