इरोम शर्मिला पर खुदकुशी की कोशिश का केस, कोर्ट में पेशी

irom 2013-3-4नई दिल्ली। मणिपुर में सैन्य बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को हटाने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठीं सामाजिक कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला सोमवार को दिल्ली के पटियाला हाउस अदालत में पेश किया जाएगा। वह रविवार शाम दिल्ली पहुंच गई। उनके खिलाफ खुदकुशी की कोशिश का भी केस चल रहा है। हालांकि शर्मिला का कहा कि मैं आत्महत्या की कोशिश नहीं कर रही हूं। यह मेरे विरोध करने का तरीका है।

अफस्पा को हटाने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन अनशन के क्रम में जब वह अक्टूबर, 2006 में जंतर-मंतर पर बैठीं तो दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ आत्महत्या की कोशिश के तहत मामला दर्ज किया था।

सूत्रों के अनुसार, सुनवाई के साथ-साथ शर्मिला अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे को मणिपुर स्थानांतरित करने की बात कहेंगी। आयरन लेडी के नाम से चर्चित इरोम शर्मिला पूर्वोत्तर राज्यों से अफस्पा को हटाने की मांग को लेकर वर्ष 2000 से भूख हड़ताल पर हैं। दो नवंबर, 2000 को इंफाल के मालोम में असम राइफल्स के साथ कथित मुठभेड़ में दस लोगों की मौत के बाद उन्होंने पांच नवंबर से भूख हड़ताल शुरू की थी।

वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं और उन्हें नाक से जबरन भोजन दिया जा रहा है। सोमवार को अदालत के बाहर शर्मिला के समर्थक हंगामा न करें, इसलिए पर्याप्त संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है।

जानिए, क्या है अफस्पा?

सैन्य बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) के तहत सुरक्षा बलों को विद्रोह की आशंका वाले इलाकों में संदिग्ध आतंकियों को मारने या फिर नजरबंद करने का अधिकार है। इस अधिकार को लेकर कई राज्यों में इसके दुरुपयोग को लेकर विरोध हो रहा है, और इसे हटाने की मांग की जा रही है। कुछ राज्यों में इसको संशोधित कर दोबारा लागू करने की बात कही गई है।

आतंकी गतिविधियों के कारण अशांत राज्यों में सेना को विशेषाधिकार देने के लिए 1958 से आ‌र्म्ड फोर्सिस स्पेशल पावर्स एक्ट नामक विशेष कानून अमल में लाया गया। इसका प्रयोग सबसे पहले असम और मणिपुर में किया गया। इस कानून में यह प्रावधान है कि सेना या अ‌र्द्धसैनिक बल का कोई भी जवान किसी भी व्यक्ति के घर में घुसकर तलाशी ले सकता है और किसी भी व्यक्ति को बंदी बना सकता है। ऐसे जवानों के खिलाफ जनता को सीधे मामला दर्ज करने की अनुमति नहीं है।

इस प्रावधान के कारण ही कई बार अ‌र्द्धसैनिक बल बेकाबू होकर अत्याचार पर आमादा हो जाते हैं। अफस्पा कानून के खिलाफ मणिपुर में बरसों से आंदोलन चल रहा है। अब कश्मीर के कुछ हिस्सों से इस कानून को हटाने की मांग जोर पकड़ रही है। इसके सबसे प्रबल पैरोकार हैं मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला। इससे सेना के अधिकारी बौखला गए हैं। उनका मानना है कि यदि इस कानून को वापस ले लिया गया तो आतंकवाद पर नियंत्रण नहीं हो पाएगा।

आतंकी बेखौफ हो जाएंगे। सेना के उच्च अधिकारियों के इस तर्क के आगे सरकार दुविधा में है। बरसों से सरकार की इस दुविधा का लाभ सेना के अधिकारी और जवान बखूबी उठा रहे हैं। सरकार की दुविधा इस बात को लेकर है कि इससे नागरिकों के मूल अधिकारों की भावना आहत होती है। सेना पर आरोप है कि इस कानून का दुरुपयोग करते हुए अधिकारियों व जवानों ने कुछ कश्मीरियों का फर्जी एनकाउंटर किया है। कुछ जवानों पर रेप के भी आरोप हैं।

ऐसे अपराध करने वालों पर राच्य सरकार सीधी कार्रवाई नहीं कर सकती। इसके लिए पहले उसे केंद्र सरकार के गृह विभाग और रक्षा विभाग से मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी लेनी पड़ती है। किंतु केंद्र सरकार आम तौर पर यह मंजूरी नहीं देती। यही कारण है कि सेना के अधिकारी और जवान बेलगाम हो गए हैं।

2003 में राज्य सरकार ने ऐसे 35 मामलों में कार्रवाई के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांगी थी, किंतु एक मामले के लिए भी अनुमति नहीं मिली। नागरिकों का सेना पर विश्वास बना रहे, इसके लिए आवश्यक है कि विशेषाधिकार का दुरुपयोग होने पर जल्द और सख्त कार्रवाई की जाए। यदि इस विशेषाधिकार को खत्म कर दिया जाता है तो आतंकी इसका फायदा उठाने से नहीं चूकेंगे। और अगर जवानों को कुछ भी करने की खुली छूट दी जाती रहेगी तो कश्मीर में सुधरते हुए हालात फिर से बिगड़ने में देर नहीं लगेगी।

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