गुप्त स्थानों पर शराब का भाण्डारण शुरू

रात्रि 08.00 बजे बाद शराब की दुकानों पर बिक्री पर आचार संहिता और जिला प्रशासन का कोई असर नहीं, गुप्त स्थानों पर शराब का भाण्डारण शुरू

राजेश टंडन एडवोकेट
राजेश टंडन एडवोकेट
अजमेर जिले में उपचुनाव को लेकर समय-समय पर आचार संहिता के पालक, केन्द्रीय चुनाव आॅब्ज़र्वर और जिला प्रशासन ने कई बार अपील की कि आचार संहिता का पूर्णतः पालन हो और शराब की दुकानें निश्चत समय पर रात्रि 08.00 बजे बन्द हो जाएं, परन्तु शराब के ठेकेदारों की कान पर जूं ही नहीं रेंग रही, वो इसे हमेशा की भांति गीदड़ भभकी ही मान रहे हैं और कोई भी जिला प्रशासन के आदेशों का प्रसंज्ञान नहीं ले रहा है,* आबकारी विभाग तो अपना राजस्व बढ़ाने के चक्कर में वैसे भी कुछ नहीं कहता और शराब की लिफ्टिंग पर ही जोर देता है, अगर किसी वजह से शराब की लिफ्टिंग कम हो जाए तो आबकारी विभाग दुकानदारों से अनुनय-विनय करके शराब की लिफ्टिंग बढ़वाता है और कई तरह के प्रलोभन शराब के दुकानदारों को देता है और यह आश्वासन देता है कि जिला प्रशासन से डरने की आवश्यकता नहीं है, हम ऊपर से आबकारी आयुक्त महोदय से सरकार के द्वारा जिला प्रशासन को कहलवा देंगे, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा और पुलिस को तो वैसे भी दुकानों पर जाने की पाॅवर ही नहीं है यह बात कहकर पुलिस अपना पीछा छुड़वाती है और अपना हिस्सा दुकानदारों से नियमित ले जाती है, दुकानदार भी समझते हैं कि यह मसला छदम् धर्मनिरपेक्षता की भांति है, बिना पुलिस है की सरपरस्ती के हम दुकान नहीं चला सकते हैं और *पुलिस के पास धारा 151 सीआरपीसी तो सदा ही है जिसमें कभी भी ग्राहक, दुकानदार, सेल्समैन को पकड़कर ले जा सकते हैं, अंगे्रजों ने 200 साल तक इसी 151 सीआरपीसी के तहत भारत पर राज किया था, रात की बिक्री दिन से ज्यादा और बहुत फायदेमंद होती है, रात की बिक्री में शराब ज्यादा रेट पर बेची जाती है जिससे मुनाफा जो दिन में 20 प्रतिशत होता है व रात में 40 से 50 प्रतिशत तक हो जाता है और रात को दुकान बन्द करके साईड की खिड़की या पीछे के दरवाजे से बिना पुलिस की सरपरस्ती के शराब बेची नहीं जा सकती, इसके लिए पुलिस मंथली के रूप में बहुत बड़ी राशि और बेगार में शराब की बोतलें दुकानदारों से लेती है और दुकानदार बीट काॅन्सटेबल से लेकर पूरे पुलिस थाने को उसके पद के अनुसार राज़ी रखती है, यह एक सतत् प्रक्रिया है।*
*चुनाव के दिनों और गणतंत्र दिवस के दिन ड्राई-डे को देखते हुए संबंधित दुकानदारों ने अपनी क्षमता व मांग के अनुसार शराब का भण्डारण शुरू कर लिया है और गुप्त स्थानों पर देसी व अंग्रेजी शराब रखनी शुरू कर दी है ताकि मांग के अनुसार उसकी पूर्ति की जा सके और आखिरी समय में कोई परेशानी ना हो, यह हाल तो शहरों का है और गांवों की स्थिति तो इससे भी ज्यादा विकट है, निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग कितने भी मार्गदर्शन और आचार संहिताएं लगाए परन्तु बिना शराब शायद ही कभी कोई चुनाव हुआ हो जिसमें शराब ना बँटी हो, ऐसे में चुनाव आयोग के चुनाव आॅब्ज़र्वर महोदय व जिला प्रशासन की बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है कि वे कानून की पालना कराएं, क्यों कि जब सरकार ही चुनाव लड़ रही हो तो निर्वाचन अधिकारी के कन्धों पर सारा भार आ जाता है और उसे अपने दायित्वों का निर्वहन करने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है क्यों कि ‘‘वहीं सास की खाट और वहीं बहू का पीसना‘‘, चुनाव तो दिनांक 29.01.18 को खत्म हो जाएंगे, फिर रहना तो अजमेर में सरकार की मर्जी से ही पड़ेगा, ऐसे में बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने पड़ते हैं* क्यों कि पुलिस तो कभी भी पार्टी बनती ही नहीं है, सदा बच्चू भाई के तांगे में बैठ जाती है और कभी अपने ऊपर जिम्मेदारी नहीं लेती है – *यह कह कर कि शराब के दुकानदारों पर, शराब बिक्री रोकने पर हमें कोई कानूनी अधिकार नहीं है, सरकार ने एक सर्कूलर जारी कर रखा है कि आप तो सिर्फ पैसे खाओ, बाकी काम दूसरे विभाग करेंगे, इसके तहत हम लोग कर्तव्यपरायण हैं और किसी तरह का कोई भी जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं, अगर आप हमसे काम कराना चाहते हो तो सरकार से नियमों में संशोधन करवा लाओ और हमें पाॅवर दिलवाओ कि पुलिस भी शराब की दुकानों पर केस बना सकती है नहीं तो *‘‘माल खाए मदारी और मार खाए बन्दर‘‘ वाली कहानी चरितार्थ होती है।*
*चुनाव की निष्पक्षता और आचार संहिता पर प्रश्न चिन्ह ना लगे इसलिए निर्वाचन विभाग, चुनाव आयोग, जिला प्रशासन, केन्द्री चुनाव आॅब्ज़र्वर को समय रहते कार्यवाही करनी चाहिए, ताकि निष्पक्ष चुनाव हो सकें, न्यायहित में और जनहित में।*
राजेश टंडन अजमेर

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