स्वामी विवेकानन्द के पद चिन्हों पर रमाशंकर (मनीषी)

छतरपुर 6 दिसम्बर 2018 .बुन्देलखण्ड के हृदय स्थली छतरपुर जिला के कस्बा नौगॉव के गौरव के जन्म दिवस तक्षषिला सीनियर पव्लिक स्कूल दौरिया नौगॉव में 48 वॉ जन्म दिवस धूमधाम से मनाया गया । मानव समाज में एक से एक महान संत तपस्वी ़़ऋषि मुनि हो गये है, हमारे लिए गर्व की बात है कि नौगॉव नगर मे भी एक समाजसेवी पं0 रमाषंकर मिश्र मनीषी जी के नाम से पहचान बनाकर मानव कल्याण में लगे है । आज उनके जन्म दिवस पर समाजसेवी संतोष गंगेले कर्मयोगी ने उनके जन्म दिवस पर एक आयोाजन षिक्षण संस्था में कर उनका सम्मान किया।

-ईष्वर जिस पर कृपा करते है वह समाज में उदाहरण बनकर प्रकाष करता है वह बुध्दिमान, विवेकषील, ज्ञानी हो जाता है । चूॅकि भगवान अपने भक्त की रक्षा-सुरक्षा एक बालक की तरह करते है । भगवान का भक्त धन-लक्ष्मी से दूर होने लगता है , माता श्री सरस्वती जी की कृपा के कारण वह संसार की समस्त बस्तुओं को अनुभव हृदय से करने लगता है, उसे अध्यात्मिकता का अनुभव होने लगता है । उसकी काम इच्छायें षिथिल हो जाती है वह संसारिक भव से दूर रह कर मानव कल्याण , देष कल्याण, राष्ट्र कल्याण व बिष्व कल्याण के बिचार ग्रहण करने लगता है । आज हम एक ऐसे मानव तपस्वी के जीवन के बारे में प्रकाष डाल रहे है जो एक साधारण जुझौतिया ब्राम्हण परिवार में ं सन्- 6 दिसम्बर 1970 को ग्राम सीगौंन थाना अजनर तहसील कुलपहाड़ जिला महोवा उ0प्र0 में माता श्रीमती उमा मिश्रा, ं पिता पं0 श्री कमलापति मिश्र की संतान के रूप में जन्म लिया हैं ं । बचपन से ही चंचल स्वभाव व होनहार इस बालक का नाम माता श्री पार्वती जी व भगवान श्री षिव जी के नाम संस्कार श्री रमाषंकर के नाम से जाना गया है । उनकी प्राथमिक षिक्षा सिजहरी उ0प्र0 में ही हुई , उच्च षिक्षा महाराजा कालेज छतरपुर में बी0एस0सी0 स्नातक तक ग्रहण करना उन्होने बताया हैं लेकिन वह अंग्रेजी भाषा में भी अपना उद्बोधन दे सकते हैं । नौगॉव नगर में उनका परिवार रहता था । वहॉ आ गये हैं । पं0 श्री रमाषंकर मिश्र में बचपन से ही सेवा भावना की परछॉई बनती आ रही है , उन्होने लगभग दस बर्षो से समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने केलिए लगातार समरसता, गोष्ठी, जन सम्पर्क, ग्रामों का भ्रमण, तीर्थ स्थानों का अनुभव, बेदान्त का अध्ययन किया । नेत्रहीन व्यक्तियों केलिए समाज सेवा समिति का गठन कर लगातार कई बर्षो से नेत्र षिविर का आयोजन कराया व कराते है । वह गायत्री ष्षंक्ति पीठ से जुड़ कर समरसता का प्रयास किया जाता है । वह घर-घर जाकर षिक्षा, स्वास्थ्य, भारतीय संस्कृति का ध्वज पताका फहराने केलिए अपना समय देते आ रहे है । नौगॉव नगर में एक षिक्षण संस्था तक्षषिला पव्लिक स्कूल का संचालन कराकर भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया है । तक्षषिला संस्था में अध्ययनरत बालक-बालिकायें आज नगर ही नही बल्कि जिला में अपनी पहचान बनायें हुये है ।
उन्होने जीवन में अग्नि को ही अपना ईष्ट मान कर त्याग, तपस्या के राही बन गये है । अब उन्हे आम जन पं0 श्री रमाषंकर के नाम से नही बल्कि (मनीषी जी) के नाम से पुकारे जाने लगे है । उनके अंदर वह गुण प्रतीत हो रहे हैं जो स्वामी विवेकानंद जी के अन्दर देष प्रेम व हिन्दू धर्म के प्रति विद्यमान थें । वह इस क्षेत्र केलिए प्रखर बक्ता के रूप में गिने जाते है । उन्होने एक पुस्तक का भी प्रकाषन किया था लेकिन वह आर्थिक आभाव के कारण बंद हो गर्इ्र है । बर्तमान में वह सामाजिक संस्था (कर्तव्य) का संचालन कर रहे है । वह समाज के प्रति समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी से कार्य करते है । उनका परिवार अपने आप तक ही सीमित करने का संकल्प कर लिया है । पीड़ित परेषान मानव समाज को ही अपना परिवार मानते है ।

पं0 रमाषंकर की दो बहने श्रीमती बालप्रभा देवी, श्रीमती ऊषा देवी जो एक षिक्षिका के रूपमें समाजसेवा कर रही है तथा एक भाई पं0 बिजयषंकर मिश्र जी बर्तमान में परिवारिक दायिव्वों का निर्वाहन कर रहे हैं । उनका रूचि पूर्ण बिषय बेदान्त का अध्ययन करना, गीता में बिषेष रूचि होने के कारण वह एक कथाकार बनना चाहते है भारतीय संगीत वह देष भक्ति पूर्ण एवं दिषात्मक गीत को गुनगुनाते रहते है । काब्य में एक ओजस्वी कबि जो मातृ भूमि से परिपूर्ण एवं बीरता से भरी समाजहित में लिखना उनका स्वभाव है ।
उनके जीवन में श्री गीता एवं श्री राम चरित्र मानस सर्वोपरि ग्रन्थ है । जीवन का अर्थ वह दूसरो केलिए जीने की तमन्ना रखते हैं वह मानव धर्म के साथ जियों और जीने दो का संदेष लेकर कार्य करते है । गुरू के प्रति श्रध्दा व भक्ति , मित्रों के प्रति बिष्वास व सहकार्य की आषा रखते है । समाज के प्रति सेवा व समर्पण से कार्य करने की सामर्थता प्राप्त करने का प्रयास करते हुये जीवन में त्याग की परिधि में बे सभी कार्य जो समाज केलिए ठीक नही हैं व्यक्तिगत जीवन में सुषिता व स्पष्टता को महत्व देते है। पं0 श्री रमाषंकर यह मानते है कि मानव जीवन संकट से भरा हुआ होता हैं उन्होने अपने जीवन में सुख के क्षण याद नही है ।

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