भारत भले ही अपने आपको विश्व का भूतपूर्व जगद्गुरु कहकर मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में खोया रहे किंतु वास्तविकता यह है कि भारत में हर माता दुखी दिखाई दे रही है। हिन्दू माताएं चाहती हैं कि उनके बच्चे शराब न पियें किंतु उनकी कौन सुन रहा है! उत्तर प्रदेश में न्यायालय के आदेश से शराब की दुकानों को हाईवे से हटा दिया गया, किंतु वे कहाँ जायेंगी, इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। पता चले भी तो कैसे, न्यायालय ने तो कुछ बताया नहीं और सरकार को कुछ सूझता नहीं। इसलिये शराब की दुकानें चुपचाप रातों-रात हाईवे से चलकर गांव-कस्बों और नगरों के गली मुहल्लों में आकर सज गईं। बड़ी उम्र वाले तो हाईवे से शराब खरीद ही लाते थे, अब बच्चे भी खरीदने और पीने लगे। अब भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर से कह सकते हैं- देखी मेरे गरीबों की अमीरी!
जब गांवों में शराब के भभके उठने लगे तो लगभग पूरे उत्तर प्रदेश की माताएं हाथों में डण्डे लेकर शराब की दुकानों पर पिल पड़ीं। जगह-जगह दंगों जैसी स्थिति बन गई। फंस गये बिचारे मुख्यमंत्री योगी। क्या करें? कैसे बंद करें शराब की दुकानों को? अभी-अभी तो किसानों के 30 हजार करोड़ रुपयों के कर्ज माफ करके बैठे हैं। सरकार तो पैसों से चलती है, शराब से मिलने वाला राजस्व, सरकार की कमाई का मोटा जरिया ठहरा। किशोर कांत जैसे चुतर सुजान अब आकर सरकारों को कोई नुस्खा क्यों नहीं सुझाते कि सांप कैसे मरे और लाठी कैसे बची रहे!
कुल मिलाकर स्थिति ये है कि सरकार शराब बेचना बंद नहीं कर सकती। कोर्ट उन्हें हाईवे पर चलने नहीं दे सकती। माताएं उन्हें गांवों में रहने नहीं दे सकतीं। इसलिये मेरा सुझाव है कि सरकार जिला कलक्टर कार्यालयों की देखरेख में पुलिस थानों, आबकारी चौकियों और अस्पतालों में शराब बेचने की व्यवस्था करे। पता लग जायेगा कितने वीर-बहादुर शराब पी पाते हैं! पुलिस वाले, आबकारी वाले और अस्पताल वाले अपने आप इन लोगों से निबट लेंगे। आखिर अंग्रेजों ने कलक्टर नामक जो व्यवस्था स्थापित की थी उसका उसका मूल काम रेवेन्यू कलक्ट करना ही तो था! पर्यटन से जुड़ी सरकारी संस्थाएं तो वैसे भी शराब बेचती ही हैं।
मुस्लिम माताएं इसलिये दुखी हैं कि वे तीन तलाक से मुक्ति चाहती हैं किंतु भाई लोग हैं कि मानते ही नहीं। कहते हैं कि इंसान इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, ये तो उसका ही हुक्म है जिसने ये सारी कायनात बनाई है। यानी कि कोर्टों से भी ऊपर की कोर्ट। अरे बाप रे! अब उससे कौन उलझे! किंतु मुस्लिम माताएं अपनी बात पर अड़ी हुई हैं, कहती हैं कि ये सब मुल्ला मौलवियों का खोला हुआ धंधा है, ऊपर वाले का कोई हुकुम नहीं है, मुल्ला-मौलवी लोग ऊपर वाले के नाम पर अपनी रोटियां सेक रहे हैं।
गाय माता इसलिये दुखी है क्योंकि पुलिस और प्रशासन को वे ट्रक ही दिखाई ही नहीं पड़ते जिनमें गायें जिबह करने के लिये कत्लखानों को ले जाई जाती हैं। इसलिये राजस्थान जैसे शांत प्रदेश में भी 20 हजार के लगभग युवक हाथों में लाठियां लेकर, राज्य से बाहर जाने वाली सड़कों की दिन-रात निगहबानी करते हैं। गायों से भरा ट्रक दिखाई देने पर ये पुलिस को सूचना देते हैं। पुलिस की हालत ये है कि वह कानून से ज्यादा परम्परा का ध्यान रखती है इस कारण वह हमेशा घटना को पूरी घट लेने के बाद ही वहां पहुंचती है। यानी कि जब तक पुलिस, गौरक्षकों के फोन सुनकर वहां आती है, तब तक गौरक्षक और तस्करों के बीच मामला चरम पर पहुंच चुका होता है। जब कोई तस्कर मर जाता है तो लोग इन गौ-रक्षकों को गुण्डा कहने लगते हैं।
गौ-माता सब देख और समझ रही है कि इससे तो पहले वाला जमाना ही अच्छा था जिसमें गौ-माता की रक्षा के लिये प्राण हथेली पर रखने वाले गोगाजी पीर और तेजाजी वीर के नाम से पूजे जाते थे।
जब सरकार ने हर जिले में साक्षरता कार्यक्रम चलाया था तब गांव-गांव में जन सामान्य में से आखर दूत नियुक्त किये थे और स्थान-स्थान पर आखर देवरा बनाये थे। तो क्या जन सामान्य अपनी मर्जी से गौ-माता की रक्षा के लिये गौरक्षक नियुक्त नहीं कर सकता और गौरक्षा चौकियां नहीं बना सकता। सौ बातों की बात ये है कि पुलिस और प्रशासन गौ-तस्करों को पकड़ ही नहीं पा रहा, अन्यथा इन सब चीजों की नौबत ही नहीं आती।
सरकारी तंत्र को भले ही न हो, वोटों के उपासकों को भले ही न हो किंतु इन सब माताओं से भारत के आम आदमी की सहानुभूति है और रहेगी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
63, सरदार क्लब योजना,
वायुसेना क्षेत्र, जोधपुर
9414076061