बार-बार हिट विकेट होने पर क्यों आमादा है भाजपा?

bjp logo-तारकेश कुमार ओझा- क्रिक्रेट के मैदान में तेजी से रन बनाने के चक्कर में आपने कई खिलाडि़यों को हिट विकेट होते देखा होगा। राजनीति के मैदान में काफी हद तक ऐसी स्थिति भारतीय जनता पार्टी की नजर आ रही है। अटल बिहारी वाजपेयी के स्वणिर्म काल को छोड़ दें, तो 2004 से पार्टी नेता सत्ता पाने की बेताबी में अपने ही विकेट पर बैट मारने जैसी गलती दोहराना चाहते हैं।

वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव की बात करें, तो फील गुड व स्वर्णिम भारत के नारे के साथ भाजपा समेत राजग के घटक दल भी उस समय जोश से भरे हुए थे। लेकिन उस चुनाव में पार्टी नेताओं ने एक बड़ी गलती सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर सवाल उठा कर और इसे मुद्दा बना कर की।

भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री सुषमा स्वराज ने उस साल दक्षिण भारत के बेल्लारी में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और दूसरे नेताओं की तर्ज पर सोनिया के विदेशी मूल को जोर-शोर से उठाया। लेकिन अंत में देश वासियों ने विदेशी मूल के भाजपा के नारे को नकार दिया और कांग्रेस संप्रग के घटक दलों की सहायता से सरकार बनाने की स्थिति में आ गई। उस समय जरूरत जनता की नब्ज को समझने की थी। देशवासियों का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस और नेहरू परिवार में आस्था रखता है। भारतीय संस्कृति भी बहू के मूल पर सवाल नहीं खड़ी करती। लिहाजा वहीं हुआ, जो होना था। सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर सवाल उठाने के चलते विरोध के बजाय कांग्रेस और गांधी प रिवार को उलटे लोगों की सहानुभूति ही मिल गई। जिसका खामियाजा भाजपा समेत राजग के घटक दलों को भुगतना पड़ा।

अब बात करते हैं 2009 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव की, तो उस समय भी परिस्थितयां काफी हद तक कांग्रेस के प्रतिकूल और भाजपा के अनुकूल रही। लेकिन तब भी भाजपा के नीति नियंताओं ने  जल्दबाजी में हिट विकेट होने जैसी गलती ही दोहराई। भाजपा ने तत्कालीन सरकार की खामियों को उजागर करने के बजाय ज्यादा जोर लालकृष्ण आडवाणी को पीएम इन वेटिंग और मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित करना शुरू किया और बड़बोलेपन पर उतर आए। तब भी भाजपा नेता यह समझने में भूल कर बैठे कि व्यवस्था विरोधी लहर पैदा करने से दूसरे मुद्दे वैसे ही गौण हो जाते हैं। लेकिन इस पर जोर देने के बजाय मनमोहन सिंह पर आक्षेप का सिलसिला भी अंततः भाजपा की जड़ में मट्ठा डालने का ही कार्य किया।

अब बात करते हैं वतर्मान दौर की। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि अभी भी परिस्थि तियां काफी हद तक भाजपा के अनुकूल है। लेकिन इसके नेता एक बार फिर 2004 और 2009 दोहराने पर आमादा हैं। सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं, यह महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए। सरकार की नाकामियों पर फोकस कर सत्ता में आने के बाद बड़ी सहजता से प्रधानमंत्री का चुनाव हो सकता है। लेकिन भाजपा नेता तो जैसे रन बनाने की बेताबी में अपने ही विकेट पर बैट मारने पर आमादा हैं।
http://www.bhadas4media.com से साभार

लेखक तारकेश कुमार ओझा दैनिक जागरण से जुड़े हुए हैं.

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