कानपुर। साइटोकाइंस थेरॅपी से ट्यूबर क्लोसिस (टीबी) का इलाज आसान हो जाएगा और गंभीर बीमारी से निजात मिल सकेगी। कानपुर यूनिवर्सिटी के लाइफ साइंस डिपार्टमेंट के रिसर्च स्कॉलर ने बीमारी का रहस्य समझ लिया है। टीबी के बैक्टीरिया और इंफेक्शन बढ़ाने वाले प्रोटीन ‘स्माल हीट प्रोटीन’ को पहचानकर उसका स्राव बंद कर दिया। यही प्रोटीन बीमारी, इंफेक्शन बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण होता है। इस विधि से टीबी का इलाज पूरी तरह संभव हो सकेगा और इंफेक्शन होने की गुंजाइश कम रहेगी। चूहों पर इसे सफलतापूर्वक आजमाया जा चुका है।
टीबी के इलाज, बढ़ते संक्रमण और बैक्टीरिया बढ़ाने वाले कारक को लेकर कानपुर यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर डॉ. बब्बनजी ने वर्ष 2006 से रिसर्च शुरू की। नेशनल जालमा इंस्टीट्यूट ऑफ लेप्रोसी एंड अदर माइक्रो बैक्टीरियल डिजीज और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग (आईसीजीबी) के एक्सपर्ट की मदद से छह साल तक काम करते रहे।
सबसे पहले टीबी के बैक्टीरिया, इंफेक्शन देने वाले ‘माइक्रो बैक्टीरियम ट्यूबर क्लोसिस’ के प्रोटीन की पहचान की। फिर इलाज की साइटोकाइंस थेरॅपी विकसित की। उनका दावा है कि टीबी को लेकर इस तरह की रिसर्च इसके पहले किसी ने नहीं की है।
उनका कहना है कि मनुष्य के शरीर में टीबी के बैक्टीरिया, इंफेक्शन बढ़ाने वाले प्रोटीन ‘स्माल हीट प्रोटीन’ का स्राव लगातार होता है। इस कारण बैक्टीरिया लंबे समय तक शरीर में बने रहते हैं। इससे इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में एंटीबॉयोटिक दवाएं भी काम नहीं करती हैं। प्रोटीन का स्राव बंद होने के बाद ही टीबी का इलाज पूरी तरह संभव है, जिसमें अब सफलता मिल गई है। ऐनिमल क्लिनिकल टेस्टिंग के बाद रिसर्च का पेटेंट कराया जाएगा। रिसर्च के सभी प्रयोग सफल हुए तो टीबी रोगियों को बड़ी राहत मिल जाएगी। �
क्या है साइटोकाइंस
साइटोकाइंस एक तरह का प्रोटीन है, जो मार्केट में उपलब्ध है। इसी का अलग-अलग डोज बनाकर दवा के रूप में मरीज को दिया जाएगा। यही डोज टीबी की बैक्टीरिया, इंफेक्शन पैदा करने वाले ‘स्माल हीट प्रोटीन’ का स्राव बंद कर देगा।
चूहों पर रिसर्च सफल
जून 2012 में चूहे के सेल्स पर टीबी का इंफेक्शन किया गया। फिर जीनोमिक स्टडी से देखा गया कि 10 घंटे के बाद ही सेल्स पर बैक्टीरिया विकसित होने लगा। इसके बाद चूहे पर साइटोकाइंस थेरपी का इस्तेमाल किया गया। पांच दिन के अंदर ही बैक्टीरिया विकसित करने वाले ‘स्माल हीट प्रोटीन’ का स्राव बंद हो गया। फिर एंटी बॉयोटिक दवाओं का डोज देकर इंफेक्शन खत्म कर दिया गया।
फैक्ट फाइल
रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबर क्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के पास मौजूद आंकड़ों के हिसाब से हर साल देश में टीबी के करीब 18 लाख नए मरीज मिलते हैं। इनमें से हर साल 3.50 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। हर दिन करीब एक हजार लोग मरते हैं। हर एक मिनट में टीबी का बैक्टीरिया एक आदमी को अपना शिकार बनाता है। पूरे देश में आठ लाख लोग ऐसे हैं, जिनकी बीमारी ठीक हो चुकी है। फिर भी इंफेक्शन की चपेट में हैं।