सूर्य नमस्कार के विरोध के मायने

अनंत भटनागर
अनंत भटनागर

सूर्य नमस्कार का विरोध उर्दू अध्यापक कर रहे हैं यह बात उतनी ही हास्यप्रद है जितनी सूर्य नमस्कार की अनिवार्यता।

तार्किक रूप से समझें तो सूर्य नमस्कार की अनिवार्यता के पीछे भी उसी वैज्ञानिक सोच का अभाव है जिसके शिकार विरोध करने वाले और समर्थन करने वाले दोनों ही हैं।
योग का सामान्य सिद्धान्त यह कहता है कि योग हमेशा खाली पेट किया जाना चाहिए। ऐसे में स्कूल रोज़ाना आने वाले विद्यार्थियों को क्या स्कूल खाली पेट आना संभव हो सकता है।इस पर कोई विचार नहीं किया गया है।
इस निर्णय को लेने के पीछे क्या कोई शिक्षा,योग व चिकित्सकों की समिति से कोई राय ली गयी?इसकी कोई जानकारी नहीं है।
सूर्य नमस्कार तथान्य योग स्वस्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं इस पर कोई संदेह नही किया जा सकता।और कोई अच्छी पद्धति है तो उसका धर्मिक भावना के नाम पर विरोध किया जाना मूर्खता है।मगर स्कूलों में रोज़ाना की अनिवार्यता किये जाने की व्यवहारिकता को भी जाना परखा जाना चाहिए।

दरअसल यह एक राजनीतिक निर्णय है ।इसी कारण उसके विरोध में भी राजनीति खड़ी हो गयी है।
योग की तरह ही जीवन में कला संगीत साहित्य आदि विभिन्न विधाओं का महत्व है।क्या इन सबको प्रतिदिन के कार्यक्रम में सम्मिलित किया जा सकता है?
प्रायः स्कूलों में सप्ताह भर के कर्यक्रम में इन सब के कालांश एक या दो दिनआते हैं ।योग को भी आजकल स्कूलों में फिजिकल एक्टिविटी के अंतर्गत सिखाया जाता है।यह उचित भी है।इसके अतिरिक्त ग्रीष्मवकाश में विभिन्न योग प्रशिक्षण भी निशुल्क लगते हैं।विद्यार्थी उन्हें वहां भी सीख सकते हैं।
प्रतिदिन की अनिवार्यता के लिए स्कूल प्रधानाचार्यों व अध्यापकों से भी पूछा जाना चाहिए कि इसके लिए पर्याप्त व्यवस्था है भी या नही।
इसके बिना अनिवार्यता दिखावटी ही सिद्ध होगी

उर्दू अध्यापक हों या कांग्रेस दोनो का विरोध केवल विरोध की भावना से संचालित हो रहा है।उन्हें वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत करने चाहिए।
अनंत भटनागर की फेसबुक वाल से साभार

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