सम्मान से ज्यादा आंदोलन का प्रतीक बन गया है तिरंगा

एक समय था, जब राजधानी में गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन होता था तो हर आदमी खुद को गौरवान्वित महसूस करता था। हर किसी के हाथ में तिरंगा होता था और सड़क से गुजरने वाली परेड में सैनिकों का अभिवादन तिरंगा लहराकर किया जाता था।

ऐसा लगता था कि स्वराज फिर से आ गया हो। ऐसे माहौल में देश भक्ति की भावना हर किसी के मन में हिलोरे लेने लगती थी। मगर अब धीरे-धीरे लोग तिरंगे के महत्व को भूलते जा रहे हैं। पहले गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जोर-शोर से लहराया जाने वाला तिरंगा अब बहुतायत मात्रा में केवल आंदोलनों के दौरान ही दिखता है।

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमारे देश के स म्मान का प्रतीक है, मगर लोग इसे आंदोलन का प्रतीक मानने लगे हैं। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से लोग विभिन्न जन आंदोलनों में शान से तिरंगा लहराते रहे। फिर चाहे वो अन्ना हजारे का जन लोकपाल आंदोलन हो या फिर सामूहिक दुष्कर्म की घटना के विरोध में प्रदर्शन। ऐसे मौकों पर तो तिरंगा लेकर चलने की भरमार लगी रहती है, मानों स्वराज आ गया हो। मगर जब बात देश की आजादी और वीरों के बलिदान को याद करने के रूप में मनाए जाने वाले गणतंत्र दिवस समारोह या स्वतंत्रता दिवस समारोह की बात आती है तो लोग तिरंगे को लेकर कुछ हद तक दूरी बना लेते हैं।

वे केवल परेड के जवानों और मनमोहक झांकियों को निहारते हैं और तालियां बजाकर उनका स्वागत भी करते हैं। मगर, तिरंगा लहराकर देश के जवानों का मनोबल बढ़ाने का काम करने वाला कोई विरला ही दिखाई देता है।

लोग तिरंगे के महत्व को भूल रहे हैं। शायद यही कारण है कि कुछ साल पहले तक गणतंत्र दिवस समारोह व स्वतंत्रता दिवस समारोह से पूर्व सड़कों पर तिरंगा बेचने वाले और उनसे तिरंगा खरीदने वाले लोग अक्सर दिखाई देते थे, मगर अब ऐसा नहीं होता। आधुनिकता के इस दौरन में तेजी से मानवीय मूल्यों का हृास हो रहा है। इसके कारण लोगों में देश भक्ति की भावना कमजोर हो रही है। जिसकी वजह से लोग तिरंगे को राष्ट्रीय सम्मान से कहीं अधिक आंदोलन का प्रतीक मानने लगे हैं।

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