अमेरिका की नाक में दम करने वाले के बारे में खास बातें

-political-career-of-hugo-chavez 2013-3-6कराकस। वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्मूगो शावेज लंबे समय से कैंसर से लड़ रहे थे। काफी इलाज के बाद भी शावेज को मौत ने हरा दिया। 6 मार्च 2013 तड़के शावेज का निधन हो गया।

बरिनास राज्य में साबानेता के एक कामकाजी परिवार में जन्म लेने के बाद भी ह्यूंगो शावेज के अंदर वो जोश और जज्बा था जिससे वे सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देख सकते थे। शावेज एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। शुरू से ही वे अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ते आएं हैं। बचपन से ही शावेज काल मा‌र्क्स से खूब प्रभावित थे। लोगों ने उन्हें कभी तानाशाही नेता का खिताब दिया तो कभी गरीबों का नेता कहा। शावेज का राजनीतिक सफर काफी उतार चढ़ाव भरा था। उन्हें सत्ता पर काबिज रहने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।

साल 2012 के अक्तूबर में शावेज को फिर से वेनेजुएला का राष्ट्रपति चुन लिया गया था। ह्यूगो शावेज लातिन अमेरिका के एक विवादास्पद नेता थे। साल 2008 में उन्होंने कहा था कि वे अपने संभावित उत्तराधिकारी के तौर पर उप-राष्ट्रपति निकोलस मेडुरो का नाम आगे बढ़ाना चाहते हैं। उन्हें लगता था कि उनके पास अब अधिक समय नहीं है। इसलिए सत्ता की बागडोर वो किसी और के हाथ में सौंपना चाहते थे।

राजनीतिक सफर

फरवरी 1992 में शावेज ने खचरें में कटौती के उपायों से लोगों में बढ़ते आक्रोश के बीच राष्ट्रपति कार्लोस एंड्रेज पेरेज की सरकार गिराने की कोशिश की थी। इस विफल सैन्य तख्तापलट की आधारशिला एक दशक पहले ही रखी गई थी जब शावेज और उनके कुछ सैन्य सहयोगियों के दल ने दक्षिण अमेरिका स्वतंत्रता के नायक सिमोन बोलिवर के नाम पर एक गुप्त आंदोलन शुरु किया था।

गौरतलब है कि साल 1992 में रेवॉल्यूशनरी बोलिवियन मूवमेंट के सदस्यों के विद्रोह में 18 लोग मारे गए थे और 60 अन्य घायल हुए थे। इस आंदोलन के दौरान शावेज को जेल में भी जाना पड़ा था। उनके सहयोगियों ने नौ महीने बाद भी सत्ता पर कब्जे की नाकाम कोशिश की थी। नवम्बर 1992 में तख्तापलट के दूसरे प्रयास को भी कुचल दिया गया था।

माफी मिलने से पहले शावेज ने जेल में दो वर्ष बिताए और इसके बाद उन्होंने मूवमेंट फॉर फिफ्थ रिपब्लिकन नाम से अपनी पार्टी को दोबारा संगठित की। अब वो सैनिक से नेता बन गए थे।

वर्ष 1998 के चुनावों के बाद शावेज सत्ता पर काबिज हुए। अपने ज्यादातर पड़ोसी मुल्कों की तुलना में वेनेज़ुएला में साल 1958 से ही लोकतांत्रिक सरकारें रही हैं। लेकिन सत्ता पर बारी-बारी से काबिज होते रहे देश के दो प्रमुख राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार और देश की अतुल तेल सम्पदा का दोहन के आरोप लगते रहे।

शावेज हमेशा से ही अंतरराष्ट्रीय पूंजीवाद के खिलाफ हमला बोलते रहते थे। एक बार चर्च के नेताओं के साथ भी शावेज भिड़ गए थे। 11 सितम्बर 2001 के बाद बुश प्रशासन ने अफगानिस्तान युद्ध के दौरान कड़ा रवैया अपनाया तो शावेज ने अमेरिका पर आरोप लगाया कि वो आंतक से निपटने के लिए आंतक का ही इस्तेमाल कर रहा है। इस दौरान शावेज ने अमेरिका के नाक में दम कर दिया था। इससे दोनों देशों के संबंध और भी खराब हो गए।

साल 2002 में राजनीति में फिर से एक बदलाव आया। एक विद्रोह के जरिए शावेज को कुछ दिनों के लिए सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। शावेज ने इसके लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि उन्हें फंसाया जा रहा है।

इसके बाद साल 2006 का राष्ट्रपति चुनाव भी उन्होंने जीत लिया। शावेज की सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं समेत कई क्षेत्रों के विकास के लिए कई तरह के कार्यक्रमों की शुरुआत की।

राष्ट्रपति पद के लिए शावेज को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। साल 2012 में वेनेजुएला की राजनीति में फिर से उथल-पुथल मची और तमाम विवादों के बाद भी शावेज राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंच गए।

इसके बाद शावेज एक के बाद एक कई चुनाव और जनादेश अपने नाम करने में कामयाब होते गए। इनमें वो संवैधानिक जनादेश भी शामिल है, जिसमें संविधान में बदलाव करके कहा गया था कि कोई व्यक्ति कितनी भी बार राष्ट्रपति बन सकता है।

साल 2011 में सर्जरी के और कीमोथैरेपी के बाद मई 2012 में चावेज ने घोषणा की थी कि वे फिलहाल ठीक हैं।

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