नई दिल्ली, अक्टूबर 2022: भारत में तेल एवं गैस की खोज और उत्पादन करने वाली सबसे बड़ी कंपनी केयर्न ऑयल एंड गैस ने अपने मंगला तेलक्षेत्र (ऑयलफील्ड)से 500 एमएमबीबीएल तेल के उत्पादन का आंकड़ा छू लिया है। मंगला की खोज वर्ष 2004 में हुई थी और इससे उत्पादन वर्ष 2009 में शुरू हुआ है और यह राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित एमबीए (मंगला भाग्यम ऐश्वर्या) ट्रिनिटी का भाग है। मंगला भारत का सबसे बड़ा तटवर्ती तेलक्षेत्रहै और इसकी खोज के दौरान इसे पहले के दो दशकों में मिला भारत का सबसे बड़ा तटवर्ती हाइड्रोकार्बन माना गया था।
इस उपलब्धि पर केयर्न ऑयल एंड गैस के डिप्टी सीईओ प्रचुर साह ने कहा, “मंगला ऑयलफील्ड से 500 एमएमबीबीएल तेल के उत्पादन की यह उपलब्धि हासिल करके हमें खुशी हो रही है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने के बाद भारत के घरेलू तेल एवं गैस उत्पादन के क्षेत्र में हमारा योगदान 50% तक पहुंच गया है। ऊर्जा के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भरता बनाने में अपना योगदान देने के अपने चेयरमैन के सपने के अनुरूप अपनी उत्पादन क्षमताओं को दोगुना करने के लक्ष्य के करीब पहुंच गए हैं।”
राजस्थान ब्लॉक राष्ट्रीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और यहाँ टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कई नई पहलें हुई हैं। यह देश का पहला फील्ड है, जिसने माइक्रो सीस्मिक हाइड्रोफ्रैक मॉनिटरिंग टेक्नोलॉजी को अपनाया और दुनिया का पहला सबसे बड़ा जेट-पम्प ऑपरेशन किया। यहाँ विश्व का सबसे बड़ा एनहांस्ड ऑयल रिकवरी (ईओआर) पॉलीमर फ्लड प्रोजेक्ट और विश्व का सबसे बड़ा एल्कलाइन सरफेक्टेन्ट पॉलीमर (एएसपी) प्रोजेक्ट भी है। टेक्नोलॉजी की इन पहलों के द्वारा मंगला फील्ड ने समय को चुनौती दी और भारत के घरेलू क्रूड उत्पादन में अपना योगदान जारी रखा। यह फील्ड मंगला पाइपलाइन का आरंभ बिन्दु भी है, जो कि विश्व की सबसे लंबी लगातार गर्म और इंसुलेटेड रहने वाली पाइपलाइन है और क्रूड को राजस्थान के फील्ड्स से गुजरात की रिफाइनरीज तक पहुँचाती है।
मंगला फील्ड ने भारत की ऊर्जा सम्बंधी जरूरतों में सहयोग देने के साथ-साथ अपने इलाके की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। केयर्न द्वारा परिचालन शुरू किये जाने के बाद से बाड़मेर जिले की प्रति व्यक्ति आय 650% बढ़ी है, जोकि राष्ट्रीय और प्रांतीय, दोनों औसत से ज्यादा है। जल, जैवविविधता, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, आदि क्षेत्रों में हुई पहलें इस क्षेत्र के 8 करोड़ से ज्यादा लोगों तक पहुँची हैं। इससे समृद्ध सामाजिक संपदा का निर्माण हुआ है, जोकि आज पश्चिमी राजस्थान के बदले हुए परिदृश्य और आजीविकाओं में दिखता है।