भारत के राज्य पंजाब में पढ़ाई करने वाली 21 साल की एक छात्रा एक दिन पहले अपने हॉस्टल के कमरे में पंखे से लटकी हुईं पाई गईं. वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर थी- आँखों में कंप्यूटर इंजीनियर बनने का सपना था.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उसके कमरे में नोट रखा था जिसमें लड़की ने आरोप लगाया है कि कॉलेज के दो पूर्व छात्र कथित तौर पर फेसबुक पर उनके बारे में आपत्तिजनक कमेंट करते थे और परेशान करते थे.
फिलहाल मामले की जाँच हो रही है ताकि पता चले कि आत्महत्या की असल वजह क्या है. लेकिन इस तरह की घटनाएँ साइबर बुलिंग जैसे गंभीर मामलों पर चिंता ज़रूर खड़ी करती हैं.
फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों ने युवाओं के लाइफस्टाइनल और तौर तरीकों पर गहरा असर डाला है. एक ओर जहाँ इन माध्यमों ने एक दूसरे से संपर्क में रहना, जानकारियाँ बाँटना और आसान बना दिया है, वहीं सोशल नेटवर्किंग साइट्स अपने साथ साइबर बुलिंग जैसी समस्याएँ भी लाई हैं.
फेसबुक और टिवटर जैसे नए माध्यमों को देखते हुए भारतीय साइबर कानून में किस तरह के प्रावधान हैं?
साइबर कानून से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं, “भारत ने वर्ष 2000 में अपना सूचना प्रोद्यौगिकी कानून पारित किया था. तब सोशल नेटवर्किंग साइटों का चलन नहीं था. 2008 में इस कानून में कुछ संशोधन जरूर हुए हैं. धारा 66 ए के तहत साइबर बुलिंग के केवल कुछ मामलें कवर होते हैं. अगर आप अपने मोबाइल या कम्प्यूटर के जरिए कोई आपत्तिजनक संदेश या सामग्री भेजेत या प्रकाशित करते हैं जो मानसिक आघात पहुँचाता है तो ये अब दंडनीय अपराध है.”
पर क्या ये प्रावधान काफी हैं?
पवन दुग्गल कहते हैं, “साइबर अपराध से जुड़े कानून कारगर नहीं है. आप देखिए कि साइबर बुलिंग के लिए केवल तीन साल की सजा हो सकती है और पांच लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान हैं. और तो और ये बेलेबल ऑफेंस है यानी इसमें जमानत हो सकती है. मतलब ये कि अपराधी को लगता है कि अगर मुकदमा दर्ज हो भी गया तो जमानत मिल ही जाएगी. चूँकि कड़ी सज़ा नहीं है इसलिए लोगों के मन में डर नहीं है.”
मनोवैज्ञानिक असर
साइबर बुलिंग की बात छोड़ भी दें तो इसके अलावा भी निजी जीवन पर सोशल नेटवर्किंग साइटों के असर को लेकर कई चिंताएँ हैं.
आपमें से कुछ को शायद बंगलौर के आईएमए में पढ़ने वाली मालिनी का किस्सा याद होगा. पिछले साल इस होनहार लड़की ने आत्महत्या कर ली थी.
रिपोर्टों के मुतबिक मालिनी का अपने बॉयफ्रैंड के साथ ब्रेकअप हुआ और सुबह जब वो उठी तो लड़के ने कथित तौर पर फेसबुक पर लिखा था, “मैं सुपर कूल महसूस कर रहा हूँ. मैंने अपनी एक्स-गर्लफ्रैंड को छोड़ दिया है. हैप्पी इंडिपेनडेंस डे.” इसके बाद मालिनी ने आत्महत्या कर ली.
आजकल बहुत से युवा अपने निजी जीवन का एक-एक पल फेसबुक, ट्विटर पर खुल्ल्म खुल्ला जीते हैं….इस तरह निजी जिंदगी आपकी न रहकर सार्वजनिक हो जाती है.
सामाजशास्त्रियों का मानना है कि फेसबुक और ट्विटर पर आपके जीवन का हर पहलू दुनिया के सामने रहता है, अनजान लोगों से दोस्तियाँ बढ़ रही हैं..ऐसे में साइबर बुलिंग की आशंका भी बढ़ जाती है.
क्या है फेसबुक जैसी कंपनियों की भूमिका
साइबर बुलिंग के मामलों में इलेक्ट्रॉनिक सबूत अदालत में स्वीकार किया जाता है यानी अगर कोई संदेश या सामग्री आपने अपने अकाउंट से भेजते हैं तो ये कोर्ट में आपके खिलाफ जा सकता है.
बुलिंग के मामलों में फेसबुक या अन्य सोशल नेटवर्किंग कंपनियों की क्या जिम्मेदारी होती है. विशेषज्ञ पवन दुग्गल बताते हैं, “पुलिस या अदालत चाहे तो इन कंपनियों से पुलिस मामले से संबंधित जानकारी माँग सकती है. अगर कंपनी जानकारी नहीं देती है तो कोर्ट में उन्हें सह अभियुक्त के तौर पर पेश किया जा सकता है.”
साइबर बुलिंग के मामले भारत तक सीमित नहीं है. ब्रिटेन की निकोला ब्रुक नाम की एक लड़की ने साइबर बुलिंग को लेकर मुश्किल लड़ाई लड़ी है. फेसबुक पर हो रही जबरदस्त साइबर बुलिंग से परेशान उन्होंने पुलिस का सहारा लिया. लेकिन वहाँ भी बात नहीं बनी तो निकोला ने कानूनी लड़ाई लड़ी जिसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि सोशल नेटवर्क साइट उन अनाम लोगों की पहचान करे जो निकोला के खिलाफ फेसबुक पर दुष्प्रचार कर रहे थे.
उस समय फेसबुक ने साइबर बुलिंग के बारे में बीबीसी से कहा था, “हम यूर्जर्स पर सक्रिय रूप से नज़र नहीं रखते, ये मुश्किल काम है. जब हमें कोई शिकायत मिलती है तो हमें पता चल जाता है कि कोई व्यक्ति पहचान छिपाने संबंधित नियमों का उल्लंघन कर रहा है.जैसे उस व्यक्ति के कई अकाउंट होते हैं, उसकी फ्रेंड रिक्वेस्ट कई लोगों ने ठुकरा दी होती है.लेकिन फेसबुक ने ये नहीं बताया था कि उसने कितने अकाउंड निलंबित किए हैं.
आज जब सोशल नेटवर्किंग साइटों की छाप कदम कदम पर है, साइबर बुलिंग का खतरा हमेशा बना रहता है. पवन दुग्गल जैसे कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आप कभी बुलिंग का शिकार हों तो सबसे पहले तो फेसबुक या उस कंपनी को सूचित करें और फिर कानूनी सहारा लें लेकिन इससे घबराकर कोई गलत कदम उठाने की जरूरत नहीं है, जरूरत है तो इससे जुड़े भारतीय कानून को और कड़े करने की.