इबादत की जुस्तजू 138 वर्ष की सगीरन में आज भी कायम है। रमजान के रोजे वह आज भी बड़ी चाह से रखती है। करीम नगर में रहने वाली सगीरन का जन्म 18 जुलाई 1874 को दरियागंज मेरठ में हुआ। 13 वर्ष की उम्र से उसने रोजे रखना शुरू किए और 138 साल की आयु में भी रमजान के सारे रोजे रख रही है। सगीरन के यहां बुनकर का काम होता है।
सगीरन आज भी महिलाओं के साथ घर के कामों में हाथ बटाती है। उसके छह बेटे अब्दुल हकीम, अब्दुल रहीम, मो. सईद, रशीद अहमद, रफीक और इस्लामुददीन हैं। तीन का इंतकाल हो चुका है। सईद की उम्र 90 वर्ष है। सगीरन के पोते इश्तयाक अहमद की उम्र 60 वर्ष है।
उसने बताया कि उसकी दादी आज भी लंका पान बड़ी शोक से खाती हैं। खाने में मसूर की दाल और रोटी, मीठे में सूजी का हलवा उन्हें पसंद है। इस लंबी उम्र में सगीरन आज भी घर में अपने हाथ से चरखे द्वारा धागे की नली फिराती है।
उम्र का प्रभाव कानों पर पड़ा, अब उन्हें कम सुनाई देने लगा है। सगीरन के पति अल्लाह मेहर का इंतकाल हो चुका है।