आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी बलात्कार की घटनाओं को लेकर विवादास्पद बयान दिया है। भागवत ने कहा है कि बलात्कार की घटनाएं इंडिया में होती हैं, भारत में नहीं। भागवत के कहने का मतलब था कि पश्चिमी सभ्यता का असर शहरों में ज्यादा है, जहां रेप की घटनाएं ज्यादा होती हैं। भागवत के इस बयान का सामाजिक कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं।
उधर, देश में बलात्कार और यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं को लेकर मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विवादास्पद बयान दिया है। विजयवर्गीय ने कहा है कि महिलाओं को अपनी सीमा नहीं लांघनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सीताजी ने लक्ष्मण रेखा लांघने की गलती की थी और रावण उन्हें उठा ले गया था।
हालांकि बीजेपी ने उनके इस बयान से अपने आपको अलग करते हुए उन्हें बयान वापस लेने की सलाह दी, जिसके बाद विजयवर्गीय ने महिलाओं पर दिए इस बयान को वापस ले लिया। उन्होंने कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।
भारतीय संबिधान में संशोधन जरूर होना चाहिए ..? लेकिन अकेले महिल्यो नारी के सम्मान को लेकर नहीं . क्यों की संशोधन हो तो समान रूप से नर /नारी के मौलिक अधिकारों के साथ साथ , भारतीय संस्कृति की रक्षा पर भी संशोधन हो। उन महिलायों के विरुद्ध भी कानून बनाया जावे जो कोठे को संचालित करती व कराती है देश के सभी बार /डांश [नाच /गाने ] कर महिलायों की कीमत बोली जाती हो । महिलायों की कीमत लगाने बाले हम आप ही होते है . आखिर बलात्कार की परिभाषा देश के नेता क्यों तय नहीं कर पा रहे है । क्यों की नेता क़ानून बनाते समय जनता के सुझाव नहीं है। पुरुष यदि महिलायों के साथ बल पूर्बक कोइ भी अपराध करे तो उसे सजा और यदि महिलाये बैश्याव्रती करती पाई जावे या पुरुष को ब्लेक करती है तो उनके विरुद्ध भी शक्त कानून हो जिससे समाज में न्र व नारी का बराबर का सम्मान हो . एकतरफा कानून नहीं बनना चाहिए . . लिवास , पहनाव पर भी कानून हो .? कानून बनते है पालन नहीं होते है। महिलायों के विरुद्ध अपराध भी दर्ज होना चाहिए तो देश का सम्मान होगा . अपराध कम होगे , अश्लील सीरियल चलचित्र फोटो , विज्ञापन में महिलायों की तस्वीर पर पूरी तरह से प्रतिबंध होना चाहिए . -संतोष गंगेले