नई दिल्ली । रूबरू थिएटर और विजय सूरी फाउंडेशन द्वारा भव्य आयोजन भारतीय रंगमंच केवल मंच पर अभिनय का माध्यम नहीं, बल्कि समाज की संवेदनाओं और विचारों का जीवंत दस्तावेज़ है। इसी परंपरा को साकार रूप दिया रूबरू थिएटर और विजय सूरी फाउंडेशन ने, जब दिल्ली के मंडी हाउस स्थित ब्लैंक कैनवस सभागार में दो दिवसीय 7वाँ विजय सूरी राष्ट्रीय थिएटर महोत्सव हास्य तरंग का आयोजन किया गया। यह महोत्सव मात्र रंगमंचीय प्रस्तुतियों का उत्सव नहीं था, बल्कि उस विराट व्यक्तित्व की स्मृति का महोत्सव था जिनकी कला और समर्पण आज भी भारतीय रंगमंच की प्रेरणा बने हुए हैं, विजय सूरी।
जम्मू-कश्मीर की सांस्कृतिक धरा में जन्मे विजय सूरी को रंगमंच का भीष्म पितामह कहा जाता है। वे कुशल अभिनेता, संवेदनशील लेखक, सिद्धहस्त निर्देशक और सफल निर्माता रहे। उनकी आवाज़ रेडियो पर “गोल्डन वॉइस” के नाम से पहचानी जाती थी। उन्होंने थिएटर से लेकर टेलीविज़न और सिनेमा तक अपनी छाप छोड़ी और भारतीय रंगमंच को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस वर्ष महोत्सव का शीर्षक “हास्य तरंग” रहा। प्रस्तुत नाटकों ने दर्शकों को हँसी की तरंगों में बहाया, किन्तु साथ ही समाज की विसंगतियों पर गहरे प्रश्न भी उठाए। यह हास्य का वही रूप था जो केवल मनोरंजन नहीं करता, बल्कि भीतर तक सोचने पर विवश कर देता है। देशभर से आए विभिन्न नाट्य समूहों ने अपने उत्कृष्ट अभिनय और प्रयोगशीलता से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।
वर्ष 2023 में रूबरू थिएटर ने अपने दस वर्ष पूरे किए। इस यादगार अवसर पर कई हस्तियों का सम्मान किया गया । सुश्री जसकिरण चोपड़ा को थिएटर में योगदान हेतु, सुश्री संजना तिवारी को साहित्य में योगदान हेतु, विक्रम शर्मा को थिएटर एवं लेखन हेतु, हिम्मत सिंह नेगी ओर अमूल सागर को थिएटर ke लिए, इसके अलावा आशीष भनोट को चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु, रमन केसर को डोगरी भाषा और साहित्य में योगदान हेतु एवं आचार्य जीतू सिंह को ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य हेतु जिन्होंने अपने कार्यों से समाज में कला और संस्कृति की लौ को प्रज्वलित रखा है।
ये सम्मान केवल उपलब्धियों का उत्सव नहीं हैं, बल्कि एक सतत प्रेरणा हैं कि कला और सृजन की यह ज्योति पीढ़ी दर पीढ़ी जलती रहे।इन विभूतियों का सम्मान यह दर्शाता है कि कला और संस्कृति का सार केवल रंगमंच तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के विविध क्षेत्रों में उत्कृष्टता ही उसका वास्तविक विस्तार है।