जैनदर्शन तथा प्राकृत भाषा विभाग को मिले विशेष संरक्षण

Dr. Pushpendraपूना – 4 अगस्त 2017। श्रमण संघीय डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री को पत्र लिखकर कहा कि वर्तमान में अल्पसंख्यक जैन धर्म के विचारों, शिक्षाओं, दर्शन, संस्कृति तथा साहित्य के संवर्धन, अध्ययन, अध्यापन, शोध व संरक्षण के लिए कुछ भारतीय विश्वविद्यालयों में जैनविद्या या जैनदर्शन विभाग तथा जैन धर्म के आगमों की भाषा ‘प्राकृत’ के संरक्षण, संवर्धन, अध्ययन, अध्यापन तथा शोध के लिए प्राकृत भाषा विभाग स्वतंत्र रूप से संचालित हैं लेकिन वर्तमान में कुछ विसंगतियों तथा उपेक्षापूर्ण व्यवहार के कारण इन विभागों के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा है। इसको देखते हुए विश्वविद्यालयों में जैन दर्शन एवं प्राकृत भाषा विभाग को विशेष संरक्षण दिया जाना चाहिये। जैन धर्म भारतवर्ष का अत्यंत प्राचीन धर्म है। प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर तथा उनके बाद सैकड़ों तपस्वी आचार्यों ने विपुल साहित्य की सर्जना करके सभी जीवों तथा मानव जाति के कल्याण के लिए तथा आतंकवाद आदि अनेक समस्याओं के निवारण के लिए अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह, योग, ध्यान जैसे अनेक सिद्धांतों के माध्यम से जो महान योगदान दिया है, उसे जैनविद्या अथवा जैनदर्शन के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है। जैन धर्म का मूल आगम-साहित्य प्राकृत भाषा में है। प्राकृत इस देष की, उस समय की जनभाषा रही है।
जिसके निवारण के लिए सम्पूर्ण जैन समाज की ओर से आपसे निम्नलिखित तथ्यों पर गंभीरतापूर्वक विचार के लिए आग्रह किया जाता है:-
१. चूंकि जैनविद्या और प्राकृत विभाग देश में बहुत ही कम संख्या में हैं, अतः इस दर्शन और भाषा के संरक्षण के लिए देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इनकी स्थापना की जाय।
२. जिन थोड़े स्थानों पर ये विभाग हैं, वहाँ अध्यापकों के पदों की संख्या नगण्य हैं, अतः नए पद सर्जित किये जाएँ।
३. इन विभागों में जो पद हैं, उन्हें विशेष अल्पसंख्यक संरक्षण के तहत किसी भी जाति के लिए आरक्षित न किया जाय तथा उन्हें नियमपूर्वक सदैव सामान्य श्रेणी के अंतर्गत ही विज्ञापित किया जाय और भरा जाय।
४. विशेष अल्पसंख्यक संरक्षण के तहत इन विभागों की संरचना तथा सञ्चालन में विभाग में अध्यापक और विद्यार्थी यदि कम भी हों तो भी इन विभागों को बंद न किया जाय अथवा अन्य विभागों में विलीन न किया जाय।
५. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सभी विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार भगवान् बुद्ध, गुरु गोविन्दसिंहजी तथा स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के विशेष अध्ययन के लिए चेयर (देखें, पत्र संख्या D-O-No-F-91 & 25/2015 (SUI&I) Dated 27/09/2) स्थापित कर रहा है, उसी प्रकार तीर्थंकर भगवान् महावीर की चेयर्स भी अवश्य स्थापित करे।
६. प्राकृत भाषा के संरक्षण, अध्ययन तथा अनुसन्धान लिए केंद्र सरकार द्वारा देश में एक ‘प्राकृत अकादमी’ की स्थापना अवश्य की जाय।
आशा ही नहीं, वरन पूर्ण विश्वास है कि आप हमारी इन मांगों पर गंभीरता पूर्वक विचार करके इन्हें शीघ्र ही पूरी करेंगे। जैन समाज आपके इस योगदान के लिए आपका सदैव आभारी रहेगा।

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