प्रथम गुरु है मां अपनी

मोहन श्रीवास्तव
मोहन श्रीवास्तव

दुनिया मे रिश्ते अनेकों हैं,
पर मां का रिश्ता महान है ।
पशु-पक्षी,मानव या कोई जीव,
वो सब की जीवन दान है ॥

गर्भ मे जब आता है जीव,
तब से ही वो पालन करती ।
कितने कष्टों को झेल-झेल कर,
वो अपने उदर से, हमे पैदा करती ॥

बचपन से लेकर, जवानी तक,
वो पलकों मे, हमे बिठाती है ।
खुद भुखे रह, जाती है वो,
पर हमे तो खुब ,खिलाती है ॥

प्रथम गुरु है ,मां अपनी,
जो हमे जग मे ,जीना सिखाती है ।
हर मुश्किल की घड़ी, मे वो,
हमे अपने सीने मे, छिपाती है ॥

संसार सदा ही, रहा है ऋणी,
कोई मां के कर्ज को, ना उतार सका ।
वो ईन्सान सदा, रहते हैं सुखी,
जो पाते हैं  मां से, आशिर्वाद सदा ॥
जो पाते हैं मां से ,आशिर्वाद सदा  ॥

-मोहन श्रीवास्तव,
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