ग्रामीणों की रोटी छीनकर भर रहे हैं अखबारों का पेट

news paperआजकल जनप्रतिनिधियों के आगमन, या किसी योजना की घोषणा होने मात्र से ही पंचायतीराज संस्थानों की ओर से बधाई एवं हार्दिक अभिनंदन के सजावटी विज्ञापन प्रकाशन की नई परंपरा शुरू हो गई है। नियमानुसार सजावटी, बधाइयों या शुुभकामनाओं के विज्ञापन वे ही पंचायतीराज संस्थान प्रकाशित करवा सकते हैं जिनकी ‘निजी आयÓ हो। प्रश्न ये उठता है कि क्या हमारी पंचायतीराज संस्थाओं की इतनी निजी आय है कि ये करोड़ों रुपए की राशि का भुगतान अखबारों को कर सकती हैं। एक पूर्व सरपंच से जब बात की तो उन्होंने कहा कि एक बार मुझसे भी पांच हजार का विज्ञापन देने को कहा गया लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि इतनी राशि से तो गांव के एक गरीब का महीने भर पेट पल जाएगा। जिला समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ ने इस विषय पर कहा कि वे तो सरपंचों को सजावटी विज्ञापन नहीं प्रकाशित कराने के लिए समय-समय पर आग्रह करते रहते हैं। चेताते भी हैं कि भविष्य में ऑडिट आब्जेक्शन लगा तो विज्ञापन राशि का भुगतान सरपंचों से ‘रिकवरÓ किया जाएगा। रिकवरी से बेखौफ ये सरपंच अपने ‘आकाओंÓ के निर्देश पर यह सजावटी विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित कराते हैं। प्रदेश भर के आकलन पर नजर डालें तो करोड़ों रुपए की जो राशि ग्राम एवं ग्रामीणों के विकास के लिए सरकार मुहैया करा रही है, उसका एक बड़ा अंश इन समाचार पत्रों के धन्ना सेठों के गल्ले में चला जाता है।
-प्रवेश शर्मा, प्रबंध संपादक, दैनिक न्याय सबके लिए

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