जल संरक्षण के लिए व्यवहार परिवर्तन अनिवार्य : राज्यमंत्री प्रहलाद पटेल

नई दिल्ली, 23 मार्च, 2022:विश्व जल दिवस 2022 के अवसर पर जल शक्ति और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने लोगों से भावी पीढ़ी के लिए मूल्यवान संसाधनों को बचाने के लिए पानी का उचित उपयोग करने का आह्वान किया। उन्होंने यह बात फिक्की, इरमा, वमनीकोम, आईआईपीए के दिल्ली क्षेत्रीय प्रभाग और सीएनआरआई के सहयोग से धानुका समूह द्वारा आयोजित ‘भूजल – आओ अदृश्य को दृश्य बनाएं’ शीर्षक कार्यक्रम में कही।
“भूजल की स्थिति वास्तव में चिंताजनक है और व्यवहार परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है। प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार में लोगों की आस्था और विश्वास है, जो व्यवहार परिवर्तन लाने के लिए महत्वपूर्ण है। एक सामाजिक उद्देश्य की प्रभावी सफलता के लिए लोगों में दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है और इसके लिए नेतृत्व में प्रेरणा और विश्वास की आवश्यकता होती है। मोदी जी के नेतृत्व में हमने देश को खुले में शौच से मुक्त बनाने का संकल्प लिया और इसमें हम सफल हुए हैं। यह व्यवहार परिवर्तन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। जल संरक्षण के लिए भी इसी तरह व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है। हमें पानी की एक-एक बूंद को बचाने की जरूरत है और बदलाव हमारी तरफ से आना चाहिए,” श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा।
इस अवसर पर बोलते हुए नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने देश में फसल के तौर तरीकों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। “भारत में दुनिया की भूमि का 2.4%, आबादी का 18% और पानी का 4% हिस्सा है। अगर हम इन अनुपातों को देखें तो हम पानी से ज्यादा जमीन की कमी का सामना कर रहे होते। लेकिन ऐसा नहीं है। जब जमीन की बात आती है तो परिमाण से ज्यादा उत्तमता की चिंता होती है, और जब पानी की बात आती है, तो गुणता और मात्रा दोनों के साथ समस्या है। इसके पीछे कारण यह है कि हम मांग के अनुसार पानी उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। पानी की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है, पानी की उपलब्धता भी बढ़ रही है, लेकिन जिस दर से पानी की मांग बढ़ रही है और जिस दर से उपलब्धता में सुधार हो रहा है, उसके बीच एक अंतर है। इस अंतर के अपने कारण, परिणाम और स्पष्टीकरण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि पिछले 30 वर्षों में हमारे फसल के तौर तरीकों, खेती की हमारी तकनीक और हमारी प्राथमिकताएं जल-प्रधान हो गई हैं।“
“यदि हम एक दशक के नियमित अंतराल पर मूल्यांकन करें, तो हम पाएंगे कि एक किलोग्राम फसल के उत्पादन के लिए पानी की खपत की मात्रा में दशक दर दशक वृद्धि हुई है। दूसरी ओर, उस एक किलोग्राम फसल के उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि समय के साथ कम हो गई है। इसका अर्थ यह है कि हमने हमेशा प्रति हेक्टेयर या एकड़ फसल की उत्पादकता पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन फसल उगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रति घन पानी पर आवश्यक ध्यान नहीं दिया, ”श्री रमेश चंद ने कहा।
‘जैव-विविधता’ की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण के सीईओ डॉ. अशोक दलवई ने कहा, “हमारे देश में पर्याप्त जैव-विविधता है, लेकिन साथ ही हम जंगल काटकर, चरागाहों को नष्ट करके और जलाशयों से समझौता करके जैव विविधता को नष्ट भी कर रहे हैं। हमें अपनी जमीन को जितना हो सके हरा-भरा रखना होगा। घास उगाना या कृषि-वानिकी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।”
इससे पहले कार्यक्रम की रूपरेखा तय करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन आर जी अग्रवाल ने कृषि के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
“आज हमें सटीक कृषि की आवश्यकता है, जैसे स्प्रिंकलर और ड्रिपइरिगेशन सिस्टम जैसी पानी बचाने वाली तकनीकों को अपनाना। कीटनाशकों और उर्वरकों के छिड़काव के लिए ड्रोन तकनीक के उपयोग से समय के अलावा कृषि के लिए उपयोग किए जा रहे पानी की पर्याप्त मात्रा को बचाने में भी मदद मिलेगी। समय की मांग है कि राज्यों को भी प्राथमिकता के आधार पर जल संरक्षण पर काम, स्थानीय सिंचाई प्रणालियों को नियंत्रित, इसके कुशल उपयोग को प्रोत्साहित और बांधों, जलाशयों आदि के निर्माण के माध्यम से संरक्षण को बढ़ावा देना चाहिए, ” श्री आर जी अग्रवाल ने कहा।
श्री अग्रवाल ने छात्रों के साथ-साथ बच्चों के बीच भी जल संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।
महेंद्र के धानुका, एमडी, धानुका ग्रुप, राजवीर शर्मा, अध्यक्ष, दिल्ली क्षेत्रीय शाखा, आईआईपीए और श्री बिनोद आनंद, महासचिव, सीएनआरआई ने भी सभा को संबोधित किया और इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपने बहुमूल्य विचार साझा किए।
उल्लेखनीय है कि धानुका समूह एक दशक से अधिक समय से कृषि और अन्य आर्थिक गतिविधियों में पानी के उचित उपयोग को बढ़ावा देने और इस सम्बन्ध में जागरूकता फैलाने में अग्रणी रहा है। समूह अपने प्रमुख अभियान “खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में” के माध्यम से जल संरक्षण पर शिक्षित करने के साथ जागरूकता फैला रहा है। विगत समय में वर्षा जल के संरक्षण के लिए कंपनी ने राजस्थान में जुगलपुरा, देवीपुरा (जिला सीकर), मैनपुरा की ढाणी और संकोत्रा (जयपुर जिला) में रोक-बंध निर्माण को वित्त पोषित भी किया है, जो अब पूरी तरह से चालू हैं और बारिश के पानी से भरे हुए हैं।

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