महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुआ दर्दनाक हादसा कई लोगों को वो दुख दे गया जो वह आखिरी समय तक नहीं भुला सकेंगे। इस हादसे में किसी ने अपने बच्चों को खोया तो किसी ने अपनी बहन या बीवी को खो दिया। किसी के सिर से बाप का साया उठ गया तो किसी की मां इस हादसे का शिकार हुई। इस हादसे में कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपने सबसे करीबी दोस्तों को खो दिया। आज इन सभी के चेहरे मायूस हैं। ऐसा ही कुछ उनके साथ हुआ जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर महाकुंभ के पवित्र स्नान का हिस्सा बनने अपने दोस्तों के साथ इलाहाबाद आए थे।
महाकुंभ के इस हादसे में ज्योतिराम और ओमप्रकाश ने अपने आठ दशक पुराने साथी तेलूराम को खो दिया। हरियाणा में करनाल जिले के ब्रिजपुर गांव से खुशी-खुशी इलाहाबाद में चल रहे महाकुंभ में स्नान करने के लिए निकले थे। वहां पहुंचे सभी श्रद्धालुओं की तरह उनके मन में भी मौनी अमावस्या पर पवित्र स्नान करने की हार्दिक इच्छा रही थी। आठ दशकों तक एक साथ तीनों ने अपनी दोस्ती के सहारे हर सुख-दुख बांटे थे। उन्हें नहीं पता था कि यह महाकुंभ उनसे इस दोस्ती की कीमत भी वसूल कर लेगा।
इलाहाबाद में तीनों दोस्तों ने मौनी अमावस्या के मौके पर करोड़ों श्रद्धालुओं के बीच स्नान किया। यह उनके जीवन का सबसे खुशी का पल रहा था। उम्र के इस पड़ाव पर अपनी दोस्ती को इतने वर्षो तक कामयाबी के साथ आगे बढ़ाने वालों के लिए यह पल बेहद खुशनुमा था। यहां से स्नान करके वह भी लाखों की भीड़ के साथ गंगा मां से आशीर्वाद लेकर अपने घर की तरफ रवाना होने के मकसद से खुशी खुशी इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पहुंचे थे।
उन्हें नहीं पता था कि काल उन्हें यहां तक लेकर आया था और उनके साथ कुछ बेहद दर्दनाक घटना घटने वाली थी। स्टेशन पर लाखों की तादाद में श्रद्धालु मौजूद थे। सभी को अपने घर जाने की जल्दी थी। ऐसे में ही नामालूम कब अचानक वहां भगदड़ मच गई और तीनों साथियों का साथ छूट गया। यह भीड़ उनके एक साथी तेलूराम को लील गई, उन्हें इसका पता ही नहीं चला। वहां पर जब भीड़ का रेला शांत पड़ा तो चारों और चीख पुकार के अलावा कुछ और नहीं था। ज्योतिराम और ओमप्रकाश को अपने प्यारे दोस्त तेलूराम की चिंता हो रही थी। लेकिन जब वह मिले तो उनकी सांसे थम चुकी थीं।
इस हादसे ने उनसे उनका प्यारा साथी छीन लिया था। उनकी आंखें अपने पुराने दिनों को याद कर भर आर्ई थीं। दोनों ही एक दूसरे को सांत्वना दे रहे थे। प्रशासन की तरफ से आखिरी प्रक्रिया को पूरी करने के बाद तेलूराम के शव को उनके गांव भेजने का इंतजाम किया गया। अपने दोस्त के शव के पास बैठे ज्योति और ओमप्रकाश भले ही खामोश थे लेकिन उनके मन पर उस वक्त बहुत बड़ा बोझ था। जिस दोस्त को वह हंसी खुशी अपने साथ लेकर आए थे, अब केवल उसका शरीर ही उनके पास था। उनकी डबडबाई आंखें जहां अपनी दोस्ती के दिनों को याद कर गिली हो रही थीं वहीं वह उस मनहूस घड़ी को भी कोस रहे थे जब वह यहां पर आए थे।