पति की प्रताडऩा : पीडि़त विवाहिता ने लगाई गुहार

1सीहोर। कई सालों से अपने पति की प्रताडऩा सहन करने वाली पीडि़त विवाहिता ने पुलिस प्रशासन को आवेदन देकर न्याय दिलाने की गुहार लगाते हुए कहा कि उसका पति कई सालों से मकान पर जबरन कब्जा करने को लेकर उसको प्रताडि़त कर रहा है।
इस संबंध में जानकारी देते पुराना बस स्टैंड विश्वकर्मा मंदिर के पीछे रहने वाली विवाहिता लतीवन बी का कहना है कि उनका पति शफीक पिछले कई सालों से उसको घर से बेदखल करना चाहता है। विवाहिता का कहना है कि उसके तीन लड़की और एक लड़का है और वहां बड़ी विषमता में अपना गुजर बसर कर रही है, लेकिन उसका पति आए दिन उसको बेघर करने के लिए धमकी देता है और गुंडे लाता है। विवाहिता ने इस संबंध में कोतवाली थाना प्रभारी से संबोधित एक आवेदन देकर उसकी और परिवार की सुरक्षा के साथ शीघ्र ही न्याय की गुहार लगाई है।

परमात्मा ही सुख का स्वरूप है: पंडित प्रदीप मिश्रा
prpr.1सीहोर। परमात्मा ही सुख का स्वरुप है। जगत भोगों में इन्द्रियों को जो सुख जान पड़ता है, वह क्षण भंगुर, परिणामों में दुखदाई, मन बुद्धि को मलिन एवं चंचल करने वाला है। अत: परमात्मा की प्राप्ति के लिए भरसक कोशिश करनी चाहिए। माया के सुख वास्तव में उस परमात्मा की खोज करने के लिए साधनमात्र हैं इस के अतिरिक्त इनका उपयोग करने से परमात्मा से दूर होना है। उक्त विचार शहर के बड़ा बाजार में अग्रवाल पंचायती भवन में जारी श्रीमद् भागवत कथा में प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे। शुक्रवार को कथा के दौरान छप्पन भोग का आयोजन किया। शनिवार को भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी विवाह का आयोजन किया जाएगा।
पंडित श्री मिश्रा ने आगे कहा कि मनुष्य का पूरा जीवन मोह-माया में गुजर जाता है। भगवान माया या पैसे से नहीं मिलते, भगवान भावना, भक्ति, त्याग, तपस्या से मिलते हैं। भागवत कथा का श्रवण मोक्ष देता है। कथा श्रवण करते समय मन एकाग्रचित्त होना चाहिए। राम-कृष्ण जैसे महापुरुषों का गुणगान शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनका तो जीवन चरित्र ही शिक्षा का पाठ पढ़ाता है। महापुरुषों की त्याग तपस्या का एक प्रतिशत हम अपने जीवन में आत्मसात कर लें और उस पर चलना शुरू दें तो जन्म-जन्म का कल्याण होना निश्चित है। कथा में छप्पन भोग का महत्व बताते हुए श्री मिश्रा ने कहा कि मोह-माया को छोड़कर छप्पन भोग रूपी प्रसादी को ग्रहण करना चाहिए। परमात्मा का प्रसाद ही हमारे लिए सेवन लायक है।
भगवान भाव के भूखे है
कथा के दौरान पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि इस जीवन में कुछ भी काम नही आएगा। भगवान को धन दौलत नहीं चाहिए। वह तो भावना के भूखे हैं। मन में यदि प्रेम है तो पाषाण में प्रभु दिखाई देते हैं। भगवान को हम प्रेम रूपी जंजीर में बांध सकते हैं। बालक धु्रव को उसकी सौतेली मां अपमान कर पिता की गोद से नहीं उतारती तो वह भगवान से नहीं मिल पाता। राग द्वेष मन से दूर कर ही कोई व्यक्ति संत बन सकता है। जब तक हम परमात्मा के नाम का अंशदान नहीं करते तब तक सुख समृद्धि नहीं मिल सकती। अच्छे काम और आचरण संकट के समय काम आते हैं।
संत की वाणी में अमृत
पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया कि संत का स्वभाव सरल होता है। संत वाणी बोलता है तो पहले चिंतन करता और फिर अभिव्यक्त करता है। संत सदैव निरपेक्ष होता है। निंदा स्तुति, हर्ष-शोक से वह परे होता है। राजा-रंक, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच संत के लिए समकक्ष है। संत सतत आत्मकल्याण में संलग्न रहता है। संत किसी के गुलाम नहीं होते। प्यासा कुएं के पास जाता है, कुआं प्यासे के पास नहीं आता। इसलिए हर दिवस कथा का श्रवण करना चाहिए और उसके हिसाब से जीने की कला सीखना चाहिए।

रुक्मणी विवाह का आयोजन आज
इस संबंध में विठ्लेश्वर सेवा समिति के पदाधिकारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी विवाह का आयोजन किया जाएगा। कथा दोपहर दो बजे से पांच बजे तक जारी रहती है।
santosh gengele

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