एंटी करप्शन ब्यूरो ने जिस तरह प्रॉपर्टी डीलर मनोज गिदवानी के जरिए न्यास सदर नरेन शहाणी को फांसने की कोशिश की है, उस पर शहर में कानाफूसी है कि कहीं ये उनका अजमेर उत्तर का टिकट काटने का खेल तो नहीं है? हालांकि मोटे तौर नजर यही आता है कि ब्यूरो ने उपलब्ध सबूतों के आधार पर ही कार्यवाही की होगी, मगर जिस मामले में सरकार की ओर से मनोनीत न्यास सदर भी लपेटे में आ रहे हों, उसमें कार्यवाही करने से पहले जरूर सरकार को अवगत कराया होगा। अनुमान है कि सरकार की हरी झंडी मिलने के बाद ही इस कार्यवाही को अंजाम दिया गया होगा।
कानाफूसी है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने चहेते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को अजमेर उत्तर का टिकट देने केलिए उनके रास्ते का कांटा दूर करने के लिए कार्यवाही की इजाजत दी होगी, क्योंकि भगत ही इस टिकट के सबसे प्रबल दावेदार माने जाते हैं। समझा जाता है कि पूरे पांच साल तक अपने चहेते को कुछ खास इनाम से वंचित रखने के बाद उन्होंने यह सोचा होगा कि आगे न जाने सरकार आए या नहीं, कम से कम अपने खासमखास को तो ऑब्लाइज करने का रास्ता साफ कर दिया जाए। वैसे ये भी माना जा रहा था कि चूंकि भगत को न्यास सदर पद दे कर कांग्रेस की सेवा का इनाम दिया जा चुका था, इस कारण उनको टिकट दिए जाने की संभावना नहीं थी, मगर ताजा कार्यवाही के बाद उनका टिकट काटना उनके लिए आसान हो जाएगा।
2 thoughts on “कहीं ये भगत का टिकट काटने का खेल तो नहीं?”
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टिकट कटना या नहीं कटना मायने नहीं रखता है ….मायने रखता है जनता के साथ हो रहा खेल जिसे या तो नरेन् जी रोक नहीं पाए या स्वयं उस में लिप्त थे ….
दोनों ही स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण हैं ….
पहली ये कि यदि वे रोक नहीं लगा पा रहे तो उन में अच्छे लीडर के गुण नहीं हैं और फिर वे विधायक बन के अजमेर के लिए भी पिछले जनप्रतिनिधियों की तरह दुर्भाग्यपूर्ण ही रहते ….
दूसरा ये कि यदि वे इस भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो अच्छा हुआ कि वे बेनकाब हो गए और अजमेर की राजनीति से एक भ्रष्ट का जनाज़ा निकला …..
पिक्चर अभी बाकी है …
तेल देखिये तेल की धार देखिये ….
अभी कुछ concrete हुआ ही कहाँ है …..
अजमेर की सुप्त जनता को किसी ने झकझोरा भर है ……
जगती दिख तो नहीं रही है ….
नरेन् जी के लिए शुभ संकेत …..
सही लिखा है कीर्ति जी आपने