विदिषा/ स्थानीय मेघदूत टॉकीज में जारी श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य महोत्सव परम्परागत श्रद्धा-भक्तिभाव से धूमधामपूर्वक मनाया गया। नवजात षिषु श्री कृष्ण की लीला के प्रदर्षन से श्रद्धालु श्रोता अभिभूत हो उठे। इस संदर्भ में भागवताचार्य पं. रविकृष्ण शास्त्री ने कहा कि पृथ्वी पर जब पापों की पराकाष्ठा हो गई और कंस के अत्याचारों से प्राणियों में हाहाकार मच गया तब पृथ्वी भगवान के श्री चरणों में पहुंची और पृथ्वीवासियों के उद्धार की प्रार्थना की। इस प्रार्थना को स्वीकार कर भगवान ने माता देवकी पिता वासुदेव के यहां आठवी संतान के रूप में अवतार लिया। वे सुपुत्र चाहे देवकीजी और वासुदेवजी के थे, परन्तु उनका पालन-पोषण यषोदाजी और नन्दलालजी के यहां नन्दग्राम में हुआ।
पं. रविकृष्ण शास्त्री ने आज की कथा में कहा कि भगवान भक्तों के उद्धार के लिए ही जन्म लेते हैं, अवतरित होते हैं। परमेष्वर इतने दयालु हैं कि भक्त द्वारा उनके चरण पकड़ने अथवा चरणरज में शीष रखने से ही वे भक्त पर संपूर्ण कृपा-अनुकम्पा की वर्षा कर देते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक प्राणी में परमेष्वर का वास होता है। इसके बाद भी लोग मांस-मदिरा का सेवन करते हैं, जिससे ये परम अपवित्र तथा दूषित वस्तुएं मनुष्य के भीतर विराजमान भगवान तक भी पहुंचती हैं। उन्होंने कहा कि भगवान श्री षिवषंकर ने जब समुद्र मंथन से उत्पन्न विष का पान किया तो उस विष को अपने गले के नीचे नहीं उतरने दिया, ताकि वह विष उनके हृदयात्मा में विराजित परमेष्वर तक नहीं पहुंच सके। पं. शास्त्री ने कथा में प्रातःकाल बिस्तर से उठते ही सर्वप्रथम धरती माता की चरण वन्दना के साथ माता-पिता और अन्य पूजनीय परिजनों के चरण स्पर्ष की महत्ता पर प्रकाष डाला। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण द्वारा गजेन्द्र मोक्ष्य की कथा भी सुनाई। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार गजेन्द्र की पुकार पर भगवान दौड़े-दौड़े उसे बचाने पहुंचे, ठीक वैसे ही उनके किसी भी भक्त की भी वैसी ही पुकार पर वे उस भक्त का संकट हरण करने पहुंचने में कोई बिलम्व नहीं करते हैं।
पंचम दिवस 5 मई को नन्दोत्सव, नंद-नंदन की बाल लीलाएं, पूतना आदि उद्धार, गोवर्धन उत्सव की कथा होगी।
-अमिताभ शर्मा
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