इक्विटी खंड में अप्रैल 2021 से अब तक 50 लाख से अधिक नए निवेशक जुड़े

मुंबई, 15 अगस्त: बचत की परंपरा वाले देश में इक्विटी की संस्कृति का प्रसार करने वाले प्रमुख अखिल भारतीय मल्टी-सेगमेंट स्टॉक एक्सचेंज, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड में चालू वित्त वर्ष 2021-22 के अप्रैल 2021 से लेकर अब तक की अवधि में 50 लाख से अधिक नए निवेशक जुड़े। यह तादाद पिछले वित्त वर्ष, अप्रैल 2020 – मार्च 2021 के दौरान जुड़े कुल 80 लाख नए निवेशकों की कुल तादाद का 62.5 प्रतिशत है।
छोटे संगठनों और खुदरा निवेशकों की मदद में अग्रणी रहे एनएसई से अप्रैल 2021 से अब तक 50 लाख से अधिक नए निवेशक जुड़े। पिछले कुछ सालों के दौरान प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी काफी बढ़ी है जो नए निवेशकों की संख्या में बढ़ोतरी और बाजार के कुल कारोबार में व्यक्तिगत निवेशकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि से स्पष्ट है।
भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में एनएसई के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी विक्रम लिमये ने कहा, “600 से अधिक शहरों में एनएसई का विस्तृत निवेशक शिक्षण कार्यक्रम से पूरे देश में वित्तीय साक्षरता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे खुदरा भागीदारी बढ़ी, और इक्विटी बाजारों में निरंतर उछाल के मद्देनज़र एनएसई से पिछले दो साल में 1.70 करोड़ निवेशक जुड़े।”
श्री लिमये ने कहा, “एनएसई के इक्विटी और इक्विटी डेरिवेटिव खंड में औसत दैनिक कारोबार में पिछले वित्त वर्ष के दौरान क्रमशः 70 प्रतिशत और 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई और ऐसा खुदरा क्षेत्र से भागीदारी बढ़ने के कारण संभव हुआ।”
श्री लिमये ने कहा, “भारत में नौजवानों की भारी-भरकम संख्या इसकी सबसे बड़ी संपत्ति है,
जो विश्व स्तर पर इसकी प्रतिस्पर्धा और प्रभाव को मजबूत कर सकती है। भारत के आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ने के बीच हम सभी को दीर्घकालिक सतत वृद्धि और विकास के लिए अनुकूल वातावरण और बुनियादी ढांचा तैयार करने की दिशा में प्रयास की ज़रुरत है।“
भारत के आर्थिक उदारीकरण के 30 साल पूरे होने का जिक्र करते हुए, श्री लिमये ने कहा, “दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम जिन्होंने 1990 के दशक की उदारीकरण नीति के दौरान पूंजी बाजार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे थे बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना और स्टॉक एक्सचेंजों का डीम्यूचुअलाइज़ेशन।”
श्री लिमये ने कहा, “गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) जिसने कर संरचना में क्रांति ला दी और एकल एकीकृत बाजार की सुविधा प्रदान की। दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की शुरुआत हुई जिससे देनदारों और लेनदारों को एक औपचारिक समाधान ढांचा मिला और मेक इन इंडिया तथा स्टार्ट अप इंडिया से भारत में विनिर्माण और उद्यमिता को प्रोत्साहन मिला जबकि ताज़ातरीन पीएलआई योजना से भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूती और नई गति मिलने की उम्मीद है।“

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