आज़म खां तहरीक-ए-आज़म का सुनहरी मुस्तक़बिल

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abdullah bhaiabdullahबकौल-ए-समाजवादी पार्टी के सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम के “मो.अब्दुल्लाह आज़म खां सिर्फ एक नौजवान इंजीनियर नहीं है और न ही यह हालात के बदनुमा मिजाज़ से पैदा होने वाला गुस्सा हैं बल्कि मो.अब्दुल्लाह आज़म खां तहरीक-ए-आज़म का सुनहरी मुस्तक़बिल और कल हैं , चूंकि मो.अब्दुल्लाह आज़म खां के वालिद मो.आज़म खां साहब भी अपनी नौ उम्री से आज तक कभी एक शख्स नहीं बल्कि हमेशा एक तहरीक,उसूल और कमज़ोरों की इज्तिमाई आवाज़ बनकर गरजते रहे हैं !मो.आज़म खां साहब जब चुनाव आयोग के ज़ुल्म का शिकार हुए हैं , इस हालत में करोड़ों ज़ख़्मी दिलों को अपने हाथों में मरहम लेकर अपने जुमलों में वलवला और इन्किलाब की सदायें लेकर मो.अब्दुल्लाह आज़म खां का आना तहरीक-ए-आज़म का आने वाला कल साबित होता है ! मफककरीन सोचे,ज़ालिम पहचाने और तहरीक-ए-आज़म के दुखीः दिल इत्मीनान की सांस ले ..”
INTRO 2- यह एक कड़वा सच है कि जब लोकतंत्र का तंत्र तानाशाह हो जाता है तब लोक सड़कों पर इन्साफ की जंग अपने मौलिक अधिकारों की हिफाज़त के लिए आरंभ कर देता है ! तारिख गवाह है जब-जब हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी मुल्क में तंत्र तानाशाह हुआ है तब-तब लोक सडको पर आया है और इस लोक तथा तंत्र की जंग में जीत हमेशा लोक की ही हुई है!
देश में आज भी आंदोलन से निकले नेता भारतीय राजनीत का नेतृत्व कर रहे है इसी प्रकार जब जंतर-मंतर पर आज़म खां के समर्थक और लोकतंत्र के प्रहरी जमा हुए तब एक नया चेहरा या यूं कहें की एक नया नेतृत्व,नए जोश के साथ,जवानी के खुमार की बेड़ियों को तोड़ता हुआ वैचारिक प्रतिबद्धता का इज़हार करता नज़र आया ,जिसने अपने वालिद की तरह ही जिस्म की रगों में दौड़ते हुए लाल लावे को जुमलों के ज्वालामुखी के रूप में पुरजोश और पुरहोश अंदाज़ में तहरीक-ए-आज़म के सिपाहियों और आंदोलन कारियों के सामने पेश किया ! जब वालिद मो.आज़म खान ने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार की बहाली के लिए सदा-ए-इन्किलाब बुलंद की थी तब मुल्क पर राज करने वालों के सिंहासन हिल गये थे ! उसी अंदाज़ में जब मो.अब्दुल्लाह आज़म खां ने जंतर-मंतर पर इन्किलाब ज़िंदाबाद का नारा बुलंद किया तब भी इसकी गूँज पूरे मुल्क में सुनायी पडी जिससे तानाशाहों के कलेजे थर्रा उठे और मौजूद आंदोलनकारियों के अंदर भी ऐसा जोश का समंदर भरा कि उनका लहू उबाल लेने लगा और यह जोश मारता लहू किसी आंदोलनकारी की आँख से आंसू बनकर बाहर निकला तो किसी आंदोलनकारी के जिस्म का रोम-रोम उठ खड़ा हुआ
मो.आज़म खां कई बार अपनी तकरीरों में कहते थे कि नए दौर की राजनैतिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए तंत्र के तानाशाहों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए मुझे उसी तरह के जज़्बे और इरादे वाले नौजवानों की दरकार है जिस तरह के बच्चे जंग-ए-बदर के वक़्त अपने पंजों पर खड़े हो कर जाम-ए-शहादत के ज़ौक़ में खुद को पेश कर रहे थे ! मो.आज़म खां की यह तलाश जंतर-मंतर पर खत्म हुई और एक ऐसा नौजवान जंतर-मंतर पर मो.अब्दुल्लाह आज़म खां के रूप में मो.आज़म खां को मिला है जिसकी वलवला अंगेज़ तक़रीर ने यह साबित कर दिया कि नए दौर के अबु जहल के खात्मे के लिए वह नौजवान अपने पंजों पर खड़ा हो चुका है जिसकी तलाश न सिर्फ मो.आज़म खां बल्कि हिदुस्तान के २५ करोड़ कमज़ोरों को थी !
जिस तरह अँगरेज़ का ज़ुल्म तारिख का सियाह बाब है और महात्मा गांधी तथा खान अब्दुल गफ्फार खान के आंदोलन इसी तारिख के सुनहरी हिस्से हैं ! जिस प्रकार इंदरा गांधी की इमरजेंसी हिन्दुस्तानी सियासी तारिख का बदनुमा दाग है और जे.पी.,लोहिया और राजनारायण दवरा इस बर्बरियत के खिलाफ की गयी जंग इसी तारिख का चमकता हुआ अध्याय है ! इसी प्रकार जब आने वाली हिन्दुस्तानी सियासी तारिख को तारीखदां कलम बंद करेगा तब चुनाव आयोग की इस तानाशाही को वह सियाह सियाही से एक काले अध्याय के रूप में लिखेगा और इसी आंदोलन से निकले मो.अब्दुल्लाह आज़म खां को भी एक सुनहरी अध्याय के रूप में वह आने वाली नस्लों के सामने पेश करेगा !
हिन्दुतान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इन दिनों लोकतंत्र का सबसे बड़ा महाकुंभ यानी लोकसभा चुनाव में देश व्यस्त है ! लेकिन चुनाव के इस समर में मो.आज़म खां जैसे प्रभावी वक्ता की वाणी पर चुनाव आयोग ने रोक लगा रखी है , एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग के तानाशाह रवैये के चलते उस समाज के नेतृत्व को रोका जा रहा है जिस समाज के लिए जस्टिस सच्चर ने लिखा कि इनकी शैक्षिणिक,आर्थिक और सामाजिक हालत दलितों से बदत्तर है ! चुनाव आयोग के सब पर करम और हम पर सितम वाले रवैये से मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान का एक बड़ा धर्मनिरपेक्ष तबका स्वयं को ठगा महसूस कर रहा है ! शायद इसी कारण पूरे हिन्दुस्तान से आंदोलन करी हज़ारों की तादाद में दिल्ली के जंतर-मंतर पर आज़ादी के बाद पहली बार चुनाव आयोग के खिलाफ लामबंद हुए !
चूंकि यह एक कड़वा सच है कि जब लोकतंत्र का तंत्र तानाशाह हो जाता है तब लोक सड़कों पर इन्साफ की जंग अपने मौलिक अधिकारों की हिफाज़त के लिए आरंभ कर देता है ! तारिख गवाह है जब-जब हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी मुल्क में तंत्र तानाशाह हुआ है तब-तब लोक सडको पर आया है और इस लोक तथा तंत्र की जंग में जीत हमेशा लोक की ही हुई है !
हर बार इस तरह के आन्दोलनों ने देश और दुनिया को कई नामचीन तथा भारतीय राजनैतिक इतिहास के वह महानायक प्रदान किये है जिन्हे चाह कर भी तारीख को मिटाने वाले नहीं मिटा सकते ! तंत्र की तानाशाही के विरोध के कारण ही जे.पी.,लोहिया और राजनारायण जैसे महान व्यक्तित्व भारतीय राजनीत को प्राप्त हुए है और आज भी भारतीय राजनीत के ज़्यादातर प्रभावी चेहरे इन लोगों के या तो अनुयायी है या फिर इनके द्वारा चलए गए आंदोलन के हिस्सेदार, तो क्या यह कहना गलत होगा ? की देश एक बार फिर एक नए राजनैतिक आंदोलन के मुहाने पर तंत्र की तानाशाही के खिलाफ आ कर खड़ा हो गया है , जहां से मुल्क के दबे कुचले समाज को इकठ्ठा कर उनकी आवाज़ को बंद करने का दुष्कृत्य करने वाले तानाशाहों के खिलाफ राजनीतिक जंग (आंदोलन) का आगाज़ हो चुका है !
मो.आज़म खां की ज़ुबान पर लगाई गयी चुनाव आयोग की पाबंदी के बाद तमाम हिन्दुस्तान में चुनाव आयोग के पुतले दहन और चुनाव आयोग के तानाशाही ऐलान के खिलाफ धरने-प्रदर्शन का जो सिलसिला जारी हुआ है वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है ! महाराष्ट्र में धरना-प्रदर्शन और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन तो मप्र में मुंह पर काली पट्टी बाँध कर चुनाव आयोग के खिलाफ शांती मार्च के साथ राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन, बिजनौर उप्र में मानव रक्त के हस्ताक्षर के साथ राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन और पूरे उप्र में भूख हड़ताल तथा आन्दोलनों के बीच दिल्ली के जंतर-मंतर पर हज़ारों की तादाद में आंदोलनकारियों का प्रदर्शन , यह बता रहा है कि मुल्क के २५ करोड़ कमज़ोर भी अब अपने हक़ और अपने कायद के वक़ार की जंग लड़ना सीख गए है !
यह तमाम आंदोलन उसी कायद के लिए हो रहे है जिन्होंने अपने बचपन,लड़कपन और जवानी को आन्दोलनों की भट्टी में तपा कर स्वयं को उस मुक़ाम पर ला कर खड़ा किया है कि जिसकी जुर्रत के आगे दुनिया का सबसे ताक़तवर मुल्क अमेरिका तक नतमत्सक हो चुका हो , जिसकी प्रशासनिक क्षमताओं ने दुनिया की सबसे बड़ी शैक्षणिक संस्था हारवर्ड यूनीवर्सिटी तक को हैरत में डाल दिया हो !
जैसा कि मैने ऊपर कहा है कि देश में आज भी आंदोलन से निकले नेता भारतीय राजनीत का नेतृत्व कर रहे है इसी प्रकार जब जंतर-मंतर पर आज़म खां के समर्थक और लोकतंत्र के प्रहरी जमा हुए तब एक नया चेहरा या यूं कहें की एक नया नेतृत्व,नए जोश के साथ,जवानी के खुमार की बेड़ियों को तोड़ता हुआ वैचारिक प्रतिबद्धता का इज़हार करता नज़र आया ,जिसने अपने वालिद की तरह ही जिस्म की रगों में दौड़ते हुए लाल लावे को जुमलों के ज्वालामुखी के रूप में पुरजोश और पुरहोश अंदाज़ में तहरीक-ए-आज़म के सिपाहियों और आंदोलन कारियों के सामने पेश किया ! जब वालिद मो.आज़म खान ने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार की बहाली के लिए सदा-ए-इन्किलाब बुलंद की थी तब मुल्क पर राज करने वालों के सिंहासन हिल गये थे ! उसी अंदाज़ में जब मो.अब्दुल्लाह आज़म खां ने जंतर-मंतर पर इन्किलाब ज़िंदाबाद का नारा बुलंद किया तब भी इसकी गूँज पूरे मुल्क में सुनायी पडी जिससे तानाशाहों के कलेजे थर्रा उठे और मौजूद आंदोलनकारियों के अंदर भी ऐसा जोश का समंदर भरा कि उनका लहू उबाल लेने लगा और यह जोश मारता लहू किसी आंदोलनकारी की आँख से आंसू बनकर बाहर निकला तो किसी आंदोलनकारी के जिस्म का रोम-रोम उठ खड़ा हुआ जब यह दृश्य मैं अपनी आँखों से देख रहा था तब मुझे यह अहसास हुआ कि मो.आज़म खां अपनी जज़्बाती तकरीरों में इस्लामी तारिख से जुड़ा एक वाक्या सुनाया करते है कि “जब जंग-ए-बदर की तैयारी हो रही थी और आक़ा-ए-नामदार,सरवर-ए-कायनात हुज़ूर-ए-अकरम सल्ला. जंग में जाने वालों का चयन कर रहे थे तब दो मासूम और कम उम्र बच्चे भी जंग पर जाने की चाहत में अपने पंजों पर खड़े हो रहे थे और यह तमन्ना थी कि वह भी जंग-ए-बदर में शरीक होकर इस्लाम का परचम लहराए “!
मो.आज़म खां कई बार अपनी तकरीरों में कहते थे कि नए दौर की राजनैतिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए तंत्र के तानाशाहों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए मुझे उसी तरह के जज़्बे और इरादे वाले नौजवानों की दरकार है जिस तरह के बच्चे जंग-ए-बदर के वक़्त अपने पंजों पर खड़े हो कर जाम-ए-शहादत के ज़ौक़ में खुद को पेश कर रहे थे ! मो.आज़म खां की यह तलाश जंतर-मंतर पर खत्म हुई और एक ऐसा नौजवान जंतर-मंतर पर मो.अब्दुल्लाह आज़म खां के रूप में मो.आज़म खां को मिला है जिसकी वलवला अंगेज़ तक़रीर ने यह साबित कर दिया कि नए दौर के अबु जहल के खात्मे के लिए वह नौजवान अपने पंजों पर खड़ा हो चुका है जिसकी तलाश न सिर्फ मो.आज़म खां बल्कि हिदुस्तान के २५ करोड़ कमज़ोरों को थी !
जिस तरह अँगरेज़ का ज़ुल्म तारिख का सियाह बाब है और महात्मा गांधी तथा खान अब्दुल गफ्फार खान के आंदोलन इसी तारिख के सुनहरी हिस्से हैं ! जिस प्रकार इंदरा गांधी की इमरजेंसी हिन्दुस्तानी सियासी तारिख का बदनुमा दाग है और जे.पी.,लोहिया और राजनारायण दवरा इस बर्बरियत के खिलाफ की गयी जंग इसी तारिख का चमकता हुआ अध्याय है ! इसी प्रकार जब आने वाली हिन्दुस्तानी सियासी तारिख को तारीखदां कलम बंद करेगा तब चुनाव आयोग की इस तानाशाही को वह सियाह सियाही से एक काले अध्याय के रूप में लिखेगा और इसी आंदोलन से निकले मो.अब्दुल्लाह आज़म खां को भी एक सुनहरी अध्याय के रूप में वह आने वाली नस्लों के सामने पेश करेगा !
मो.आमिर अंसारी की कलम से…..
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