रंग लाई क्रांति, खुफिया विभाग के मुखिया पहुंचे जेल

जॉर्डन में गुप्तचर विभाग के पूर्व प्रमुख को भ्रष्टचार के आरोप में 13 साल की कैद की सज़ा सुनाई गई है.

देश में लंबे समय से लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं और इस सब के बीच ये अपनी तरह का पहला मामला है जहां गुप्तचर विभाग जैसी ताकतवर संस्था के प्रमुख पर जनता के दबाव के चलते कार्रवाई की गई है.

सेवानिवृत्त जनरल मोहम्मद अल दहाबी 2005 से 2008 के बीच देश के खुफिया विभाग के प्रमुख थे और इस दौरान उन पर सरकारी पैसे के गबन, घोटालों और पद के दुरुपयोग के आरोप लगे.

जनता को संदेश

अब इस मामले में देश की अदालत ने मोहम्मद अल दहाबी को सज़ा सुनाते हुए 13 साल की कैद के अलावा जुर्माने के रुप उन्हें सरकारी खज़ाने में लगभग तीन करोड़ डॉलर जमा कराने का आदेश भी दिया है.

जानकारों का मानना है कि देश के प्रभुत्वशाली तबके से संबंध रखने वाले एक व्यक्ति को इस तरह की कड़ी सज़ा देकर जॉर्डन की सरकार जनता को यह संदेश देना चाहती कि वो भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए प्रतिबद्ध है.

इस मामले में फैसला सुनाते हुए जज नशात अखरास ने दहाबी से कहा “लोगों का भरोसा तोड़ने के लिए आपको सबसे कठोर सज़ा दी जानी चाहिए. आपने उन लोगों के साथ धोखा किया है जिन्होंने आपकी ज़िम्मेदी और सरकारी पैसा को लेकर आप पर भरोसा किया.”

अल दहाबी को पिछले साल फरवरी में गिरफ्तार किया गया था जब उनके बैंक खातों के ज़रिए पैसे के लेनदेन का मामला सामने आया था.

राजनीतिक सुधार

अल दहाबी जॉर्डन के पूर्व प्रधानमंत्री नादेर अल दहाबी के भाई हैं.

जनता के दबाव में जॉर्डन के किंग अबदुल्लाह पर दबाव बना है कि वो व्यवस्था से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए क़दम उठाएं. इसके बाद किंग अबदुल्लाह ने संसद को भंग कर देश में राजनीतिक सुधार लागू करने की शुरुआत की है.

किंग अबदुल्लाह का कहना है वो राजनीतिक सुधारों को लेकर गंभीर हैं, हालांकि उनके विपक्षव में खड़ा मुस्लिम ब्रदरहुड उनकी तानाशाह ताकत को खत्म करने की मांग कर रहा है.

गुप्तचर विभाग के पूर्व प्रमुख पर चलाया जा रहा यह मामला जॉर्डन के लिए अपनी तरह का पहला मामला है. जॉर्डन में अधिकारियों से जुड़े इस तरह के मामले आमतौर पर सेना की अदालतों में चलाए जाते हैं जिन्हें मानवाधिकार और नागरिक अधिकार संगठन असंवैधानिक मानते हैं.

हालांकि जनरल मोहम्मद अल दहाबी ने इन आरोपों का खंडन किया है उनके समर्थकों का कहना है कि इस फैसले ने साफ कर दिया है कि उन्हें राजनीतिक षडयंत्र का शिकार बनाया गया है.

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