राज्य के गठन के साथ राजभाषा बननी चाहिए थी राजस्थानी

chandresh kumariनई दिल्ली।  केन्द्रीय संस्कृति मन्त्री श्रीमती चन्द्रेश कुमारी ’’कटोच’’ ने कहा है कि राजस्थान के गठन के साथ ही राजस्थानी भाषा को ’राजभाषा’ के रूप में मान्यता मिल जानी चाहिये थी। श्रीमती चन्द्रेश कुमारी ’विश्व मातृभाषा दिवस’ पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता समिति द्वारा नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित सामरोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रही थीं।

राजस्थानी भाषा को सम्विधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की माँगको वाजिब बताते हुये उन्होंने कहा कि देश-विदेश में करीब दस करोड़ लोगों द्वारा बोली जानी वाली यह भाषा बहुत ही मधुर एवं समृद्ध है तथा राजभाषा के रूप में इसे मान्यता दिलवाने के लिए हरसम्भव प्रयास किये जायेगें।श्रीमती कटोच ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से राष्ट्रीय राजभाषा हिन्दी और अधिक समृद्ध एवं मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा का अपना समृद्ध इतिहास रहा है और इसके अन्तर्गत आने वाली कई बोलियाँ प्रदेश की बहुरंगी संस्कृति का प्रतीक एवं दिग्दर्शन करवाने वाली हैं। समारोह में सांसद डॉ. प्रभा ठाकुर, अर्जुन राम मेघवाल, इज्यराज सिंह, देवजी पटेल, राजस्थानी अकादमी के अध्यक्ष रामनिवास लखोटिया, राजस्थान संस्था संघ के अध्यक्ष सुरेश खण्डेलवाल, उपाध्यक्ष तेजकरण जैन, राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के राष्ट्रीय मुख्य संरक्षक डॉ. देवी सिंह शेखावत, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री विजय कुमार जैन और राजस्थान प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेंद्र बारहठ, आदि ने भी अपने विचार प्रकट करते हुये राजस्थानी भाषा को मान्यता दिये जाने की माँग का समर्थन किया।

समारोह में वक्ताओं ने बताया कि राजस्थान विधान सभा में वर्ष 2003 में ही राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने के सम्बंध में सर्वसम्मति से संकल्प पारित कर भारत सरकार को प्रेषित किया जा चुका है और वर्ष 2006 में संसद में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री ने राजस्थानी और भोजपुरी भाषा को शीघ्र मान्यता दिये जाने सम्बंधी आश्वासन भी दिया था। इसी प्रकार केन्द्रीय गृह मन्त्री भी इस सम्बंध में कई बार आश्वासन दे चुके हैं और भारत के राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा भी इसकी अनुशंसा की गयी है। केन्द्रीय साहित्य अकादमी ने भी राजस्थानी भाषा को मान्यता प्रदान कर दी है। अमेरिका एवं यूरोप सहित कई देशों के विश्वविद्यालयों में राजस्थानी भाषा के पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसी प्रकार राजस्थान के जोधपुर एवं उदयपुर विश्वविद्यालयों के साथ ही राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी राजस्थानी भाषा को अपने पाठ्यक्रमों में शामिल किया हुआ है। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के विभिन्न चैनल्स पर भी राजस्थानी भाषा के समाचार और कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। साथ ही कई राजस्थानी फिल्मों ने अपार लोकप्रियता हासिल की है। वक्ताओं ने कहा कि राजस्थानी भाषा न केवल राजस्थान के करीब सात करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है वरन् यह उत्तर-पूर्व, पश्चिम, दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी बोली जाती है। यह गुजरात की भी प्राचीन भाषा रही है और एशिया केपाकिस्तान सहित यूरोप, न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, कनाडा, अमेरिका आदि कई देशों में रहने वाले प्रवासी राजस्थानियों द्वारा भी बोली जाती है।

समारोह में सभी वक्ताओं ने राजस्थानियों से अपील की कि वे राजस्थानी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिलवाने के लिए एकजुट होकर प्रयास करें और वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को भी राजस्थानी भाषा के संस्कारों से ओत-प्रोत रखें ताकि राजस्थानी भाषा की समृद्ध परम्परा विस्मृत होकर नहीं रह जाये। समारोह के अंत में राजस्थान संस्था संघ के महामंत्री के.के. नरेडा और मान्यता समिति के एस. व्यास ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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