पत्रकार और नेता अब लाशों को लेकर राजनीति कर रहे हैं

kedarnathटीवी और अखबार वाले पिछले हफ्ते भर से सिर्फ बाढ़ और विनाश को ही दिखाए चले जा रहे हैं। कुछ सीमित फुटेज हैं और फोटो हैं। बस उन्हीं को बार-बार रिपीट करते हैं। मेरी पांच साल की नातिन दिन भर टीवी पर वही दृश्य देखा करती है, यहां तक कि वो खेलने भी नहीं जाती न उसकी अब अपने पीएसपी में दिलचस्पी बची है। बस न्यूज चैनल, अखबार वह पढ़ भी नहीं पाएगी। उसे टीवी न्यूज के एडिक्ट होने का रोग लग गया है।

इससे टीवी और अखबार वाले तो इस बिपदा के बूते अपना प्रसार बढ़ा लेंगे लेकिन जिन लोगों को उन्होंने दर्द पहुंचाया है उसे महसूस कर पाएंगे? बार-बार बाढ़ और पीडि़त लोगों को दर्द दिखाकर ये टीवी वाले क्या बताना चाह रहे हैं? हम बाबाओं और सरकार की आलोचना तो करते हैं पर वहां मीडिया के लोग क्या कर रहे हैं? सरकार की तो जिम्मेदारी बनती है लेकिन बाबा लोग क्या करें? रामदेव भले कुछ नहीं कर रहे हों मगर कुछ लोग जिंदा हैं तो रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी और कुंड के आश्रमों के बूते। कुछ यह बता रहे हैं, कुछ नहीं क्योंकि बाधाएं पार कर मिडिल क्लास जब किसी तरह बचकर आता है तो कभी भी वह किसी के प्रति आभार नहीं जताता उलटे ऐसी-ऐसी कमियां बताएगा मानों साक्षात नर्क में गया हुआ था। पर भाई आप वहां क्या करने गए थे?

केदारनाथ के शिव के दर्शन करने अथवा मौज मस्ती करने। उधर ये पत्रकार और नेता अब लाशों को लेकर राजनीति कर रहे हैं। बिहार के मंत्री अश्वनी चौबे तीर्थ करने गए थे तो अपने बाडीगार्ड और गनर को क्यों ले गए थे? क्या वहां भी उन्हें जान का खतरा था? और वह बेचारा गनर मारा गया उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? क्रिकेटर हरभजन सिंह को अभी क्या जल्दी थी हेमकुंड साहब जाने की? उनके कारण रेस्क्यू टीम का ज्यादा ध्यान उनकी तरफ लगा रहा। अब कह रहे हैं कि बाबा की मेहरबानी से वे बच गए। अगर रेस्क्यू टीम उन्हीं पर तवज्जो न देती तो अपने बूते बचकर दिखाते। एक तो कभी भी किसी को तीर्थ स्थान पर अतिरिक्त तवज्जो नहीं मिलनी चाहिए। और मीडिया को अगर जाना है तो वह अपने साधनों से ही जाए और प्रशासन से मदद न मांगे। उत्तराखंड के मंत्री हरक सिंह रावत केदारनाथ जाकर मृतकों और ध्वस्त हुए मंदिर की फोटो खींच रहे थे। जाहिर है वे अपने साथ पेड पत्रकारों को भी ले गए थे। प्रदेश सरकार के लिए तो यह बिपदा एक तरह से वरदान है अब जितना पैसा राहत कोष में आएगा उसका बड़ा हिस्सा तो सरकार के अगुआ की खजाने में चला जाएगा। राहत करानी है तो उसमें आम लोग लगाए जाएं अफसर नहीं तो शायद रोटी पानी पीडि़तों तक पहुंच पाएगी।

कभी टीवी व अखबार वालों ने उनकी पीड़ा नहीं दिखाई जिन्हें हेलीकॉप्टर में जगह नहीं मिली। हेलीकॉप्टर पर सवार करने के लिए पहली प्रियारिटी किसे मिलती है जो खाते-पीते वर्ग के हैं। जो बच कर आ गए हैं उन्होंने जंगलों में दिन कैसे काटे इससे बेहतर है टीवी और अखबार के संवाददाता रुद्रप्रयाग और कुंड के उन जंगलों में जाएं और देखें कि जो लोग वहां फंसे हैं वे बिना खाना और पीने के पानी के दिन कैसे काट रहे हैं? http://bhadas4media.com

वरिष्‍ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्‍ल के एफबी वॉल से साभार.

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