स्वराज इंडिया का दक्षिण भारत में 8 दिवसीय किसान मुक्ति यात्रा संपन्न

किसान मुक्ति यात्रा को दक्षिण भारत में मिला सभी वर्गों का साथ।

स्वराज इंडिया AIKSCC के साथ मिलकर दो मांगों, ऋण मुक्ति और उपज़ का ड्योढ़ा दाम को लेकर कर रहा है देशभर में यात्रा।

swaraj-indiaस्वराज इंडिया का जय किसान आंदोलन ने AIKSCC के मिलकर किसान मुक्ति यात्रा का दूसरा चरण सफलतापूर्वक संपन्न किया। यह यात्रा देश मे खेती किसानी के संकट को लेकर आयोजित की गई थी। इस दूसरे चरण के माध्यम से किसान मुक्ति यात्रा 5 राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के किसानों तक पहुंची। AIKSCC जिसका स्वराज इंडिया एक सदस्य संगठन है, के बैनर तले देशभर के लगभग 150 ज्यादा किसान संगठन शामिल हुए हैं। स्वराज इंडिया के जय किसान आंदोलन और AIKSCC ने किसानों के हित से जुड़े दो मांगों को रखा है-
1. देशभर के किसानों को सभी प्रकार के कर्ज़े से मुक्ति
2. उसकी लागत का ड्योढ़ा दाम।

यात्रा में जाने से पहले स्वराज इंडिया के अध्यक्ष और जय किसान आंदोलन के सहसंस्थापक योगेन्द्र यादव ने 16 सितंबर को मन्दसौर जाकर गोलीकांड में शहीद हुए किसानों के स्मृति स्मारक का अनावरण किया। स्वराज इंडिया के किसान मुक्ति यात्रा को मिल रहा समर्थन इस बात के संकेत हैं कि देश वैकल्पिक राजनीति को गले लगाने को आतुर है। स्वराज इंडिया AIKSCC के साथ मिलकर इस साल के 20 नवंबर से “भारत किसान संसद” का आयोजन दिल्ली के रामलीला मैदान कर रहा है। योगेंद्र यादव ने सभी किसान संगठनों से इसमें शामिल होने की अपील की। किसान मुक्ति यात्रा ने अपने 8 दिन के सफ़र में 5 राज्यों में 27 जगहों पर जनसभाएं की। जिसमें हैदराबाद, सूर्यपेटा, खम्मम, विजयवाड़ा, अनंतपुर, चेन्नई, मदुरै, कोयंबटूर, कालीकट, पलक्कड़, बंगलुरू आदि प्रमुख स्थान हैं।

स्वराज इंडिया की नई और साफ सुथरी राजनीति का विस्तार भी इस यात्रा में देखने को मिला। कर्नाटक में स्वराज इंडिया किसानों, दलितों, शोषितों और वंचितों की पसंद बन रही है। यात्रा के कर्नाटक पहुँचने पर K. S. Puttanniah जी के नेतृत्व में हज़ारों का हुजूम पाण्डवपुर की जनसभा में शामिल हुआ। इसके साथ ही कर्नाटक समेत दक्षिण भारत के राज्यों में स्वराज इंडिया का संगठनात्मक विस्तार हुआ है। यह यात्रा इस मायने में भिन्न है कि इसे महिलाओं अभूतपूर्व समर्थन हासिल हुआ है। हमारा मानना रहा है कि “नारी के सहभाग बिना हर बदलाव अधूरा है।” कई जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन महिलाओं के नेतृत्व में हुआ। किसानों की तक़दीर बदलने को प्रतिबद्ध किसान मुक्ति यात्रा को महिलाओं ने सक्रिय समर्थन देकर इसके मक़सद को पवित्रतम बना दिया। आज के किसानों से सरकारों ने नीतियों को औज़ार बनाकर उनके सारे हक़ छीन लिए हैं, और उन्हें धर्म युद्ध का अधिकारी बना दिया है। महाभारत अगर राजाओ के युग का धर्मयुद्ध था तो किसानी संघर्ष लोकतंत्र के युग का धर्मयुद्ध है। सूखे के संकट में किसानों के साथ खड़ा होना और उसे आत्महत्या की राह पर जाने रोकना असली राष्ट्रवाद है। इस देश के किसानों को सभी सरकारों से मोहभंग हो गया है, इसलिए एकजुट होकर कह रहे हैं, अब हमें भत्ता नहीं सत्ता चाहिए।

किसान मुक्ति यात्रा को समाज के हर वर्ग का समर्थन मिल रहा है। खेती किसानी के संकट और किसानों की बदहाली के मुद्दे पर व्यापारी, उपभोक्ता, सिनेस्टार कई अन्य लोग भी यात्रा से जुड़े। चेन्नई में प्रकाश राज, पलक्कड़ से सांसद एम बी राजेश ने इस यात्रा में अपनी उपस्थिति देकर समर्थन दिया। भारत के किसान दशकों से खेमों में बंटा था। कभी क्षेत्र के आधार पर, कभी अलग-अलग फसल की खेती के आधार पर, तो कभी भूमिहीन और जमींदार के नाम पर। यहाँ तक की जाति और मज़हब के नाम पर किसान विभाजित थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज समूचे देश का किसान अपने विरूद्ध दशकों से किये जा रहे अन्याय,शोषण के ख़िलाफ़ एकजुट होकर आवाज़ उठा रहा है। किसानी एकता आज दौर की सबसे बड़ी घटना है।

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