मृत्यु से संघर्ष कर रही श्रीहरि वृद्धाश्रम की अज्ञात विकलांग वृद्धा

1विदिषा। नगर के कुछ सेवाभावी युवकों को विगत 4 दिसम्बर को नगर में लगभग 80 वर्षीय एक भयाक्रांत अज्ञात विकलांग वृद्धा भटकती मिली। उन युवकों ने उसे उसी दिन श्रीहरि वृद्धाश्रम में भर्ती कराया था। इन बुद्धिजीवी युवाओं में कुछेक के पत्रकार होने से इस वृद्धा की दयनीय दुर्दषा का सचित्र समाचार विभिन्न समाचार-पत्रों में व्यापक रूप से अगले दिवस ही प्रकाषित होने के बाद भी उस वृद्धा का कोई परिजन आज तक वृद्धाश्रम नहीं आया है। परिजनों ने चाहे उसकी कोई सुधि नहीं ली, पर वृद्धा ने तत्काल वृद्धाश्रम को अपना घर बना लिया और वो वहां आराम से रहने भी लगी, परन्तु वृद्धाश्रम की सभी विषेष सुविधाओं की सुलभता के बाद भी उसकी अति वयोवृद्धावस्था, अस्वस्थता तथा विकलांगता ने उसे विगत दिवस गंभीर रूप से बीमार कर दिया।
श्रीहरि वृद्धाश्रम सेवा समिति की अध्यक्षा श्रीमती इन्दिरा शर्मा के अनुसार वृद्धा के परिजनों की अनुपस्थिति के कारण वृद्धा नियमित दैनिक उपचार के बाद भी मानसिक तथा शारीरिक रूप से भी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पा रही थी। अपने चार पुत्रों तथा भरे-पूरे परिवार की चर्चा व चिंता करते हुए वह 16 दिसम्बर को अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गई। परिणामस्वरूप श्रीमती इन्दिरा शर्मा, वेदप्रकाष शर्मा तथा उनके सहयोगियों द्वारा उसे गोद में उठाकर आश्रम के बाहर लाकर एक निजी वाहन से तत्काल जिला चिकित्सालय पहुंचाया गया। चिकित्सकों ने भी उसे तुरन्त भर्ती कर अविलम्ब चिकित्सा प्रारंभ की, पर उसे सर्वोत्तम चिकित्सा से भी स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल रहा है और वह लगातार लगभग बेसुध चल रही है। चिकित्सालय में उसकी स्थिति इतनी गंभीर है कि वह ना किसी को पहचान पा रहा है और ना कुछ बोल पा रही है। बस, अपने बेड पर पड़ी अंतिम सांसें गिनती प्रतीत होती है। इसके बावजूद वृद्धाश्रम उसकी सेवा-सुश्रूषा करते हुए चिकित्सा से चमत्कारी लाभ की आषा लगाए हुए है। वैसे, ऐसे किसी चमत्कार की संभावना क्षीण ही प्रतीत होती है।
श्रीमती इन्दिरा शर्मा के अनुसार इस वृद्धा ने अपना नाम रामकली बाई बताया है तथा उसका दाहिना हाथ कोहनी के पास से कटा हुआ है, क्योंकि वृद्धा के अनुसार काफी पहले जब वह अपने घर थी, तब उसे किसी सांप ने उस हाथ में काट लिया था, जिससे हाथ के सड़ने पर उसे कटवाना पड़ा था। इस वृद्धा की भाषा तथा बोलचाल से वह मालवा क्षेत्र के किसी स्थान की निवासी प्रतीत होती है। ऐसा लगता है कि उसकी अंतिम आषा अपने बेटों, परिजनों से मिलने की ही है, पर उसके परिजन तो इतने निष्ठुर हैं कि अब तक उसकी किसी ने सुधि तक नहीं ली है और वह समाजसेवियों की सेवा में ही अपना अंतिम समय व्यतीत करने विवष है।

वेदप्रकाष शर्मा

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