बुन्देलखण्ड के समाज सेवी संतोष गंगेले कर्मयोगी का सााक्षात्कार

आज हम बुन्देलखण्ड के एक ऐसी ष्षख्सित के संघर्षमय जीवन के साथ जीवन जीने के साथ 11 बर्षो से भारतीय संस्कृति संस्कारों, नैतिक षिक्षा को लेकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र के विभिन्न जिलों में निःस्वार्थ भाव से समाजसेवा करने में लगे हुए है । गूॅगल में उनका स्थान मिला है । सर्च कर सकते है । उनके बारे में एक सामान्य साक्षात्कार इस प्रकार है -श्री संतोष गंगेले कर्मयोगी जी

प्रष्न – श्री संतोष गंगेल कर्मयोगी जी आपका जन्म कब और कहॉ हुआ ?
उत्तर- मेरा जन्म 11 दिसम्बर 1956 को एक किसान संत सामान्य जुझौतियॉ ब्राम्हण परिवार ग्राम बीरपुरा पो0 नौगॉव बुन्देलखण्ड जिला छतरपुर मध्य प्रदेष पिन कोार्ड 471-201 में हुआ ।

प्रष्न – आपकी प्रारम्भिक षिक्षा और उच्च षिक्षा कहां हुइ -?
उत्तर- मेरी कक्षा 1 से 5 तक की षिक्षा ग्राम बीरपुरा में ही हुई है । घर-परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण बर्ष 1967 में हायर सकेण्ड्री स्कूल में कक्षा 6 वी में ्रपेवष लिया लेकिन लगातार स्कूल न जाने के कारण परीक्षा में असफलता मिली । जिस कारण मेरे पिता श्री प्यारे लाल जी ने मेरी पढ़ाई बंद कराई दी मेहनत और मजदूरी के साथ घर का कार्य किया । व्यापारियों के यहां नौकरी की लेकिन पढ़ने की इच्छा प्रवल होने के कारण मैने अपनी मॉ श्रीमतीक सुमित्रा देवी गंगेले से प्रार्थना निवेदन किया जिस पर मेरी मॉ ने मुझे पुनः पढ़ने के लिए प्रेरणा दी । बर्ष 1974 में एक वार पुनः प्रवेष लिया और बर्ष 1977 में 8 वी तक षिक्षा ग्रहण की । छोटे भाईयों और बहन की पढ़ाई पर लगातार ध्यान दिया ।

प्रष्न- संतोष जी आपने इतनी परेषानियों के बाद कक्षा 8 वी तक की परीक्षा पास करने के बाद आगे क्या किया-
उत्तर-कक्षा 8 वी के बाद मैने जिला रोजगार कार्यालय छतरपुर में पंजीयन कराया उसी समय एम ई एस नौगॉव के चौकीदारी के पद के लिए जगह निकली उसमें मेरी नौकरी लग गई मैने दो बर्ष तक मस्टर पर नौकरी करके बाद बर्ष 1979 में दिल्ली चला गया वहां पर एक साल तक मजदूरी का कार्य किया लेकिन पढ़ने की ललक ने पुनः नौगॉव बापिस हुआ । प्राइवेट रूप से हायर सेकेण्ड्री की परीक्षा की तैयारी की साथ ही नौगॉव तहसील चौराहा पर चाय-पान की दुकान का संचालन किया । बर्ष 1980 की परीक्षा में परिणाम हमारे पक्ष में गया । हायर सेकेण्ड्री परीक्षा के बाद हिन्दी टाईपिंग का प्रषिक्षण लिया और उसमें भी सफलता मिली । उसके बाद बीए में प्रवेष लिया और महाविद्यालय से बहुत कुछ सीखने को मिला जो मेरे जीवन में सामाजिक क्षेत्र के सक्रियता लाने के लिए बहुत ही प्रेरणा दाय जीवन रहा । भारतीय संस्कृति और संस्कारों को बचाने की प्रेरणा महाविद्यालय से ही मिली । मेरा पूरा जीवन नियम और संयम से चलता आ रहा है । आज मैं निरोगी होकर ही समाज और देष सेवा के लिए कार्य कर रहा हॅू । . मैने कभी अपना ईमान नही बैचा है, कर्म के माध्यमसे भाग्य को बदला है और कर्म पर ही भरोसा रखता हहॅू इसलिए हमारे गुरू जी ने मुझे कर्मयोगी की उपाधीसे सम्मानित किया था । बर्ष 1984 से नौगाव तहसील में लेखक अर्जीनवीस के साथ सेवाए दी और समाजसेवा भी जारी रही ।

प्रष्न- आप प्रिट मीडिया से कब से और कैसे जुड़े -?
उत्तर- मैं बचपन से चंचल रहा और कुछ सीखने की ललक थी मैं समाचार पत्रों को पढ़ता था और खबरों से जुड़ा होने के कारण मैं पत्रकार बनना चाहता था । दिसम्बर बर्ष 1980 मैं छतरपुर से प्रकाषित दैनिक राष्ट्र-भ्रमण समाचार पत्र संपादक श्री सुरेन्द्र अग्रवाल जी से मिला और नौगाव से ग्रामीण पत्रकारिता ष्षुरू की । उसके वाद लगातार पत्रकारिता ने आगे बढ़ता गया देष के कई ख्याती प्राप्त पत्रों में लिखता था । इन 38 बर्षेा की पत्रकारिता में कभी कोई गलत समाचार प्रकाषित नही किया किसी के चरित्र हनन की खबर नही दी न ही एक रूप्या का लेन-देन किया जिससे मुझे जिला प्रदेष और देष के सैकड़ों समाचार पत्रों तक अपनी खबर लिखने भेजने का अवसर मिलता अनेक पत्रकारिता के सम्मान समारोह आयोजन कराने एवं करने का अवसर मिला मध्य प्रदेष के 35 से अधिक जिला में भ्रमण कर चुका हॅू ।

प्रष्न- संतोष जी आप बताए कि आजादी के पूर्व और बर्तमान पत्रकारिता में कितना अंतर है ।
उत्तर-आजादी के पूर्व पत्रकारिता एक मिषन थी, देष और राष्ट्रहित में की जाती थी, बर्तमान की पत्रकारिता में प्रमुखता अपराधिक घटनाओं, भृष्टाचार , दुर्घटनाओं और राजनेताओं की परिक्रमा में सिमट चुकी है । भारतीय संस्कृति, संस्कारों, षिक्षा, स्वच्छता, समरसता नषा आदि प्रमुख समस्याओं से भटक रही है । प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया , सोषन मीडिया संचालित करने वाले धन कमाने की ओर झुक गई है। जबकि मैने इतिहास में षहीद गणेषषंकर विधार्थी जी को पढ़ा जो समाज और राष्ट्र सेवा की भावना से पत्रकारिता का अनुभव किया । हमारी देष की आजादी में पं0 दीनदयाल उपा0 महावीर प्रसाद व्दिवेव्दी, राजाराम मोहन राय, पं0 माखन लाल चतुर्वेदी आदि आदि के जीवनी पढ़ने के बाद मैने कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी की पत्रकारिता को जीवन में स्थान दिया । हमेषा जन मानस की आवाज बनकर कार्य किया । सच्चाई और समस्याओं को उठाया । जिससे पत्रकारिता की गरिमा बनी । अंगेजों के समय देष आजाद कराना एक मिषन था , आजादी के बाद पत्रकारिता 5 दषक तक बहुत ही ईमानदारी और समाजसेवा में रही जैसे ही इलैक्ट्रानिक मीडिया का प्रवेष हुआ । पत्रकारिता को स्तर गिरने लगा । क्यो कि इलैक्ट्रानिक मीडिया से जहंा पल पल की खबरे मिली और चैनल मालिकों ने धन कमाना ष्षुरू किया । विज्ञापन नीति के कारण अष्लीलता भी परोसी जाने लगी । पत्रकारिता से जुड़े अच्छे लोगों को समाज में सम्मान का वह स्थान नही मिल सका जो होना चाहिए । भृष्टाचारारियोे और अपराधिओं की दखलंदाजी के कारण मीडिया की विष्वसनीयता पर सवाल उठने लगे इसको दूर करने के लिए प्रयास जारी रखना होगा।

प्रष्न- संतोष जी मुझे जानकारी हुई कि आपकी दो ष्षादियॉ हुई क्या कारण थें ?
उत्तर- आदरणीय मैने बताया कि मेरी पहली ष्षादी जगतपुर उर्फ गढ़िया थाना अजनर जनपद महोवा में हुई मेरी धर्मपत्नी श्रीमती प्रभादेवी ने चार बच्चों को जन्म दिया । अचानक उनका स्वास्थ्य खराब होने पर 19 अक्टूवर 1993 को नौगॉव के डॉ0 के एल रजोरिया ने उनका उपचार किया, बुखार के दौरा ड्रिप देने से अचानक मौत हो गई । चार बच्चों की परवरिष का कोई सहारा न होने पर मैने दूसरी ष्षादी के लिए पेपरों और समाज में विधवा विवाह की कोषिष की लेकिन वह नही हो सकता । ग्राम झीझन थाना नौगॉव में ही पं0 श्री धरमदास चौवे र्की आिर्थक स्थिति खराब होने के कारण उनकी जबान बेटी का विवाह नही हो पा रहा था ग्राम के सरपंच और समाज बन्धुओं के अनुरोध पर 14 दिसम्बर 1993 को रंजना देवी उर्फ अर्चना चौवे से दूसरी ष्षादी हुई । उनकी एक संतान है । सभी बच्चों की परवरिष उत्तम तरीका से हुई । मेरी धर्मपत्नि श्रीमती रंजना देवी गंगेले का भी प्रदेष सरकार की ओर से सम्मान हो चुका है ।

ऽ .प्रष्न- संतोष जी आपके सामाजिक कार्यो से समाज में क्या परिवर्तन हो रहा है और हुआ है –
ऽ उत्तर- मैं समाज में पत्रकारिता के साथ-साथ समाज सुधार के अनेक कार्य किए, मेरे कार्य करने का सबसे पहला लक्ष्य भारतीय संस्कृति, संस्कारों के माध्यम से बुन्देलखण्ड क्षेत्र को चुना जिसमें स्कूली बच्चों में षिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, समरसता, समाज, नषा मुक्ति अभियान, सड़क दुघर्टना राकेने जन जाग्रति साथ ही बेटी बचाओं- बेटी पढ़ाओं अभियान के पहल बेटियों के चरित्र निर्माण पर नैतिक षिक्षा पर जन जाग्रति एव ंदहेज प्रथा को समाप्त करने केलिए मैने अपनी दोनो विवाह बिना दहेज किए भाईओं के बिना दहेज किए तथा अपने बेटे राजदीप गंगेले का विवाह पं0 श्री रमेष अरजरिया आलीपुरा में बिना दहेज कर समाज में उदाहरण प्रस्तुत किया । इस विवाद की छतरपुर जिला प्रषासन एवं समाज ने अत्याधिक सराहना की तथा जगह जगह सम्मान मिला ।

प्रष्न-आपकीक जन जाग्रति अभियान से बच्चों में क्या प्रभाव हुआ –
उत्तर- यह बात मैं दावें के साथ कह सकता हॅू कि मैं समाज सेवा तो बर्ष 1980 से करता आ रहा हॅू लेकिन बर्ष 2007 से बुन्देलखण्ड क्षेत्र में छतरपुर, टीकमगढद्व महोवा, ललितपुर, झॉसी, बॉदा, हमीरपुर, पन्ना, दमोह, निवाड़ी आदि आस पास के जिला के लगभग 15 सौ से अधिक उच्च षिक्षण संस्थाओं, ऑगनवादी केन्द्रों, जेल, प्रषिक्षण केन्द्र, महाविद्यालयओं में मैने अपने विचारों से लाखों बच्चों में सभ्यता और संस्कारों की अलख जगाई है । हमारों बच्चों को जिनमों प्रतिभाओं की योग्यता नजर आई संस्थाओं में ही सम्मानित किया गया । आज समूचें बुन्देंलखण्ड में मुझे लाखों बच्चों का प्यार मिलता है जहंा भी जाता हॅू बच्चें स्नेह और प्यारे से मुझे कर्मयोगी अंकल कहकर पुकारते है तथा बच्चों से समय समय पर संवाद भी होते रहते है । लाखों बच्चों के अंदर मेरे विचारों का प्रभाव हुआ है । जिस षिक्षण संस्था में मेरे विचार होते है वहां के बच्चों में जो सुधार होता उसका अनुभव वहां के षिक्षक और बच्चों के माता-पिता से पता चलता है ।

प्रष्न-संतोष जी पत्रकारों के हितों के लिए आपने क्या कोई कार्य किए है ?
उत्तर- प्रदेष और देष में पत्रकारों पर हमलें होना आम बात हेा गई है । पत्रकार यदि किसी के विरूध्द कोई खबर लगाता है तो उसे डराया धमकाया जाता है उसे प्रलोभन दिया जाता है ज बवह नही मानता है तो उसे अपराधिक मामलों में फॅसाया जाता है, मारपीट की जाती है यहां तक की हत्याये भी कर दी जाती है । मैने इन रास्तों से गुजर चुका हॅू । मेने हमेषा पत्रकारों की सुरक्षा और सम्मान के लिए कार्य किए है हमारा एक संगठन गण्ेाषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब म0प्र0 में संचालित हैं जो पत्रकारों के हितों केलिए ही कार्य कर रहा है । मैने म0्रप0 का भ्रमण किया , अनेकों वार प्रांतीय , जिला एवं तहसील स्तर के सम्मेलन कराये पत्रकारों की समस्याओं को हल कराया । मैं कानून को जानता हॅू और कानून का सम्मान करता हॅू । मुकदमे लगाना और मुकदमें चलना यह जीवन में कभी भी किसी के साथ हो सकते है मैने भी अपनी जरीवन में संघर्ष किया और आगे करने केलिए तैयार रहता हूूॅ ।
मेरे विरूध्द भी अनेक समाचार पत्रों में कई झूठे आरोप प्रकाषित भी हुए तो मैने उनके विरूध्द संबंधित न्यायालय में न्याय के लिए कार्यावाही की है । मै न तो झूठ समाचार प्रकाषित करता हॅू न करूॅगा और यदि मेरे चरित्र पर कोई झूठे आरोप लगाता है तो मै उसे हर तरह से सामना करने को तैयार करता हॅू । इसलिए पत्रकार को पीत पत्रकारिता से दूर रहना चाहिए साथ ही समाज और ष्षासन के बीच ही ईमानदारी और लग्न के साथ पत्रकारिता करने वाले को समाज और ष्षासन प्रषासन से सम्मान मिलता है

प्रष्न- संतोष जी आप राजनीति का किसी दृष्टि से देखते है और क्या आप राजनीति में आना चाहते है?
उत्तर- राजनीति भी समाजसेवा का खुला मंच होता है । प्रजातंत्र के चार स्तंभ माने गऐ है जिसमें न्यायपालिका, कार्य पालिका, विधायिका, मीडिया चारों स्तंभी ही प्रजातंत्र ही रक्षा के लिए है । राजनीति आम जनता की आवाज है, जनता अपना प्रतिनिधि ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, विधायक, लोक सभा मंडी आदि चुनाव के माध्यम से चुनकर देष की सुरक्षा, समाज में सुधार और विकास के लिए भेजती है । मानव अधिकारों एवं उनके षिक्षा, स्वास्थ्य , रोजगार और विकास के लिए नेता बनाती है लेकिन बर्तमान समय में प्रजातंत्र के तीन स्तंभों की नींव कमजोर हो रही है । एक मात्र भरोंसा आम जनता को न्यायपालिका पर रह गया है । यदि न्याय पालिका स्वतंत्र न होती तो देष में अराजकता और राजतंत्र स्थापित हो जाता है इसलिए नेताओं और मीडिया से जुडे सभी नागरिकों को अपनी जुम्मेदारी निभाना होगी । यदि समय रहते लोकतंत्र की रक्षा के लिए कर्तव्य निष्ठा ईमानदारी, लग्नषील और कर्मठ व्यक्ति आगे नही आयेगें तो प्रजातंत्र खतरे में होगा । मैं राजनीति को बहुत ही अच्छा और सेवा भावना का पद मानता हॅू मैने राजनीति में आने की कोषिष की लेकिन समाज मे समाजसेवी और आर्थिक दृष्टि से कमजोर और समाज सुधार करने वाले कम ही चुनाव जीते पाते है । राजनैतिक दल ऐसे लोगों को मनोनीति कर उच्च पदो पर पदाषीन कर उनको स्थान देते आये है और आज भी स्थान मिलता है । इसमें प्रतिभा करना होती है । मैरा राजनीति से अब बिल्कुल लगाव नही रहा है ।

प्रष्न- संतोष जी आपको क्या सामाजिक कार्य केलिए कहीं सम्मानित किया गया है
उत्तर- जी , मुझे सामाजिक कार्य करने के दौरान सर्व प्रथम तो जहंा में आयोजन करता हॅू वहीं पर षिक्षण संस्थाओं, प्रषिक्षण केन्दों और महाविद्यालयों में संस्था और सम्मानित किया जाता है , उसके बाद मुझे अपने गृह जिला में अनेकों सम्मान मिले, पहली बार 31 मई 2015को चन्द्रलेख होटल मथुरा में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिला । उसके बाद 1 जुलाई 2015 को आजाद भवन दिल्ली में सम्मान मिला इस प्रकार मुझे सामाजिक संगठनों, समाजसेवी संस्थाओं, जन प्रतिनिधिओं के माध्यम से सौ से अधिक सम्मान मिल चुके है । मुझे मध्य प्रदेष, उत्तर प्रदेष हरियाणा, राजस्थान में सम्मानित होने के अनेक अवसर मिले है । मेरे सामाजिक कार्या की समीक्षा सही तरीकेक से आज तक न तो मध्य प्रदेष सरकार न की है नही भारत सरकार कर रही है यह आत्मा का दर्द है कि यदि मैं अपने निजी तौर पर जीवन को समाज के लिए समर्पित करने के साथ अपनी निजी धन को खर्च कर मोटर साईकिल और बाहनों से मध्य प्रदेा और बुन्देलखण्ड का भ्रमण का समाजसेवा करता हॅू तो उच्च स्तर पर भी मुझे पहचान मिलना चालिए वह अभी नही मिली है ।

प्रष्न-संतोष जी आप समाज और देष के लिए क्या कहना चाहते है ?
उत्तर- मैं अपने जीवन का एह ही लक्ष्य और संकल्प लेकर समाजसेवा करता हॅू और करता रहॅूगॉ ू मैं जो कुछ भी कर रहा हॅू अपने निजी आत्मा की आवाज से मन की षॉति, निरोगी रहकर समाज और देष सेवा के लिए कार्य जो कर रहा हॅू वही करूॅगा । मेरा प्रदेष और देष के आम नागरिकों से यहीं अनुरोध है कि वह धन तो कमाऐ लेकिन अपने जीवन और परिवार, बच्चों को जरूर समय देकर भारतीय संस्कृति और संस्कारों को बचाने कार्य करे । हमारे पत्रकार साथिओं से अनुरोध है कि – वह अपराधिक समाचारों के स्थान पर समाजिक और समाज सुधारक समाचारों और उनके जुड़ें आम जन को भी प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में स्थान दे जिससे समाज में व्याप्त बुराईयो को समाप्त किया जा सके । प्रत्यक नागरिक को परिवार समाज और देष की सुरक्षा केलिए मानवता के साथ कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए ।

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