मोदी की पैरवी के बावजूद कार्यकारिणी से हटाई गईं स्‍मृति

smriti_iraniनई दिल्ली. केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर रखने की वजह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नाराजगी बताई जा रही है। पीएम मोदी ने ईरानी को कार्यकारिणी में बनाए रखने की पुरजोर कोशिश की थी, लेकिन वह नाकामयाब रहे। संघ की जिद के आगे अमित शाह भी कुछ नहीं कर सके और आखिरकार स्मृति को बाहर होना पड़ा।
दिल्ली में हार के बाद झुके मोदी
भाजपा सूत्रों के अनुसार, दिल्ली के हालिया चुनाव में मिली हार के बाद मोदी को संघ नेताओं के सामने झुकने पर मजबूर होना पड़ा। मोदी ने संघ नेताओं को यह आश्वासन दिया था कि ईरानी भविष्य में संघ के निर्देशों का पालन करेंगी। इसके बावजूद संघ ने उनकी बात नहीं मानी।
कहां पिछड़ गईं ईरानी
सूत्रों के मुताबिक, बतौर मानव संसाधन मंत्री ईरानी से संघ की अपेक्षा एनसीईआरटी की किताबों में बदलाव कराने की थी। जर्मन की जगह संस्कृत को सिलेबस में शामिल कराना था, लेकिन इस पर विवाद हो गया और ईरानी को पीछे हटना पड़ा। उन्हें गीता के अंशों को भी केंद्रीय और राज्य पाठ्यक्रम में शामिल कराने के लिए कहा गया, लेकिन वे यहां भी विफल रहीं। शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप उन पर लगा।
केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में संघ से जुड़े लोगों को नियुक्त कराने का प्रयास भी सफल नहीं हो पाया। ईरानी पर आरोप लगा कि वह एक ऐसे व्यक्ति को नागपुर के राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान का प्रमुख बनाना चाहती हैं, जो खुद को संघ का कार्यकर्ता बताते हुए स्मृति की चाटुकारिता कर रहा था। दिक्कत तब और बढ़ गई जब बीजेपी ने भी ईरानी से किनारा कर लिया। बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें यह संकेत दिया कि वह चाटुकारिता नहीं, बल्कि योग्यता को बढ़ावा दें। इसके बाद ईरानी ने पिछले साल के अंत तक संघ की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
संघ ने सितंबर में मध्य प्रदेश की एक यूनिवर्सिटी के कुलपति को कश्मीर विवि. का कुलपति बनाने को कहा। इस कुलपति पर बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ताओं ने हमला किया था और इस मामले में इन दोनों संगठनों के कई नेता फंस सकते थे। संघ चाहता था कि यह कुलपति इन संगठनों के नेताओं के काम को नजरअंदाज कर दे। लेकिन संघ की इच्छा के खिलाफ जाते हुए ईरानी ने इस पीड़ित कुलपति को ऑफर तक नहीं भिजवाया।
सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली चुनाव में हार के बाद मोदी का गुणगान करने वाले नेताओं पर संघ ने लगाम कस दी है। बीजेपी अध्यक्ष शाह को राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों के चयन में मनमानी न करने के निर्देश दे दिए गए। संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ईरानी की जगह अगर कोई अनुभवी मंत्री होता तो संघ शिक्षा क्षेत्र में जो बदलाव चाहता था, वो भी हो जाता और विवाद भी नहीं होता।
बता दें कि गुरुवार को घोषित बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 188 नेताओं को जगह दी गई है। इसमें अन्य सदस्यों के अलावा बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व उप मुख्यमंत्री और विशेष अतिथि शामिल हैं। 11 महिलाएं राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हैं, जो कुल सदस्यों का 10 प्रतिशत भी नहीं हैं। केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया गया है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ…
राजनीतिक मामलों के जानकार और दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. विनय प्रकाश के मुताबिक, आरएसएस के लोग हमेशा ये कहते हैं कि बीजेपी में उनका दखल नहीं रहता। लेकिन भगवाकरण के साथ संघ के लोगों की शिक्षा क्षेत्र में नियुक्तियां देखने को मिलीं। यह सीधे तौर पर संकेत देता है कि स्मृति ईरानी को शिक्षा का भगवाकरण करने के लिए मंत्रालय सौंपा गया। जिस तरह से उन्होंने शिक्षा के भगवाकरण का प्रयास शुरू किया और फिर वह पीछे हटीं तो उनकी पार्टी में अहमियत कम करने के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटा दिया गया। यह सीधे तौर पर यह संदेश देता है कि संघ उनसे नाखुश है और शीर्ष नेतृत्व भी उनका बचाव करने में अक्षम है। हो सकता है, अपने मंत्री पद को सुरक्षित रखने के लिए भविष्य में ईरानी संघ के लोगों की नियुक्तियां केंद्रीय विश्वविद्यालयों में करें।

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