शक्तियों का महाकुंभ : नवरात्रि – मुनि वैभवरत्न विजयजी

मुनि डॉ. वैभवरत्न विजय
मुनि डॉ. वैभवरत्न विजय
जब पर्वों की बात आती है, तब आद्यशक्ति अम्बे माँ की भक्ति का पर्व
नवरात्रि का नाम हम पहले लेते हैं। नौ दिनों तक सच्चे मन से माँ की भक्ति
करना एक अद्भुत विश्वास जगा जाता है। भारतीय शास्त्रों में विधिवत् इस
पर्व की महिमा का गुणगान किया गया है। हमारी संस्कृति का यह एक अजोड़
पर्व है, जिसका नाता सभी भारतीयों से जुड़ा हुआ है और आज यह पर्व भारत की
सीमा तोड़ के विदेशों में भी धूम से मनाया जाता है।
वास्तविक रूप से ज़्यादातर गुजरात से प्रचलित हुआ यह पर्व आज समूचे भारत
में मनाया जाता है। इस पर्व को प्राचीन काल में मनाने की भी उत्तम रीत थी
– माता की प्रतिमा या फोटो रख के उनके आसपास गरबे खेलना, उचित समय पर
उनकी आरती करना, नौ दिन अखंड दीपक प्रज्वलित रखना और आखरी तीन दिनों में
अ_म तप (तीन दिन का पूर्ण उपवास – सिर्फ पानी पीना) भी करना और भारतीय
परंपरा के वाजिंत्र बजाना इनसे माता की भक्ति होती और ऐसी भक्ति देख के
माता धरती पर अपने भक्तों के लिए पधारती।
यही है माता की सच्ची भक्ति का स्वरूप – क्या हम इसे अपनाते हैं? सत्य
हकीकत है कि आज जिस तरह गरबे खेले जाते हैं, वो माता की भक्ति नहीं है।
आज लोग गरबे खेलते हैं भक्ति नहीं करते। विचित्र फि़ल्मी गीतों पर गरबे
खेलने से माता की भक्ति कैसे होगी? तरह-तरह के अंग प्रदर्शन हो, ऐसे
कपड़े पहन के गरबे खेलने से भक्ति कैसे होगी? माता जहाँ विराजित होते
हैं, उनके सामने जूठे मँुह जाना, कोल्ड ड्रिंक्स आदि पीना इन सब से भक्ति
कैसे होगी? क्या यह माता का विनय है? भारतीय शास्त्रों के विधान है कि
किसी देवी-देवता के सामने जूठे मुँह नहीं जाना चाहिए – आज लोग इस बात को
भूल रहे हैं।
दु:ख तो यह है कि आज हमारे गरबे पश्चिम में लोकप्रिय होते जा रहे हैं और
हम पश्चिमी संस्कृति को हमारे गरबे में दाखिल कर रहे हैं। नौ दिनों में
कितने युवक-युवती एक-दूसरे के संपर्क में आते-आते बंधनों में बंध जाते
हैं और फल मिलता है कि 3 4 महीनों बाद एबॉर्शन के लिए युवतियों के नाम
आते हैं। जो देवी जगत को शक्ति देने के लिए प्रसिद्ध है। उनके गरबे के
माध्यम से सांसारिक बंधन बढ़ते हैं। फिर देवी कैसे प्रसन्न रहेगी?
नवरात्रि है या लवरात्रि??? इन रात्रियों में कैसे सच्चे भाव से माता की
पूजा अर्चना की जाती है और उसके बदले अब आज के लोगों को प्रेम ढूंढने का
मार्ग बन जाता है। कुछ ऐसे लोगों की वजह से नवरात्रि पे लांछन लग जाता
है।
अम्बे माँ शक्ति का अखूट भंडार है। उनकी योग्य उपासना से अद्भुत लाभ होता
है, तो उनके लिए क्या फि़ल्मी गीतों से गरबे खेलना उचित है? उनसे अखूट
शक्ति की मांग करनी है, ताकि हम अनेक अच्छे मानवता के कार्य कर सके और
हमारी वजह से देवी का नाम और जगमगाये, लेकिन हम तो उलटे मार्ग पर चल रहे
है। माता को बिठा के उनके सामने बेकार गीतों पे नाचना उचित नहीं है और आज
कल तो गरबे की प्रथा भी लुप्त हो रही है – वास्तविक गरबे दो ताल, तीन
ताल, हिंच आदि पद्धति के थे और अब तो किसी ना किसी फि़ल्मी गीत पर
पश्चिमी डांस नजर आता है। ऐसे समय माँ सब देख रही है। ऐसा डर क्यों नहीं
आता? फिर कैसे माता इस धरती पर आप सब की रक्षा करेगी। ऐसे कृत्यों की वजह
से पाप का पलड़ा इतना भारी होता जा रहा है कि बार-बार धरती पर कुदरती
आफतें बढ़ रही है।
रात को 12 बजे बाद गरबे खेलना बंद हो, ऐसे नियम का आप भरपूर विरोध करते
हो और 2 बजे तक गरबे खेलते हो – सही है माता की भक्ति में विक्षेप पसंद
नहीं करते आप, लेकिन अपने दिल से पूछो क्या माता की भक्ति करते हो? सिर्फ
आरती करना या किसी चढ़ावे में लाभ लेना भक्ति नहीं है, माता को सिर्फ
स्टेज पर नहीं बल्कि अपने दिल में भी विराजित करो। 12 बजे का विरोध बाद
में लेकिन फि़ल्मी गीतों का और पश्चिमी डांस का विरोध पहले करो। जगमगाती
अनेक हेलोजन लाइट में कभी माता नहीं पधारेगी। देवी- देवताओं को यह आधुनिक
कृत्रिम प्रकाश पसंद नहीं आता उन्हें दीपक से ही बुलाया जा सकता है –
जितनी हो सके लाइट का उपयोग कम करो सिर्फ अच्छे से गरबे खेल सके और नीचे
किसी जीव की हिंसा ना हो जाये इतना प्रकाश बहुत है। बाकी दीपक के प्रकाश
से माता धरती पर आएगी और अपनी शक्ति का परिचय देगी।
एक बात बहुत जानने योग्य है – जो देवियाँ हैं, जैसे कि अम्बे, चामुण्डा,
मेलडी आदि सब एक-दूसरे को अपनी बहनें मानती हैं – लेकिन इन सब में एक
अम्बे माता ऐसी है, जो सदा शांत स्वभाव की रही है। उनको किसी को दु:ख
देना अच्छा नहीं लगता यानि की अपने भक्तों की तमाम गलतियाँ हमेशा माफ़
करती हैं, लेकिन शायद आज के भक्त उनकी माफ़ी को मज़बूरी समझने लगे हैं और
बेफाम अपने तरीकों से गरबे का आयोजन करते हैं। वो माँ है इसलिए सदा चुप
रहती है, लेकिन हमें उनका सन्मान बढ़ाना है, अपूर्व भक्ति से।
नवरात्रि का पर्व करीब है – तैयारियाँ जोर-शोर से है, लेकिन इस बात का
ख्याल रखो नवरात्रि – लवरात्रि में तब्दील न हो जाए। माता की भक्ति माता
को पसंद है, उस मार्ग में ही करना उचित है। माँ है वो अपने बच्चो को कुछ
नहीं बोलेगी, लेकिन उनके मन को दुभाना गलत है। वो जीवंत है उन्हें जीवंत
ही रखो, अगर किसी दिन रूठ गई तो फिर कभी यहाँ देखेगी भी नहीं। सभी
भाई-बहन अपनी माँ को इस साल से उनकी सच्ची भक्ति रूप भेंट दे, यही भावना
सह
मुनि वैभवरत्न विजयजी
सात रास्ता जैन संघ, मुंबई

प्रेषक
विनायक लूनिया
मो. ९०३९४०१००४

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