गोवर्धन पर्वत धारण की लीला ने दर्षकों को मंत्रमुग्ध किया

govardhan parvatKathavachak p. RavikrishanJiRadha Krishanविदिषा – स्थानीय मेघदूत टॉकीज में पांचवे दिन जारी श्रीमद् भागवत कथा में भागवताचार्य पं. रविकृष्ण शास्त्री ने पूतना बध की कथा सुनाते हुए कहा कि जब उसकी अंत्येष्ठि की गई तो उसके शरीर से चंदन की सुगन्ध आ रही थी, क्योंकि उसका उद्धार स्वयं भगवान के कर-कमलों द्वारा हुआ था।
भगवान श्री कृष्ण के प्राकट्य की कथा विगत दिवस ही हुई, परिणामस्वरूप नवजात षिषु श्री कृष्ण के दर्षन करने पहुंचने में भगवान श्री षिवषंकर ने विलम्ब नहीं किया और आज भगवान श्री षिव कथास्थल पहुंच गए। आज की कथा में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत धारण करने की लीला का मंचन भी हुआ। कथा के मुख्य यजमान धर्मेन्द्र सक्सेना (धन्नू भैया) के सुपुत्र प्रथम सक्सेना ने इस लीला में श्रीकृष्ण का स्वरूप धारण कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। इसी प्रकार अजीत सिंह सिकरवार के सुपुत्र सागर सिकरवार ने बलरामजी की भूमिका का प्रभावी निर्वाह किया। चंगु-मंगु शर्मा ने सुदामा चरित्र की लीला को अत्याकर्षक बना दिया। वहीं राधारानी बनी काव्या ने अपनी सहेलियों खुषी और अपूर्वा के साथ लीला चित्रण में चार चांद लगा दिए। इस अवसर पर पं. सुनील दुबे गढ़ी, पं. सुनील शर्मा तथा पं. राहुल आचार्य ने श्रीमद् भागवत का मूलपाठ किया। आज की कथा की एक और भी विषेषता रही, वह यह कि विदिषावासी प्रवचनकर्ता पं. अंकितकृष्ण शास्त्री भी कथा में उपस्थित हो गए और उन्होंने भी प्रवचन किया।
भागवताचार्य पं. रविकृष्ण शास्त्री ने महर्षि शुकदेवजी द्वारा राजा परीक्षित की शंका के समाधान का स्मरण कराते हुए कहा कि पिछले जन्म में पूतना राजा बली की पुत्री रतनमाला थी और राजा बली ने जब भगवान को अपने पास बुलाया था तब रतनमाला ने मन ही मन कामना की थी कि इतने सुन्दर भगवान उसके जीवन में आएं और उसका कल्याण करें। भगवान ने उसकी उसी मनोकामना की पूर्ति करते हुए उसे परम मोक्ष्य प्रदान किया था, जिससे उस राक्षसी की मृत देह से चंदन की सुगन्ध निकल रही थी। उन्होंने कहा कि वृंदावन में भगवान अपने मंदिर में बांके नामक एक भक्त से आंखों-आंखों में बात करते रहते थे। इसकी जानकारी पुजारी को भी नहीं थी। एक दिन भगवान बांके के साथ चल दिए। संध्याकाल में जब पुजारी को भोग लगाते समय भगवान मंदिर में नहीं मिले तो वह उन्हें ढूंढ़ने निकल पड़ा। पुजारी को भगवान यमुना किनारे बांके के साथ मिले पुजारी ने जब उनसे मंदिर चलने की प्रार्थना की तो भगवान ने कहा कि अब तो मैं वहीं रहूंगा जहां बांके चाहेगा। इस पर बांके ने कहा कि मैं भी अकेला हूं, मंदिर ही चलते हैं और तब से वृंदावन में वे बांके बिहारीलाल के नाम से बांके भक्त के साथ रहते हैं।
पं. शास्त्रीजी ने कहा कि हम सनातन धर्मी लोग पत्थर में भी भगवान के दर्षन करते हैं। भक्त प्रहलाद की प्रार्थना पर भगवान पत्थर से प्रकट हुए। भावना अच्छी हो, भक्तिपूर्ण हो तो पत्थर में भी भगवान के दर्षन होते हैं। कंस द्वारा भेजे गए बवंडर राक्षस को पत्थर में ही भगवान की अनुभूति हुई थी। उन्होंने कहा कि स्वामी करपात्री जी महाराज कहते थे आपके पापों को कोई नहीं काट सकता। महाराजा दषरथ को भगवान पुत्र के रूप में प्राप्त हुए, फिर भी दषरथजी के पाप नहीं कटे। हाँ, भक्ति, वंदना, आराधना से अवष्य पापों का क्षय हो सकता है। गौमाता की सेवा भी पापों से मुक्ति दिलाती है।
आज षष्ठम दिवस 6 मई को रास पंचाध्यायी, कंसोद्धार, उद्धव बृजगमन, द्वारिका निर्माण, रूकमणी मंगल की कथा होगी।
-अमिताभ शर्मा
मीडिया प्रभारी
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