‘जिस स्‍वीकृति का मैं अपने पेरेंट्स से इंतजार कर रहा था, वह मुझे यहां मिली… ट्विटर पर!’

ट्विटर पर लोग समान रुचियों और अनुभवों के कारण जुड़ते हैं, लेकिन साथ मिलकर नई जिज्ञासाएं और शौक भी खोजते हैं। बातचीत के बाद अक्‍सर उनके बीच मायने रखने वाले कनेक्‍शन बन जाते हैं, जो दोस्‍त, जीवनसाथी, बिजनेस असोसिएट, आदि जैसे रिश्‍तों की दिल को छूने वाली कहानियों में बदल जाते हैं। लोग बार-बार ऐसे लोगों से मिलते हैं, जो गर्व से कहते हैं ‘#WeMetOnTwitter’
लोग कोविड-19 के दौरान भौतिक रूप से दूर रहे, लेकिन ट्विटर पर ज्‍यादा करीब आये, उन्‍हें बातचीत में सुख मिला और दूसरों की दया से उम्‍मीदें मिलीं। कई लोगों ने मानसिक चुनौतियों से अकेले जूझने के बजाए ट्विटर पर सहजता से इसके बारे में बात की, मदद मांगी और दूसरों के साथ अपने अनुभव साझा किये। ट्विटर के शोध के अनुसार, महामारी की शुरूआत के बाद भारत में ट्विटर पर ढाई गुना ज्‍यादा लोगों ने सेहत पर बात की।
ऐसी बातचीत में आयुष और मोनीश एक-दूसरे से मिले और उनके बीच एक खास रिश्‍ता बन गया। आयुष कहते हैं: मैं हमेशा से सामाजिक मेल-जोल वाला इंसान रहा हूँ, तो जब दुनिया थम गई थी, मुझे बहुत कठिनाई होने लगी। उसी समय मुझे लगा कि मैं बाइसेक्‍सुअल हूँ और जब मैंने अपने परिवार को यह बताया, तो उन्‍होंने मुझे पूरी तरह से नकार दिया। और तब मैंने खराब होती अपनी मानसिक सेहत की परेशानियों से संघर्ष करना शुरू किया।
मैंने इलाज लेने का फैसला किया। मेरी थेरैपिस्‍ट ने मुझे अपनी भावनाओं पर ज्‍यादा मुखर होने के लिये कहा और अपने प्रियजनों से बात करना शुरू करने के लिये भी प्रोत्‍साहित किया। लेकिन भावनाओं को प्रकट करना मेरे लिये आसान नहीं था, तो उन्‍होंने मुझे ट्विटर पर आने और अपने दिल की बातें कहने के लिये इस प्‍लेटफॉर्म का इस्‍तेमाल करने की सलाह दी। यह आइडिया मुझे अच्‍छा लगा और अगले ही दिन मैंने एक अकाउंट बनाया और अपने जैसी रुचि वाले लोगों को फॉलो करना शुरू किया।

मेरा अनुभव बहुत सकारात्‍मक रहा और लोगों ने मेरा स्‍वागत किया। ट्विटर ऐसा प्‍लेटफॉर्म था, जहाँ मैं अपनी राय को पूरी तरह से जाहिर कर सका और खुलकर अपनी सेक्‍सुअलिटी पर बात कर सका। लोगों के जवाबों से लगा कि वे मुझे अपना रहे हैं; जिस स्‍वीकृति का मैं अपने पेरेंट्स से इंतजार कर रहा था, वह मुझे यहां मिली… ट्विटर पर! थोड़ा समय लगा, लेकिन धीरे-धीरे मेरी मानसिक सेहत सुधरने लगी।
और फिर इस साल मई में मैंने ट्विटर पर एक डीएम ग्रुप को जॉइन किया, जहाँ देशभर के लोग थे। वह ग्रुप हर तरह की चर्चा करने के लिये लोगों के लिये एक सुरक्षित जगह था। एक दिन मैंने हिम्‍मत जुटाई और ग्रुप में अपनी मानसिक सेहत के संघर्षों पर बात की। तब एक लड़के मोनीश ने यह कहकर जवाब दिया कि, ‘‘मैं आपकी बात समझ सकता हूँ’’। सेशन के बाद मोनीश ने यह कहकर मुझे डीएम किया कि, “मुझसे बात करने में परेशानी तो नहीं है?’’ मैं जानता था कि अकेलेपन से कितना डिप्रेशन होता है… और चूंकि मैं ठीक होने की कोशिश में था, इसलिये मान गया। हमने नंबर एक्‍सचेंज किये और फोन पर बात की; वह बातचीत करीब 2 घंटे चली!
उसने मुझ पर भरोसा किया और बताया कि उसे कितनी चिंता और घबराहट होती थी। उसने आत्‍म–सम्‍मान की समस्‍याओं से संघर्ष किया था और उससे बात करने वाला कोई नहीं था। तो मैंने उससे कहा कि, “जब भी परेशानी बढ़े, मुझसे बात करो!’’ जल्‍दी ही हम रोजाना बात करने लगे और वह मेरा सुरक्षित ठिकाना बन गया। मेरे बर्थडे पर सरप्राइज देने के लिये उसने 200 किलोमीटर से ज्‍यादा ड्राइविंग भी की! और एक पल के लिये भी नहीं लगा कि हम पहली बार मिल रहे थे। पूरा दिन हमने लोकल फूड खाकर और बात करते हुए बिताया।
कुछ ही महीनों में मोनीश मेरे लिये बहुत महत्‍वपूर्ण हो गया है। हम दोनों ने ठीक होने में एक-दूसरे की मदद की है। पहले मैं अपनी भावनाओं को दबाता था, लेकिन आज अपनी भावनाओं के साथ सहज हूँ। और मैं जानता हूँ कि मोनीश से मिलना इसमें बहुत काम आया है।

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