टोक्यो। भारत और जापान के बीच व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) को लेकर लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तीन दिवसीय यात्रा में भी नहीं सुलझ पाया। हालांकि, जापान ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता दिलाने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। साथ ही दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग समझौते को जल्द पूरा करने के लिए बातचीत की रफ्तार बढ़ाने का भी भरोसा दिलाया है।
मनमोहन सिंह ने बताया कि समुद्री सुरक्षा में एशिया के दोनों बड़े देशों ने मिलकर काम करने का संकल्प लिया है। इस दौरान दोनों देशों ने चार अरब 80 करोड़ डॉलर के कर्ज समझौते पर हस्ताक्षर भी किए। प्रधानमंत्री सिंह ने बुधवार को जापान के सम्राट अकीहितो से मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की।
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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके जापानी समकक्ष शिंजो एबी के बीच हुई लंबी बातचीत के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में बताया गया कि दोनों पक्ष भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में पूर्ण सदस्यता दिलाने की जमीन तैयार करने के लिए साथ काम करने को तैयार हैं। उम्मीद की जा रही थी कि इस यात्रा के दौरान असैन्य परमाणु करार के मामले में उल्लेखनीय प्रगति होगी, लेकिन शिंजो एबी के सीटीबीटी की अहमियत पर जोर देने के कारण अपेक्षित प्रगति हासिल नहीं की जा सकी।
परमाणु हमलों का इकलौता शिकार जापान चाहता है कि भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) और सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करे। सिंह ने दोहराया कि भारत परमाणु परीक्षण स्थगन के लिए प्रतिबद्ध है। दोनों पक्षों ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए समझौते पर बातचीत की रफ्तार बढ़ाने पर बल दिया है। इस दौरान दोनों पक्षों ने चार अरब 80 करोड़ डॉलर (424 अरब येन) कर्ज के समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें 70 करोड़ डॉलर का कर्ज समझौता मुंबई मेट्रो लाइन-तीन के लिए हुआ है, जबकि बाकी आठ विभिन्न परियोजनाओं के लिए है।
यात्रा के दौरान दौरान सिंह ने कहा कि यह देखना जरूरी है कि समुद्री रास्ता खुला हो और सुरक्षित भी, ताकि मध्य पूर्व से तेल का आयात ठीक ढंग से किया जा सके। भारत का जापान से रिश्ता सिर्फ आर्थिक वजहों से नहीं, बल्कि क्षेत्र में शांति और स्थायित्व के लिए जापान हमारा सहयोगी है।