तो गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे

फैजाबाद के गुमनामी बाबा उर्फ भगवान जी ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे! सच्चाई जानने को हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एक जांच पैनल गठित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने 27 वर्ष बाद इस संबंध में दाखिल याचिकाओं को स्वीकार करते हुए विस्तृत आदेश दिया।

गुमनामी बाबा फैजाबाद के राम भवन में रहते थे तथा 18 सितंबर, 1985 को उनकी मौत हुई थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदार अक्सर उनसे मिलने भी आते थे। एक बड़ा वर्ग मानता है कि गुमनामी बाबा ही वास्तव में नेताजी थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह व न्यायमूर्ति वीके दीक्षित की खंडपीठ ने राज्य सरकार को जांच पैनल गठित करने के साथ यह भी निर्देश दिया कि गुमनामी बाबा से संबंधित जो वस्तुएं जांच के लिए मुखर्जी कमीशन को सौंपी गई थीं उन्हें वापस प्राप्त कर म्यूजियम में सुरक्षित रखा जाए। मुखर्जी कमीशन ने जांच के लिए गुमनामी बाबा से जुड़ी अनेक चीजों को अपने कब्जे में लिया था। अदालत ने अग्रिम कार्रवाई के लिए मुख्य सचिव को निर्णय की प्रति भेजते हुए कृत कार्रवाई का ब्योरा भी चार माह बाद तलब किया है।

खंडपीठ ने यह फैसला 27 वर्ष की लंबी सुनवाई के बाद दिया है। पीठ ने कहा कि गुमनामी बाबा के राम भवन आवास से मुखर्जी कमीशन द्वारा एकत्र की गई चीजों की नेता जी की वस्तुओं से समरूपता मिली है। यह भी तथ्य सामने आया है कि सुभाष चंद्र बोस के नजदीकी और रिश्तेदार गुमनामी बाबा से मिलने आया करते थे। नेताजी की पुस्तकों व उनके जन्म दिवस 23 जनवरी के अवसर पर आयोजन होना आदि प्रथम दृष्टया जांच का विषय है। फैसले में कहा गया कि मुखर्जी कमीशन ने ताइवान, रूस आदि देशों की यात्रा की और 131 गवाहों के बयान दर्ज किए थे।

गौरतलब है कि मुखर्जी कमीशन ने विमान हादसे में नेताजी के मौत को खारिज करते हुए पांच सिद्धांत सामने रखे थे। पहला यह कि अगस्त 1945 में जापान के तायहीको फारमोसा में दुर्घटना में नेताजी की मौत हुई। दूसरा यह कि अगस्त, 1945 में रेडफ्रोट में उनकी हत्या की गई। तीसरा यह कि साधु का जीवन जीते हुए 1977 में उनकी मृत्यु हुई। चौथा कि वह मध्य प्रदेश शिव पुकलम में मरे। पांचवां यह कि नेताजी की मौत गुमनामी बाबा के रूप में फैजाबाद में हुई।

कठघरे में केंद्र

पीठ ने कहा है कि मुखर्जी कमीशन की रिपोर्ट पर समुचित संज्ञान न लेने और जापान के तोक्यो स्थित रेनको जी मंदिर में रखी अस्थियों का डीएनए टेस्ट न कराने का केंद्र सरकार का निर्णय समझ से परे है। 14 मई, 1999 को गठित जस्टिस एनके मुखर्जी कमीशन ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि ताइपे विमान हादसे में नेताजी की मौत नहीं हुई थी और जापान के रेनको जी मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की नहीं थीं। मुखर्जी कमीशन ने ताइवान, रूस आदि देशों की यात्रा की और 131 गवाहों के बयान दर्ज किए थे।

27 वर्ष से खड़ा है सवाल

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाई सुरेश चंद्र बोस की बेटी ललिता बोस, ऑल इंडिया सोशलिस्ट पार्टी के उपाध्यक्ष डॉ.एएम हलीम तथा ऑल इंडिया सुभाष मुक्ति वाहिनी के उपाध्यक्ष विश्व बांधव तिवारी ने 27 वर्ष पहले याचिका दायर कर गुमनामी बाबा की पहचान उजागर करने की मांग की थी।

मुखर्जी आयोग ने नहीं माना था गुमनामी बाबा को नेताजी

फैजाबाद। कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर गठित मुखर्जी आयोग ने भी यह नहीं माना था कि फैजाबाद के रामभवन में 16 सितंबर 1985 को जिस गुमनामी बाबा की मौत हुई थी वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे। आयोग ने यह जरूर माना था कि नेताजी की मौत 1945 की विमान दुर्घटना में नहीं हुई। संसद के दोनों सदनों ने मई 2006 में बहस के बाद इसे खारिज कर दिया गया था।

मुखर्जी आयोग का गठन यह पता लगाने के लिए किया गया था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत हो चुकी है अथवा वे जीवित हैं। उनकी मृत्यु यदि हवाई दुर्घटना में हुई थी तो जापान के एक मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी की ही हैं। आयोग ने 14 नवंबर 2005 को रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। जिस पर मई 2006 में संसद में संसद के दोनों सदनों में चर्चा हुई।

आयोग ने क्या दी थी रिपोर्ट

-इसके प्रमाण नहीं हैं कि गुमनामी बाबा नेताजी ही थे और उनका निधन 16 सितंबर 1985 को फैजाबाद में हुआ।

-नेताजी की मौत 1945 में विमान दुर्घटना में नहीं हुई।

-जापान के रेन्को जी मंदिर में रखी अस्थियां भी नेताजी की नहीं हैं, सुभाष चंद्र बोस का निधन हो चुका है पर इसका सबूत किसी स्तर पर नहीं मिला।

error: Content is protected !!