श्रेष्ठ धर्म – अहिंसा – मुनि वैभवरत्न विजय

मुनि डॉ. वैभवरत्न विजय
मुनि डॉ. वैभवरत्न विजय
उज्जैन। भारतवर्ष की भूमि सदियों से अहिंसा की गाथा गाती आ रही है।
अहिंसा के लिए कितने ही वीरों ने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। अहिंसा
का जो मर्म भारतीय परंपरा में बताया गया है वो दुनिया की किसी संस्कृति
में नहीं है। इसी अहिंसा को दिल में बसाये हुए कितने ही महात्मा इस धरती
को पावन कर गए और भारतमाता को गर्व हो ऐसा बलिदान दे गए। जब अहिंसा का
नाम आता है तो
करुणामूर्ति महावीर का नाम सभी की जुबान पर पहले आता है। श्री महावीर
स्वामी ने अहिंसा का संदेश पूरे जग में फैलाया। जितनी गहरी बात उन्होंने
बताई वो किसी ने नहीं कही। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर श्री महावीर
स्वामी ने जीवों का जो सूक्ष्म स्वरूप बताया वो जान कर हर एक पल जीव
हिंसा ना हो वो ध्यान रखने का मन होता है। जीव के कुल 563 प्रकार के भेद
जैन धर्म के जीव विचार ग्रंथ में बताए गए है। जल में, पृथ्वी में, अग्नि
में, वायु में, वनस्पति में भी जीव है। यह बात जैन धर्म बतलाता है। हमारे
भगवंतों ने अहिंसा का मार्ग ही बतलाया है। किसी जीव की हत्या करना हमारा
अधिकार नहीं है. प्राणी मात्र को जीने का अधिकार है। सिर्फ बाह्य हिंसा
नहीं, आंतरिक हिंसा जैसे कि किसी का दिल दु:खाना, उन्हें ठेस पहुंचे, ऐसे
कार्य करना, विश्वासघात करना यह सब भी सूक्ष्म हिंसा के स्वरूप है। यही
सूक्ष्म हिंसा के स्वरूप भारतीय परंपरा में बताये गए है। अहिंसा की बात
हो तो हमारे सामने अनेक उदाहरण आते हैं, लेकिन जो सर्व श्रेष्ठ है वो है
– महात्मा गांधीजी। एक अकेला इंसान पूरी सल्तनत को हिला सकता है। ये
मिसाल बापू ने कायम की है और यह सत्व उन्हें मिला अहिंसा के मार्ग से ही।
उन्होंने
जिनको अपना गुरु माना, वे जैन साधु श्रीमद राजचंद्रजी की अहिंसा की बातों
से ही प्रभावित थे। अपनी आत्मकथा समान किताब ‘सत्य के प्रयोगों’ में
गांधीजी ने साफ़ लिखा है कि जैन साधु श्रीमद राजचन्द्रजी और गुजरात के
जैनो की अहिंसा से वे बहुत ही प्रभावित थे और इसलिए उन्होंने
राष्ट्रव्यापी अहिंसा का आंदोलन कर के भारत देश को आज़ादी दिलाई। एक
इंसान बिना किसी हिंसा के इतना बड़ा कार्य करे, पूरे देश को आज़ाद
करवाये। ये एक अनोखी घटना है, एक सुवर्णमय इतिहास गांधीजी ने बनाया है
अहिंसा के माध्यम से। अहिंसा परमोधर्म का श्लोक श्री महावीर स्वामी ने
दिया है, उसे गांधीजी ने पूरी दुनिया में उजागर किया। इसी वजह से आज इतने
सालों बाद भी गांधीजी को पूरी दुनिया नमन करती है। हमें क्या करना है?
गांधीजी ने इतना बड़ा बलिदान दिया, ताकि आने वाली पीढ़ी एक खुशहाल आज़ादी
की जि़न्दगी जिए। लेकिन हमने उनको क्या दिया? अगर बापू आज जीवित होते तो
चारों तरफ फैली हिंसा, दंगे देख के खुश होते? शायद वो स्वर्ग में बैठे भी
सोच रहे होंगे कि कैसे अधर्मी लोगों के लिए मैंने अपना जीवन दे दिया।
अहिंसा सिर्फ बापू का काम नहीं था, हम सब को मिल के बापू की इस अहिंसक
ज्वाला को पूरे विश्व में फैलाना है और यह तभी होगा जब हम बापू के जीवन
का 10 प्रतिशत भी अनुभव करे। अहिंसा को अपना के अहिंसा के संदेश को
दुनिया भर में फैलाएंगे तभी बापू को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जीवन सब को
प्यारा है। फिर चाहे मानव हो या जानवर। बेजुबान पशु की हत्या बापू को
कैसे पसंद आएगी? एक मच्छर के काटने से भी हम उथल पुथल मचा
देते हैं तो जिनके सर ही कट जाता है। उन्हें कितनी वेदना होती होगी? बापू
की इस महान अहिंसा यात्रा को हरेक घर में दीपक के जैसे जलाये यही मंगल
कामना – मुनि श्री वैभवरत्न विजयजी, सात रास्ता जैन संघ, मुंबई

विनायक लुनिया
मो. ९०३९४०१००४

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