भोपाल गैस त्रासदी मामले में फैसला सुरक्षित


भोपाल गैस त्रासदी मामले में मध्यप्रदेश सरकार एवं केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से पेश पुनर्विचार याचिका पर कल यहां जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुषमा खोसला की अदालत में बहस समाप्त हो गई. इसके तहत अदालत को यह तय करना है कि तत्कालीन यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के अधिकारियों पर किन धाराओं के तहत आपराधिक मामला चलाया जाए.

जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुषमा ने बहस पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है. अदालत में सीबीआई की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता हरेन्द्र रावल और राज्य सरकार की ओर से विवेक अग्रवाल ने अपना-अपना पक्ष रखा. रावल ने पहली बार अदालत में माना कि गवाही होने के बाद सीबीआई की ओर से धारा 304 भाग दो में सजा दिए जाने की मांग नहीं की गई. मामले में आए साक्ष्य को देखते हुए निचली अदालत को मामले को सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय भेज देना चाहिए था.

उल्लेखनीय है कि सात जून 2010 को भोपाल की मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी अदालत द्वारा धारा 304 ए के तहत कारबाइड के केशव महेन्द्रा सहित सभी आठ आरोपियों को दो-दो वर्ष की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक ‘क्यूरेटिव पिटीशन’ दायर की थी, जिसमें सभी आरोपियों पर धारा 304 भाग दो के तहत मामला कायम करने का अनुरोध किया गया था. शीर्ष अदालत ने यह कहकर इस याचिका को 11 मई 2011 को खारिज कर दिया था कि इसे सत्र न्यायालय में दायर किया जाए.

इस पर सीबीआई ने भोपाल के जिला एवं सत्र न्यायालय में यह याचिका दायर की थी. सीबीआई ने माना था कि आरोपियों को जिन धाराओं में सजा दी गई है, वह त्रासदी को देखते हुए काफी हल्की हैं, जबकि अपराध इससे कहीं अधिक गंभीर है.

याचिका पर जिला एवं सत्र न्यायालय में कल सुनवाई पूरी हो गई और सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश सुषमा खोसला ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है.

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