विमोचन समारोह: देवी नागरानी का कथा संग्रह: “दर्द की एक गाथा”

हिंदी आन्दोलन परिवार, पुणे की मासिक साहित्य गोष्टी के अवसर पर संस्थापक संजय भारद्वाज, व् संगोष्टी अध्यक्ष: अध्यक्ष – श्रीमती वीनु जमुआर की उपस्थिति में “दर्द की एक गाथा’ संग्रह का लोकार्पण संपन्न हुआ. फरवरी माह कि इस मासिक गोष्टी में इस गोष्टी के परिवार के सभी सदस्य मौजूद है. स्थान- एलिट गार्डन क्लब हाऊस, एलिट गार्डन सोसायटी, वायरलेस सोसायटी लेन, वेस्टेंड मॉल के पास, मैकडोनाल्ड के सामने, औंध, पुणे- 411007

चित्र में _ डा. लखनलाल आरोही , मेजर प्रसाद , ऋता सिंह , माया मीरपुरी, विजया टेकसिंघानी , वीनु जमुआर , संजय भारद्वाज , डॉ. रमेश मिलन , श्रीमती श्यामलता मिलन , सुधा भारद्वाज , अरविंद तिवारी , तिवारी जी । सामने हैं श्रीमती प्रसाद

संग्रह पर आलोचनात्मक प्रतिक्रिया कि तत्परता भी शामिल हुई है, जिसके लिए मैं, देवी नागरानी इस समस्त परिवार कि कृतज्ञ हूँ.
अलका अग्रवाल लिखती हैं:
पहली कहानी ‘हसरतों का खून’ एक मर्मस्पर्शी कहानी है जो दिल को छू जाती है। ‘दर्द की एक गाथा’ जीवन की सच्चाई बयां करती है। कहावत है-‘जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई’ ,जब तक मुख्य अध्यापिका जी को बच्चे व घर की जिम्मदारियों कआ एहसास नहीं था, वो अनुशासनप्रिय बनी रहीं, पर एहसास होते ही ढील दे दी। ‘भाग्य में लिखा न था’ एक खूबसूरत लड़की की चाहत और उसके लालची बुड्ढे बाप के कारण उसकी हुई बर्बादी की कथा सुनाती मार्मिक कहानी है।
देवी नागरानी जी ने बड़े ही सफलता के साथ आम बोलचाल की भाषा में इन कहानियों का अनुवाद कर हम तक पहुँचाया है। अतः वो बधाई की पात्र हैं।
देवी नागरानी जी द्वारा अनूदित पुस्तक ‘दर्द की एक गाथा’ यद्यपि अभी पूरी नहीं पढ़ी है। फिर भी ‘हसरतों का खून’, ‘दर्द की एक गाथा’, ‘भाग्य में न लिखा था’, ‘मंजरी कोलहण’, ‘जहाज’ और ‘बारूद’ कहानियाँ मुझे विशेष तौर पर अच्छी लगीं।एक कहानी पढ़ने के पश्चात्‌आगे पढ़ने की जिज्ञासा बनी रहती है.

श्रीमती माया मीरपुरी का एक स्नेह भरा सन्देश भी दर्ज हुआ है_”दर्द की एक गाथा” के बारे में जिनकी अभिव्यक्ति कहती है- “माननीया देवी नागरानी जी !

आपके प्रति प्रदत्त है मेरी आदरांजलि एवं कृतज्ञता-अभिव्यक्ति.
आपके द्वारा संपादित, अनूदित कहानी का प्रत्येक शब्द मेरी संवेदनाओं को जगाता है , वही जन्मभूमि , देश का विभाजन, उससे जुड़ी विस्थापित जीवन की दर्द भरी गाथाएँ है सभी जो यादों में बसी हुई हैं. बड़ी विनम्रता से यह कहने का साहस कर रही हूँ कि कराची की भूमि पर ही मेरी जन्मदात्री ममतामयी माता ने अपनी छाती से लगाकर सिंधु जल संजीवनी से मेरे जीवन को सींचा था , पिता श्री ने प्रत्येक दर्द को सहकर मुझे संवर्धित किया था । दादा -दादी , नाना-नानी एवं अन्य परिजनों ने हिंद में आकर विस्थापित जीवन का जो दर्द सहा था , उसकी अपनी ही एक अनोखी दर्द भरी दास्तां है ।
माननीय सदस्य लतिका यादव उस समय गैर हाज़िर रही पर दो दिन बाद उनकी एक सुंदर प्रतिक्रिया हासिल हुई. जिसमें उनकी साहित्य व् अनुवाद के लिए सद्भावना शामिल है. वे लिखती हैं: इस कहानी संग्रह की विशेषता यह है कि, श्रीमती देवी नागरानी जी द्वारा अनुवादित सिंधी भाषा की सत्रह कहानियों का हिंदी में अनुवाद हम पाठकों के लिये उपलब्ध हो गया है।
राष्टीय गान के लिए सभी उठ खड़े हुए –सुंदर संध्या पर्व में परिवर्तित हो गयी. स्वादिष्ट भोजन के साथ सभी स्मृतियों को संग लेकर फिर मिलने के लिए अपनी रह पर चल पड़े. प्रस्तुति-माया मीरपुरी

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