एफडीआई पर हंगामा, संसद की कार्यवाही स्थगित

शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन शुक्रवार को भी संसद में एफडीआई पर विपक्ष के हंगामे के चलते लोक सभा की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। वहीं, राज्य सभा की कार्यवाही अपरान्ह ढाई बजे तक स्थगित कर दी गई है। गुरुवार को भी बीजेपी और वामदल ने एफडीआई पर वोटिंग की मांग करते हुए सदन का कामकाज नहीं चलने दिया था।

गौरतलब है कि गुरुवार को शुरू हुए शीतकालीन सत्र की शुरुआत भी एफडीआई के विरोध के साथ हुई। एफडीआई पर तृणमूल कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव का साथ न देकर विपक्ष भले ही बिखरा हुआ दिख रहा हो, लेकिन उसके तेवरों को देखते हुए सरकार की राह आसान नहीं है। सांसदों वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी 54 सांसद ही नहीं मिले। उसके समर्थन में सिर्फ 3 सांसदों वाली बीजद ही खड़ी नजर आई। लोकसभा नियम 184 और राज्यसभा में नियम 168 के तहत चर्चा कराने पर अड़ी भाजपा को माकपा का साथ मिला। गतिरोध तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है।

शीतकालीन सत्र पर एफडीआई की बर्फ जमने के पूरे लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं। हालांकि,सरकार पर बड़ा संकट भी नहीं दिख रहा है। मुख्य विपक्षी गठबंधन राजग और सत्ताधारी संप्रग के बीच एफडीआई पर चर्चा किस नियम के तहत हो, इस पर ठन गई है। सरकार वोटिंग के नियम के तहत चर्चा कराने को तैयार नहीं है। इस गतिरोध को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने सोमवार सर्वदलीय बैठक बुलाई है।

इससे पहले उन्होंने भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली से रात्रिभोज पर भी चर्चा की। मगर रिटेल में एफडीआई पर मत विभाजन के नियमों के तहत दोनों सदनों में चर्चा की मांग से पार्टी पीछे हटने को तैयार नहीं है।

भाजपा की लोकसभा में नियम 184 और राज्यसभा में 168 यानी मत विभाजन के तहत चर्चा कराने की मांग को सरकार ने दोनों सदनों में यह कहकर खारिज कर दिया कि सरकार के कार्यकारी फैसलों पर वोटिंग के तहत चर्चा नहीं होती रही है। मगर उनकी इस दलील को माकपा नेता सीताराम येचुरी ने खारिज कर दिया। उन्होंने मत विभाजन के तहत एफडीआई पर चर्चा पर जोर दिया और कहा कि पहले बाल्को के विनिवेश पर वोटिंग के नियम के तहत चर्चा हो चुकी है। मत विभाजन के नियम के तहत माकपा के राजग के साथ होने से तय है कि सरकार के लिए सदन में विपक्ष से पार पाना संभव नहीं होगा।

हालांकि, सरकार की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ और कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने स्पष्ट कर दिया कि मत विभाजन के तहत चर्चा नहीं होगी। नियम 193 पर सरकार लोकसभा में चर्चा करने को राजी है। दरअसल, मत विभाजन के हारने पर सरकार गिरने का संकट नहीं है, लेकिन उस पर नैतिक दबाव बढ़ जाएगा। सपा और बसपा और संप्रग के घटक द्रमुक जैसे दलों के लिए भी एफडीआई पर सरकार के पक्ष में वोट देना मुश्किल होगा। इसलिए, सरकार इस पर राजी नहीं है।

वैसे भी सपा और बसपा ने साफ कर दिया है कि वे भाजपा के साथ कहीं खड़े नहीं होंगे। अलबत्ता सदन में भी सरकार के खिलाफ जरूर वे दिखे, लेकिन बसपा जहां उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की मांग पर नारेबाजी करती रही, वहीं सपा ने सिलेंडर की सीमा तय करने पर हंगामा काटा। लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही तीन बार स्थगित हुई और सदन नहीं चल सका। इसके बाद एफडीआई पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्पष्ट कह दिया कि यह केंद्र पर है कि वह किस नियम के तहत चर्चा कराए। इसी तरह सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि हम शुरू से एफडीआई के खिलाफ हैं, लेकिन भाजपा का किसी मुद्दे पर साथ नहीं देंगे।

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