एक बार फिर सबरंग भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड 2018 में बेस्‍ट पीआरओ चुने गए रंजन सिन्‍हा

लोकगायक, अभिनेता व राजनेता मनोज तिवारी और सुपर स्‍टार रवि किशन की फिल्‍मों से जनसंपर्क के क्षेत्र में अपने करियर की शुरूआत करने वाले रंजन सिन्‍हा को एक बार सबरंग भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड में भोजपुरी फिल्‍म इंडस्‍ट्री का बेस्‍ट पीआरओ चुना गया है। सबरंग भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड 2018 में यह अवार्ड बीते साल रंजन सिन्‍हा के कुशल जनसंपर्क के लिए दिया गया। वहीं, इस बार भी रंजन सिन्‍हा और उदय भगत की जोड़ी को भी बेस्‍ट पीआरओ का अवार्ड दिया गया।

मालूम हो कि 2017 – 18 में रंजन सिन्‍हा ने सुपरस्‍टार रवि किशन की फिल्‍म ‘सनकी दारोगा’, दिनेशलाल यादव निरहुआ की मल्‍टीस्‍टारर फिल्‍म ‘बॉर्डर’, सुपर स्‍टार खेसारीलाल यादव की फिल्‍म ‘संघर्ष’ व ‘डमरू’, अरविंद अकेला कल्‍लू की फिल्‍म ’आवारा बलम’ सरीखे फिल्‍मों के लिए पीआर कर एक उदाहरण पेश किया, जिसके लिए भोजपुरी में बॉलीवुड के फिल्‍म फेयर अवार्ड के समकक्ष सबरंग भोजपुरी फ़िल्म अवार्ड में रंजन सिन्‍हा को बेस्‍ट पीआरओ का अवार्ड लगातार दूसरे साल दिया गया। इससे पहले उन्‍हें यह अवार्ड 2017 में भी मिल चुका है। इसके अलावा इस साल कोलकाता में आयोजित स्टार एंड स्क्रीन भोजपुरी अवार्ड में भी रंजन सिन्‍हा को बेस्‍ट पीआरओ का अवार्ड मिल चुका है।

गौरतलब है कि रंजन सिन्‍हा, पीआर के क्षेत्र में किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। रंजन सिन्‍हा मूलत: वैशाली जिले के राजापाकर प्रखंड स्थित बिरना लखन सेन गांव से आते हैं। उन्‍होंने अपने करियर की शुरूआत प्रखंड संवाददाता के रूप में की। उसके बाद उन्‍होंने पीआर की ओर रूख कर लिया और अब तक अपने 15 साल के पीआर करियर में सुपर स्‍टार मनोज तिवारी, रवि किशन, खेसारीलाल यादव, अवधेश मिश्रा, सांसद पप्‍पू यादव, सन ऑफ मल्‍लाह मुकेश सहनी जैसे दिग्‍गज हस्तियों के लिए भी बतौर प्रचारक काम कर रहे हैं। अब तक उन्‍होंने 450 से ज्‍यादा भोजपुरी फिल्‍मों के लिए पीआर किया है। आज रंजन सिन्‍हा फिल्‍म के साथ – साथ गवर्नेमेंट, पॉलिटिकल, सोशल, कमर्सियल क्षेत्र में भी पीआर के लिए सबसे उम्‍दा विकल्‍प बन गए हैं। रंजन सिन्हा ने बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा आयोजित प्रकाशपर्व, पटना फ़िल्म फेस्टिवल, पटना शार्ट एंड रिजनल फ़िल्म फेस्टिवल, गांधी पनोरमा फ़िल्म फेस्टिवल, बिहार कला सम्मान समारोह, बाबू वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव जैसे कार्यक्रमों को भी सफलतापूर्वक लोगों के बीच ले गए।

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