धीरज धर्म मित्र अरू नारी, आपतकाल परिखिअहिं चारी

विदिशा। सरदार गुरूचरण सिंह बाबू जी जनसेवा न्यास द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा के अंतिम विश्राम दिवस कथा की व्यास गादी की पूजन मुख्य यजमान श्रीमति बलजीत गुरूचरण सिंह, कथा संयोजिका श्रीमति सुखप्रीत कौर सहित श्री तेजिन्दर सिंह बन्नू भैया सपत्नीक की। कथा व्यास महर्षि उत्तम स्वामी महाराज ने कहा कि आज सनातन परंपरा का नववर्ष है आप सभी को नूतनवर्ष की हार्दिक-हार्दिक मंगलकामनाएं। हम सभी आज यह संकल्प ले कि प्रतिदिन कुछ समय निकालकर स्वंय तो ईश्वर आराधना करेंगे ही साथ ही परिवार को सनातनी परंपराओं से संस्कारित का राष्ट्रप्रेम करेंगे।
त्याग भरत जैसा होना चाहिए। कलयुग में मानव संपत्ति के लिए कौरव तो बन सकता है। परंतु भरत बनना कठिन है। भारद्वाज जी ऋषि को जीवन के तप के फलस्वरूप भगवान श्रीराम जी के दर्शन मिले एवं श्रीराम के दर्शन के फलस्वरूप भरत जैसे संत मिले। इससे कहा जा सकता है कि बिन हरिकृपा मिलत नहीं संता
मनुष्य के जीवन में आईने के चेहरे के स्थान पर चरित्र का दर्शन करना चाहिए। माता सीता के हरण एवं वनवास उपरांत लंका प्रसंग के बारे में बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि धीरज धर्म मित्र अरू नारी, आपदकाल परिखिअहिं चारी। अर्थात धैर्य, धर्म, मित्र और नारी इन चारों की परीक्षा आपत्तिकाल में होती है। आपत्ति काल में नारी ही पत्नी रूप में मित्र बनकर मनुष्य के धैर्य और धर्म को साधे रखने में सहायक सिद्ध होती है। इसलिए नारी सदैव पूज्यनीय थी, है और रहेगी। नारी अगर नहीं होगी तो मनुष्य जीवन संभवन नहीं है। पैसे के तीन रूप नाम परस, परसु एवं परशुराम है। माता सबरी द्वारा श्रीराम जी की भक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना है। धर्म का अनुसरण करने वाले की मदद स्वंय के द्वारा भी धर्मपालन करना चाहिए एवं विधर्मियों को सदैव विरोध करना चाहिए। यही धर्माचरण है। कथा के समापन में हजारो श्रद्धालुओं ने भोजन एवं प्रसादी ग्रहण की। श्रीराम के चरित्र आचरण का वर्णन जिस ग्रंथ में निहित है वहीं रामायण है। समापन के मौके पर राज्यमंत्री सूर्यप्रकाश मीणा जी, वन विकास निगम अध्यक्ष तपन भौमिक, प्रांत प्रचारक अशोक पोटवाल जी, विभाग प्रचारक मुकेश त्यागी, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जी, जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष श्यामसुंदर शर्मा जी, सेशन जज खरगोन सुभाष सोलंकी जी ,oa ou fodkl fuxe ds mik/;{k jkeeksgu c?ksy th सहित अनेक लोग मौजूद थे।

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