पत्रकारों को रियायती दर पर भूखंड आवंटन करने की सरकार की योजना ने इन दिनों उदयपुर के पत्रकारों की ऐसी साख गिराई है कि वरिष्ठ पत्रकार आने वाले पत्रकार और पत्रकारिता के बारे में सोचने पर मजबूर हो गए हैं। ऐसा उदयपुर के उन चंद पत्रकारों के कारण हुआ है जो अपने आप को पत्रकारों का नेता मानते हैं। मगर दो खबर लिखने को बोला जाए तो उनका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। ऐसे पत्रकारों ने उदयपुर के उन वरिष्ठ पत्रकारों को आहत कर दिया है, जो लम्बे अरसे से पत्रकारिता से जुड़े हैं और एक मिशन के रूप में काम कर रहे हैं। अखबार चाहे बड़ा हो या छोटा पत्रकार के काम करने का तरीका, उसकी लिखी हुई खबर, उसकी पकड़, ईमानदारी व सक्रियता उसकी पहचान बनाती है। उदयपुर में ऐसे कई पत्रकार हैं, जिनकी इन सभी कारणों से शहर के हर वर्ग में साख बनी हुई है।
मगर पिछले कुछ समय से कुछ लोग स्वयंभू पत्रकार बन शहर में गुंडागर्दी व ब्लैकमेलिंग पर उतर आए हैं। इस कारण कई पत्रकारों की वर्षों की तपस्या पर पानी फिर गया है। हाल ही का एक उदाहरण लें, भूखंड आवंटन के नाम पर लेकसिटी प्रेस क्लब के कुछ स्वयंभू पत्रकारों ने नगर विकास प्रन्यास में न केवल उत्पात मचाया, बल्कि एक वरिष्ठ आरएएस अफसर के साथ गुंडा तत्व की तरह बदतमीजी की। इस घटना से उत्पात मचाने वालों पर तो कोई असर नहीं हुआ, मगर आम आदमी व प्रन्यास स्टाफ पत्रकारों को कोसने लगा है।
आम आदमी सवाल उठा रहे हैं कि ये कैसे पत्रकार और ये कैसी पत्रकारिता है! हमने इतने सालों में ऐसे पत्रकार नहीं देखे। पत्रकार ही यदि गुंडागर्दी पर उतर आएंगे तो समाज व शहर का क्या होगा। लोगों का कहना है कि नियमों की दुहाई देने वाले पत्रकार ही अब नियम तोड़ कर फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। लोगों के इन सवालों से उन फर्जी पत्रकारों पर तो कोई असर नहीं पड़ रहा है, लेकिन शहर के वरिष्ठ पत्रकारों का सिर शर्म से झुकने लगा है। वे मजबूर हो गए हैं ऐसे पत्रकारों के बारे में सोचने पर जो सिर्फ प्लॉट लेने के लिए ही पत्रकार व पत्रकारों का सरगना बन कर घूम रहे हैं। कोर्ट ने भी भूखंड आवंटन प्रक्रिया को निरस्त कर दिया है। इससे पत्रकारों के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वालों की हकीकत भी सामने आ गई। इससे लोग और ज्यादा मजे लेकर पत्रकारों की शहर भर में हंसी उड़ा रहे हैं। http://www.bhadas4media.com से साभार
अंश यादव
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