सवाल ये उठता है कि राज्य के शिक्षा मंत्री जैसे महत्वपूर्ण ओहदे पर बैठे देवनानी से इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई। या फिर जानबूझकर उन्होंने इस शब्द का दुरुपयोग किया। हालांकि फैसला तो हाईकोर्ट ही करेगा कि उनका नाम से पहले प्रोफेसर लगाना उचित है या नहीं, मगर याचिका में जो तथ्य दिए गए हैं, वे तो चौंकाते ही हैं। जैसा कि मीडिया में आया है कि देवनानी की ओर से यह स्वीकार किया गया कि उनके पास प्रोफेसर की शैक्षिक योग्यता और डिग्री नहीं है, लेकिन लोग उन्हें प्रोफेसर के नाम से बुलाते हैं, इसलिए उन्होंने अपने नाम से पहले प्रोफेसर शब्द लगा रखा है, बड़ा अजीब सा है। अव्वल तो जब वे प्रोफेसर हैं नहीं तो उन्हें खुद ही लोगों को उन्हें प्रोफेसर कहने से रोकना चाहिए था। उलटे उन्होंने खुद को प्रोफेसर कहलवा कर गलत बात को प्रोत्साहित किया। एक आम चालबाज अगर ऐसा करता तो भी गंभीर बात है, मगर इस मामले की गंभीरता और अधिक हो जाती है, क्योंकि देवनानी एक राज्य के शिक्षा राज्य मंत्री हैं। इतना तो उन्हें भी भान रहा होगा कि इस प्रकार प्रोफेसर शब्द का उपयोग सर्वथा गलत है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि उन्होंने इतने महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज कर दिया? जो कुछ भी हो जब से वे राजनीति में आए हैं, उन्होंने इस शब्द के बहाने हाईली एजुकेटेड होने का लाभ तो ले ही लिया है। उन्हें महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल से अधिक सम्मान इस कारण भी मिलता रहा है कि वे बहुत पढ़े-लिखे हैं। अगर कोर्ट का फैसला उनके विपरीत आता है तो इसका मतलब ये होगा कि वे श्रीमती भदेल से कम पढ़े लिखे हैं। श्रीमती भदेल ने तो आट्र्स में मास्टर डिग्री ली है, जबकि वे इंजीनियरिंग में बेचलर डिग्री लिए हुए हैं।
कोर्ट का फैसला जो भी हो, मगर फिलहाल तो उनकी बहुत किरकिरी हो गई है। सोशल मीडिया पर तो उन्हें झोलाछाप प्रोफेसर तक की संज्ञा दी जा रही है, जैसे एमबीबीएस किए बगैर कई नीम हकीम फर्जी डिग्री लेकर अपने नाम के आगे डॉक्टर शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें झोलाछाप डाक्टर कहा जाता है। जैसे ही देवनानी से संबंधित यह खबर आई, तुंरत सोशल मीडिया पर छा गई। लोगों ने चटकारे ले लेकर इस पर टिप्पणियां कीं।
-तेजवानी गिरधर
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